कोरोना वायरस को लेकर पूरा देश चिंतित है| भारत में वायरस तेजी से फैल रहा है, पता नहीं कब किसको यह वायरस पट जाए| इस आपातकाल स्थिति में डॉक्टर ही उम्मीद की किरण के तरह है| डॉक्टरों के लिए देश की जनता ने खड़ा होकर ताली तो बजाई है मगर सबसे बड़ा सवाल है कि क्या सरकार ने डॉक्टरों के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाई है?
एक अनुमान के मुताबिक कोरोना से लड़ने के लिए डॉक्टरों को चाहिए रोज़ 5 लाख (Personal Protective Equipment) बॉडी कवर मगर देश के अस्पतालों में स्वास्थ्य कर्मियों के लिए भी न मास्क है और न दास्ताने| बिहार कि हालत तो और ख़राब है| खबर आ रही है कि बिहार के दरभंगा के DMCH कोरोना किट की कमी के कारण डॉक्टरों ने इमरजेंसी सेवा बंद कर दिया है|
DMCH में सर्दी खांसी बुखार से पीड़ित मरीजों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है| इस कारण DMCH में अलग से बनाये गये कोरोना के संदिग्ध मरीजों के आइसोलेसन वार्ड के बाहर सैकड़ों की संख्या में लोग पहुंच रहे हैं| हर कोई अपना जांच करवाना चाहता है कि वो कोरोना वायरस से संक्रमित तो नहीं है|
कोरोना से बचाव को लेकर DMCH में कुव्यवस्था देखने को मिल रही थी| इस कारण डॉक्टर काफी नाराज थे| डॉक्टरों ने बताया कि डीएमसीएच में किट की तो कमी है ही, मास्क और ग्लव्स भी नदारद है|
भागलपुर मेडिकल कालेज और पटना मेडिकल कालेज के डाक्टर और मेडिकल छात्रों के होश उड़े हैं कि बग़ैर सुरक्षा उपकरणों के कैसे मरीज़ के करीब जाएंगे। सवाल है कि सरकार जानबूझ कर उन्हें मौत के मुंह में कैसे धकेल सकती है?
चीन के डाक्टर सफेद रंग के बॉडी कवर में दिखते थे
कोरोना से डॉक्टरों की सुरक्षा पर वरिष्ठ पत्रकार रविश कुमार कहते हैं, “कोरोना कवरेज़ की तस्वीरों को याद कीजिए। चीन के डाक्टर सफेद रंग के बॉडी कवर में दिखते थे। उनका चेहरा ढंका होता था। हेल्मेट जैसा पहने थे। सामने शीशा था। आपादमस्तक यानि सर से लकर पांव तक सब कुछ ढंका था। इस बाडी कवर के कई पार्ट होते हैं। इन्हें कुल मिलाकर पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट PPE कहते हैं। कई तस्वीरों में बॉडी कवर पर भी छिड़काव किया जाता था कि उतारने के वक्त ग़लती से कोई वायरस शरीर के संपर्क में न आ जाए। इसी को हज़मत सूट भी कहते हैं। इसे एक बार ही पहना जाता है। इसके पहनने और उतारने की एक प्रक्रिया होती है। पहनने को Donning कहते हैं। उतारने को Doffing कहते हैं। Doffing के लिए अलग कमरे में जाना होता है। इस तरह से उतारा जाता है जैसे पीछे से कोई कोट खींचता हो। फिर स्नान करना होता है जो उसी कमरे के साथ होता है तब जाकर डॉक्टर अपने कपड़ों में बाहर निकलता है।”
वे आगे कहते हैं, “देश भर के डॉक्टर अपनी सुरक्षा के लिए ज़रूरी इन बुनियादी चीज़ों को लेकर बेहद चिन्तित हैं। उनके होश उड़े हैं। जब वही संक्रमित हो जाएंगे तो इलाज कैसे करेंगे? वैसे ही देश में डॉक्टर कम हैं, नर्स कम हैं, अगर यही बीमार हो गए, तो क्या होगा? अगर डॉक्टर पूरी तरह से सुरक्षा के उपकरणों से लैस नहीं होंगे तो मरीज़ के करीब ही नहीं जाएंगे। तो अंत में इसकी कीमत मरीज़ भी चुकाएंगा।”
हालांकि कारवां पत्रिका की रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने इसके लिए सरकारी कंपनी HLL को आर्डर किया है। कि वह मई 2020 तक साढ़े सात PPE तैयार कर दे और 60 लाख N-95 मास्क तैयार कर दे और एक करोड़ तीन प्लाई मास्क। मगर इसकी रिपोर्ट इसी पर सवाल उठा रही है कि दो से तीन महीने के दौरान भारत डाक्टरों और नर्स के लिए सुरक्षा के उपकरणों का संग्रह क्यों नहीं कर सका? 18 मार्च को प्रधानमंत्री राष्ट्र के नाम संबोधन करते हैं। 19 मार्च को सरकार भारत में बने PPE के निर्यात पर रोक लगाती है। इसके तीन हफ्ते पहले यानि 27 फरवरी को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बता दिया था कि कई देशों में PPE की सप्लाई बाधित हो सकती है। तीन हफ्ते तक सरकार सोती रही। आखिर जनवरी से लेकर मार्च कर निर्यात की अनुमति दी ही क्यों गई?