माह-ए-मुहब्बत12:अमीरी-गरीबी के बीच की खाई बन जाती है प्रेम कहानियों की विलेन
यह कहानी सामान्य ब्राह्मण परिवार की है। लड़की पढ़ने में तो खास नहीं मगर दुनियादारी में काफी तेज-तर्रार थी, अभी भी है। वहीं लड़का भी पढ़ने में खास नहीं, मगर दुनियादारी में तेज-तर्रार था। दोनों ही अपने भाई-बहनों में सबसे छोटे। दोनों के ही ऊपर खास जिम्मेदारियाँ नहीं, मौज वाली ज़िन्दगी।
दिन अच्छे गुज़र रहे थे, हँसी-मज़ाक में।
दोनों पहली बार अपने कॉमन रिलेटिव के यहाँ शादी में मिलते हैं। बस मिलते ही हैं। शादी के लंबे कार्यक्रम के बीच शब्दों और भावों को टकराने के कई अवसर मिले। दोनों के उम्र का वो पड़ाव था कि विचारों में जितना विरोध होता, एक-दूजे की परवाह भी उतनी ही बढ़ती जाती।
अक्सर मिलने लगे दोनों। मिलने का एक ही बहाना होता, किसी कॉमन रिलेटिव के यहाँ कोई फंक्शन। कोई ये मुलाकात तय नहीं करता, मगर मुलाकात शायद ऊपरवाले ने तय कर रखी थी।
वो मिलते रहे, फ़ोन पर बातें करते रहे, लड़ते-झगड़ते कब प्रेम का अंकुर फूट पड़ा, किसी को कानों-कान खबर न हुई। फिर वही, जो लगभग सभी जोड़ों के बीच होता है, वादे साथ जीने-मरने के, रोना-धोना, रूठना-मनाना। सबकुछ हुआ।
लड़की को पहले शादी कर के दूर जाने का मन था, शान-ओ-शौकत में रहने का मन था। मगर इस शान-ओ-शौकत का रंग फीका पड़ता गया ज्यों ही प्रेम का रंग चढ़ना शुरू हुआ। उसे उसी लड़के में अपनी सारी ख़ुशी और अभिमान दिखा जिसके नाकारी को लेकर वो खिल्ली उड़ाया करती थी।
इधर लड़के के भी अरमान थे मिल्की वाइट लड़की मिले, जबकि ये लड़की तो देखने में एवरेज थी। फिर भी प्रेम अपना रंग चढ़ा चुका था दोनों की आँखों पर। उन्हें एक-दूसरे में परफेक्ट जीवनसाथी दिखने लगा था।
वो कहते हैं न, प्रेम की जगह और प्रेम कहानियों के पात्र भले ही बदल जाएँ, प्रेम वही होता है, हर प्रेमी जोड़े के बीच। कोई जोड़ा बिना बड़ों के आशीर्वाद के आगे की जिंदगी नहीं देखता। अपनों के ख्वाब उजाड़ कोई अपना घर बसाने के ख्वाब नहीं देखता।
बस यही सब बातें उनके बीच भी होती रहीं। परिवार वालों को भनक लगी और लड़के वाले ख़ुशी से उछल पड़े। दरअसल उन्हें भी लड़की और लड़की का परिवार हमेशा से पसंद था। मगर लड़की वालों के यहाँ मामला बिगड़ चूका था। लड़का घर चलाने के क़ाबिल नहीं, दिन-रात दूसरों में व्यतीत कर देता है, ऐसे कैसे अपनी बेटी उन्हें सौंप दें। अपनी बेटी का भविष्य तो सभी देखते हैं। उन्होंने रिश्ता न करने का फैसला किया। लड़की के भाई और पिता ने प्रेम कहानी का रूख ही मोड़ दिया।
एक ही कास्ट और शादी के लिए उपयुक्त सारी औपचारिकताओं के अनुकूल होते हुए भी, इसबार विलेन बना लड़के का कमाऊ न होना। एक चैलेंज था इस जोड़े के लिए कि लड़का कमाए। इस चैलेंज के साथ, घर से कभी दूर न रहा लड़का अकेला निकल पड़ता है, अपनी पहचान बनाने और अपनी चाहत को पूरा करने का सामान जुटाने।
वो पटना से नागपुर जाता है, ये वो जगह थी, जहाँ दोनों में से किसी की भी जान-पहचान नहीं थी। वहाँ जॉब की तलाश करता है। दो साल कड़ी मेहनत के बाद लड़के की सैलरी अपने रिश्तेदारों के बीच चर्चा का केंद्र बन गई। इस बीच लड़की के लिए कई रिश्ते आये, अमीर घरों से भी, जिससे खुद लड़की ही भागती रही। उसे अब अमीरी की बजाय इश्क़ की फ़कीरी ज्यादा रास आ गयी थी। पूरा विश्वास था अपने प्यार पर। हालाँकि इस दौरान उनकी बातें नहीं के बराबर हुईं, मुलाकातें हरगिज़ नहीं हुईं, पर भरोसा अपनी जड़ें जमाता चला गया।
आखिरकार दोनों के विश्वास ने प्रेम में जीत हासिल की। बेटी के बाप को भी लड़के का समर्पण भा ही गया। भाई को बहन के आँसुओं ने तोड़ दिया।
मगर इतना काफी नहीं था। अब जंग लड़के वालों की तरफ से लड़ा जाना था। दहेज़ की मांग चढ़ने लगी। ऐसी मांग जो लड़की वाले देने में असमर्थ थे।
इनसब घटनाओं के साथ-साथ समय निकलता जा रहा था। 5 साल से अधिक हो गए थे उनके प्रेम को परवान चढ़े। दोनों ने हर मंदिर की चौखट पर मन्नतें माँगी, मत्थे टेके। हँसी-ख़ुशी से रहने वाले दो परिवार लगातार तनाव में जी रहे थे। ईश्वर को भी अपना फैसला बदलना ही पड़ा।
लाख मिन्नतों के बाद, गरीबी-अमीरी की दीवार पाट कर, दो दिल-दो परिवार एक हुए। पटना के रहने वाले दोनों परिवारों की रजामंदी से धूम-धाम से शादी हुई। आज दोनों ही परिवार इन दोनों के प्रेम की मजबूती के सामने नतमस्तक हैं, खुश हैं और जब भी भरोसे की मिशाल दी जाती है, एक उदाहरण इनका भी सामने रखा जाता है।