बिहार में कोरोना की मार: नहीं मिल रहा मिड-डे-मील, मासूम कबाड़ बेचने को मजबूर

ऐसे में बिहार के भागलपुर जिले के बाडबिला गांव के मुसहरी टोला के बच्चे रोजाना भूख के खिलाफ अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। यहां के बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। स्कूल बंद होने की वजह से बच्चों को मिड डे मील भी नई मिल रहा हैं।

कोरोना संक्रमण के कहर से बच्‍चों को बचाने के लिए देश के तमाम राज्‍यों की तरह बिहार सरकार ने भी सभी स्‍कूलों को बंद कर दिया। देश में सभी स्कूल और कॉलेज 31 जुलाई तक बंद रहेंगे। ऐसे में बिहार के भागलपुर जिले के बाडबिला गांव के मुसहरी टोला के बच्चे रोजाना भूख के खिलाफ अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। यहां के बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। स्कूल बंद होने की वजह से बच्चों को मिड डे मील भी नई मिल रहा हैं।

इसे देखते हुए मानवाधिकारी आयोग ने केंद्रीय मानव संसथान विकास मंत्रालय और बिहार सरकार को नोटिस दिया हैं।स्कूल बंद होने की वजह से भागलपुर में बच्चों को मिड-डे-मील से महरूम रखने के लिए एनएचआरसी ने एचआरडी और बिहार सरकार को नोटिस जारी किया है। मिड-डे-मील नहीं मिलने की वजह से बच्चों की स्थिति बेहद खराब है।

बता दें कि नेशनल फैमिली सर्वे 2015-16 के तहत बिहार के 48.3 फीसदी बच्चों का शारीरिक विकास ठीक से नहीं हो रहा और 43.9 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। यह राष्ट्रीय औसत क्रमशः 38.4 और 35.7 से काफी ज्यादा है। बिहार के गांवों में बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए सबसे बड़ा हथियार मिड डे मील है।

दलितों का बुरा हाल है

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक भागलपुल के मुसाहारी टोला में दलितों का बुरा हाल है। स्थानीय निवासी दीनू के मुताबिक जातिगत भेदभाव की वजह से उनके पास सिर्फ दो काम है, या तो वो कूड़ा बीने या फिर भीख मांगे। लॉकडाउन ने उनकी हालत और खराब कर दी है। बच्चे पहले स्कूल जाते थे, तो उन्हें मिड डे मील के तहत कम से कम खाना मिल जाता था, लेकिन अब वो भी बंद है। जिस वजह से बच्चे भी कूड़ा बीनने पर मजबूर हैं।

रिपोर्ट के अनुसार उन्हें मध्याह्न भोजन में चावल, रोटी, सब्जियां, दाल, सोया और शुक्रवार को अंडे मिला करते थे। लॉकडाउन की वजह से उनके पोषण को मुख्य स्रोत गायब हो गया है। टोला में रहने वाले दीनू मांझी एक प्लेट में थोड़ा सा चावल, नमक, दाल और चोखा खाते हुए कहते हैं कि इसके अलावा और कुछ नहीं है। एक हजार की जनसंख्या वाले टोला में 250 मतदाता रहते हैं।

स्थानीय लोगों की परेशानी 

वहीं एक स्थानीय महिला ने बताया कि एक महीने पहले अधिकारियों की ओर से उन्हें पांच किलो चावल या गेहूं और एक किलो दाल दिया गया था। जो अब खत्म हो गया है। उन्होंने कहा कि इतने बड़े परिवार में इतने राशन में कैसे गुजारा होगा। तब से अधिकारी दोबारा उस इलाके में वापस नहीं आए हैं। लॉकडाउन की वजह से उनकी रोजी-रोटी पहले ही छिन गई थी, ऐसे में वो करें तो क्या करें।

क्या कहते है अधिकारी

मामले में जिलाधिकारी प्रणव कुमार ने कहा कि मिड डे मील का पैसा बच्चों के अभिभावकों के खाते में भेजा जा रहा है। जब तक स्कूल बंद रहेगा, तब तक ये योजना जारी रहेगी। इसके तहत कक्षा 1-5 तक के बच्चों को 15 दिनों के लिए 114.21 रुपये और कक्षा 6-8 के बच्चों के लिए 171.17 रुपये दिए गए हैं। वहीं बाबडिला इलाके में स्थित एक स्कूल के प्रिंसिपल के मुताबिक लॉकडाउन-2 तक पैसा आया था। जिसका भुगतान कर दिया गया। उसके बाद से कोई पैसा सरकार की ओर से नहीं आया है।

बता दें कि भागलपुर जिले में मिड डे मील में रजिस्टर्ड बच्चों की संख्या 5.25 लाख है। जिसमें ज्यादातर बच्चे सिर्फ खाने के लिए स्कूल जाते हैं। अब स्कूल बंद होने की वजह से वो कूड़ा बीनते हैं। जिसमें उन्हें सिर्फ 15-20 रुपये ही मिल पाते हैं।

 

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