इंग्लैंड में इंजीनियरिंग किया मगर स्वदेश लौटकर बदल रहें है अपने गांव की तस्वीर

समाज में कुछ लोग ऐसे होते है जिनके लिए व्यक्तिगत हित से ज्यादा समाजिक हित महत्व रखता है। वे पैसे कमाने के लिए नहीं बल्कि समाज को बदलने के लिए काम करते हैं । ऐसे ही लोगों में से एक है बिहार के आशुतोष कुमार जो तमाम सुख सुविधाओं को छोड़ अपने गांव की तस्वीर बदलने में लगें है।

आशुतोष कुमार बिहार के औरंगाबाद जिले के दाउदनगर में पले बढ़े, दसवीं और बारहवीं की पढाई पटना और बोकारो से पूरी करने के बाद इंजीनियरिंग करने इंग्लैंड चले गए। वहां लैंकेस्टर यूनिवर्सिटी से कम्युनिकेशन सिस्टम में इंजीनियरिंग की। स्वदेश वापस आने के बाद आशुतोष  ने गांधीनगर स्थित नरेंद्र मोदी जी के प्रचार प्रबंधन टीम(Citizens for Accountable Governance) में काम किया और फिर अपने  जिले के गाँव में काम करने वापस लौट गए। इन्होंने अपने गाँव को मॉडल गाँव बनाने का बीड़ा उठाया है। गाँव में पंजाब नेशनल  बैंक का ग्राहक सेवा केंद्र खुलवाया, हर घर के सदस्यों का बैंक अकाउंट खुलवाया और अब गाँव को खुले में शौच से मुक्ति दिलाने का प्रयास शुरू किया   है। 2015 में भारत सरकार ने इन्हें कामनवेल्थ युथ कौंसिल के चुनाव के लिए भारत के तरफ से नामित भी किया था। वहीँ गाँव में काम करने की वजह से इन्हें कर्मवीर पुरस्कार और ‘REX Karmaveer Global Fellowship’ से सम्मानित भी किया जा चूका है। कर्मवीर पुरस्कार International Confederation of NGOs और संयुक्त राष्ट्र की तरफ से संयुक्त रूप से दी जाने वाली एक अवार्ड है जो हर साल समाज में उत्कृष्ट काम करने वालो को दिया जाता है।

आशुतोष कुमार

आशुतोष अपने पैसे से पांच गरीब बच्चों के पढाई का खर्च उठाते हैं और इनका कहना है कि बच्चे जिस भी क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहते हैं वो उस  में उनकी मदद करेंगे। इसी के परिणाम स्वरुप अभी सन्नी नाम के एक गरीब दंपत्ति के बेटे को दिल्ली स्थित कोचिंग संस्थान में एडमिशन करवाया और कोचिंग के संस्थापक विक्रांत की मदद से सन्नी अभी वहां मुफ्त शिक्षा ग्रहण  कर रहे हैं पर दिल्ली में रहने का खर्च आशुतोष  वहन करते हैं।

 

 

औरंगाबाद में अपने एनजीओ सजल फाउण्डेशन के माध्यम से गरीब बच्चों को कंप्यूटर ट्रेनिंग देने का काम कर रहे हैं। आशुतोष का मुख्य मकसद रूरल सोर्सिंग (रूरल सोर्सिंग के माध्यम से शहरों में हो रहे काम को गाँव लाया जा सकता है. जैसे आईटी से जुडे हुए काम,  बीपीओ इत्यादि) के तरफ काम करने का है, इसी मकसद को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने जम्मू कश्मीर में कभी आतंकवादियों का गढ़ माना जाने वाला डोडा जिले में भारत सरकार की सहायता से बीपीओ खोला जिससे लगभग 150 बेरोजगार युवकों को नौकरी मिली।   इनकी एनजीओ अभी उत्तर पूर्व राज्यों में चिल्ड्रन फिल्म सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के साथ मिल कर बच्चों के लिए मूवी स्क्रीनिंग करवाया और साथ ही साथ बच्चों को मूवी बनाने, फोटोग्राफी की ट्रेनिंग भी दी गयी।

 

आशुतोष ने बिहार के आम और लीची को विदेशी बाजार में उतारने के लिए एक नयी पहल की शुरुवात की थी जिसका नाम विलेज शॉप था। जल्द ही विलेज शॉप में थोड़ा बदलाव कर के  विलेज मार्ट नाम से एक ऑनलाइन पोर्टल शुरू कर रहे हैं, जिससे गाँव में काम कर रही महिलाओं और युवाओं को जोड़ा जायेगा और वो इस पोर्टल के माध्यम से अपना सामान दुनिया के बाजार में बेच सकते हैं।

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