बिहार में मकरसंक्रांति पर्व चूरा-दही, लाई-तिलवा-तिलकुट आदि व्यंजनों के खाने के लिए मशहूर है
बच्चों मकरसंक्रांति आई
खाओ तिलवा लड्डू लाई
लेकर आई झुमरी ताई
सबने इसकी महिमा गाई ।चूरा-दही और मिठाई
खा लो, खा लो मेरे भाई
इसका वर्णन करें परसाईं
चहुँ ओर पतंगें छाई ।करो मजे खूब भाई
पतंगों की दो पेंच लड़ाई
चहुँ ओर है खुशियाँ छाई
सुखी रहो बहनों और भाई ।
आज 14 जनवरी को बिहार सहित सम्पूर्ण भारत में मकरसंक्रांति का पर्व मनाया जा रहा है। यूँ तो वैदिक उत्सव मकरसंक्रांति समूचे भारतवर्ष का पर्व है और देश के हर राज्य में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। पर अपने राज्य बिहार में इसकी एक अलग ही छटा देखने को मिलती है।
‘तिलसंक्रान्ति’ और ‘खिचड़ी पर्व’ के नाम से मशहूर यह त्योहार बच्चों में चूरा-दही, लाई-तिलवा-तिलकुट आदि व्यंजनों के खाने के त्योहार से जाना जाता है। हर वर्ष प्रायः 14 जनवरी को सूर्य उत्तरायण होता है अर्थात पृथ्वी का उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है। सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करने को ‘मकर संक्रांति’ कहा जाता है । इसे उत्तरायणी के नाम से भी जाना जाता है। देश के विभिन्न राज्यों में इस पर्व को अलग-अलग नामों से जाना जाता है ।
पंजाब और हरियाणा में इसे लोहड़ी के रुप में मनाया जाता है, तमिलनाडु में इसे पोंगल के नाम से जाना जाता है, कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे सिर्फ संक्रांति ही कहते हैं, जबकि असम में इसे माघ-बिहू/भोगली-बिहू के नाम से मनाया जाता है।
संक्रांति का अर्थ है बदलाव का समय, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मकर राशि बारह राशियों में दसवीं राशि होती है। संक्रांति उस काल को या तिथि को कहते हैं, जिस दिन सूर्य एक राशि में भ्रमण पूर्ण कर दूसरी राशि में प्रवेश करता है। इसे पुण्यकाल माना जाता है और संक्रमण काल के रूप में भी स्वीकार किया जाता है। मकर संक्रांति पर सूर्य के उत्तरायण होने से दिन बड़े होने लगते हैं और इसी के साथ वसंत ऋतु का आगमन होता है। सूर्य के उत्तरायण होने से व्यक्ति में नई ऊर्जा का संचार होता है और रोग, दोष, संताप से मुक्ति मिलती है।
सूर्य का मकर रेखा से उत्तरी कर्क रेखा की ओर जाना ‘उत्तरायण’ तथा कर्क रेखा से दक्षिणी मकर रेखा की ओर जाना ‘दक्षिणायन’ है। उत्तरायण में दिन बड़े हो जाते हैं तथा रातें छोटी होने लगती हैं। दक्षिणायन में ठीक इसके विपरीत होता है। शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन देवताओं की रात होती है। वैदिक काल में उत्तरायण को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा जाता था। मकर संक्रान्ति के दिन यज्ञ में दिये हव्य को ग्रहण करने के लिए देवता धरती पर अवतरित होते हैं। इसी मार्ग से पुण्यात्माएँ शरीर छोड़कर स्वर्ग आदि लोकों में प्रवेश करती हैं। इसलिए यह आलोक का अवसर माना जाता है। इस दिन पुण्य, दान, जप तथा धार्मिक अनुष्ठानों का अनन्य महत्त्व है और सौ गुणा फलदायी होकर प्राप्त होता है। मकर संक्रान्ति प्रत्येक वर्ष प्रायः 14 जनवरी को पड़ती है।
संस्कृत प्रार्थना के अनुसार “हे सूर्य देव, आपको दण्डवत प्रणाम, आप ही इस जगत् की आँखें हो। आप सारे संसार के आरम्भ का मूल हो, उसके जीवन व नाश का कारण भी आप ही हो।”
सूर्य का प्रकाश जीवन का प्रतीक है। चन्द्रमा भी सूर्य के प्रकाश से आलोकित है। वैदिक युग में सूर्योपासना दिन में तीन बार की जाती थी। हमारे मनीषी इस समय को बहुत ही श्रेष्ठ मानते हैं। इस अवसर पर लोग पवित्र नदियों एवं तीर्थ स्थलों पर स्नान कर आदिदेव भगवान सूर्य से जीवन में सुख व समृद्धि हेतु प्रार्थना व याचना करते हैं।
मकर संक्रान्ति के दिन किसान अपनी अच्छी फसल के लिये ईश्वर को धन्यवाद देकर अपनी अनुकम्पा को सदैव लोगों पर बनाए रखने का आशीर्वाद माँगते हैं। बिहार में मकर संक्रान्ति को खिचड़ी नाम से जाता हैं। इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्त्व है। सूर्य के दक्षिणायन होने के बाद ही मांगलिक कार्य शुरू होते हैं। 14 जनवरी को खरमास समाप्त होने के बाद 15 जनवरी से ही मांगलिक कार्य शुरू हो जाता है।
धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं के अनुसार यह दिन बड़ा ही शुभ माना जाता है। मत्स्यपुराण, भविष्यपुराण एवं देवीपुराण में इसका उल्लेख मिलता है। पुराणों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन ही पतितवावनी गंगा भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं और भागीरथी कहलायी थी। बंगाल में इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। यहाँ गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है। वर्ष में केवल एक दिन मकर संक्रान्ति को यहाँ लोगों की अपार भीड़ होती है। इसीलिए कहा जाता है-“सारे तीरथ बार बार, गंगा सागर एक बार।” यह भी माना जाता है कि इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनिदेव से नाराजगी त्याग कर उनके घर गए थे जिस कारण इस दिन को सुख और समृद्धि का माना जाता है। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है।
महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का ही चयन किया था, जिससे उनका पुनर्जन्म न हो।
मकरसंक्रांति के दिन खिचड़ी दान और खाने के पीछे एक कहानी है। इसके पीछे भगवान शिव के अवतार कहे जाने वाले बाबा गोरखनाथ की कहानी है। खिलजी के आक्रमण के समय नाथ योगियों को खिलजी से संघर्ष के कारण भोजन बनाने का समय नहीं मिल पाता था। इससे योगी अक्सर भूखे रह जाते थे और कमजोर हो रहे थे। इस समस्या का हल निकालने के लिए बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जी को एक साथ पकाने की सलाह दी। यह व्यंजन काफी पौष्टिक और स्वादिष्ट होता था। इससे शरीर को तुरंत उर्जा मिलती थी। नाथ योगियों को यह व्यंजन काफी पसंद आया। बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रख दिया।
लोक-मान्यता है कि मकर संक्रान्ति से सूर्य की गति तिल–तिल बढ़ती है, इसीलिए इस दिन तिल के विभिन्न मिष्ठान बनाकर एक–दूसरे को वितरित की जाती है। इस दिन शुभ मुहूर्त में स्नान और दान करके पुण्य कमाने का महत्व माना जाता है।मान्यता है कि पवित्र माघ महीने में गंगा या नदियों में स्नान से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है । दान करने से तमाम पापों का नाश होता है । मकर संक्रान्ति पर अधिकांशतः नारियाँ ही दान करती हैं। वे पुजारियों को मिट्टी या ताम्र या पीतल के पात्र, जिनमें सुपारी एवं सिक्के रहते हैं, दान करती हैं और अपनी सहेलियों को बुलाया करती हैं तथा उन्हें कुंकुम, हल्दी, सुपारी, ईख के टुकड़े आदि से पूर्ण मिट्टी के पात्र देती हैं।
शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। जैसा कि निम्न श्लोक से स्पष्ठ होता है-
माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।
स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥
इस दिन भगवान को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। तिल और गुड़ का प्रसाद बांटा जाता है। कई स्थानों पर पतंगे उड़ाने की परंपरा भी है जिसकी वजह कुछ घंटे सूर्य के प्रकाश में बिताना है। सर्दी के मौसम में गर्मी तासीर वाली चीज़ें खाना स्वास्थ्य के लिहाज से लाभदायक होता है, अतः इस दिन गुड़ और तिल से बने मिष्ठान खाए जाते हैं।
मंकर संक्रांति में जिन चीज़ों को खाने में शामिल किया जाता है, वह पौष्टिक होने के साथ ही शरीर को गर्म रखने वाले पदार्थ भी हैं। बिहार में मकर संक्रान्ति को खिचड़ी नाम से जाता हैं। इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्त्व है। इस दिन हर घर में खिचड़ी बनाई जाती है, जिसमें उड़द की दाल का प्रयोग जरूर किया जाता है। इसके साथ ही मौसमी सब्जियों का इस्तेमाल भी होता है। दरअसल, ऐसी मान्यता है कि इस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत होती है, तो कड़वी बातों को भुलाकर नई शुरुआत की जाती है। इसलिए गुड़ से बनी चिक्की, लड्डू और, तिल की बर्फी खाई जाती है। बिहार में राजनीतिक पार्टियों की दही चूड़ा की दावत मशहूर है।
इस दिन से शरद ऋतु क्षीण होनी प्रारम्भ हो जाती है। बसन्त के आगमन से स्वास्थ्य का विकास होना प्रारम्भ होता है। इस दिन गंगा नदी में स्नान व सूर्योपासना के बाद ब्राह्मणों को गुड़, चावल और तिल का दान भी अति श्रेष्ठ माना गया है। महाराष्ट्र में ऐसा माना जाता है कि मकर संक्रान्ति से सूर्य की गति तिल–तिल बढ़ती है, इसीलिए इस दिन तिल के विभिन्न मिष्ठान बनाकर एक–दूसरे का वितरित करते हुए शुभ कामनाएँ देकर यह त्योहार मनाया जाता है।
शास्त्रों में लिखा है कि माघ मास में जो व्यक्ति प्रतिदिन विष्णु भगवान की पूजा तिल से करता है और तिल का सेवन करता है, उसके कई जन्मों के पाप कट जाते हैं। अगर व्यक्ति तिल का सेवन नहीं कर पाता है तो सिर्फ तिल-तिल जप करने से भी पुण्य की प्राप्ति होती है। तिल का महत्व मकर संक्रांति में इस कारण भी है कि सूर्य देवता धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। मकर राशि के स्वामी शनि देव हैं, जो सूर्य के पुत्र होने के बावजूद सूर्य से शत्रु भाव रखते हैं। अत: शनि देव के घर में सूर्य की उपस्थिति के दौरान शनि उन्हें कष्ट न दें, इसलिए तिल का दान व सेवन मकर संक्रांति में किया जाता है। चावल, गुड़ एवं उड़द खाने का धार्मिक आधार यह है कि इस समय ये फ़सलें तैयार होकर घर में आती हैं। इन फ़सलों को सूर्य देवता को अर्पित करके उन्हें धन्यवाद दिया जाता है कि “हे देव! आपकी कृपा से यह फ़सल प्राप्त हुई है। अत: पहले आप इसे ग्रहण करें तत्पश्चात् प्रसाद स्वरूप में हमें प्रदान करें, जो हमारे शरीर को उष्मा, बल और पुष्टता प्रदान करे।” शास्त्रों में सूर्य का मकर राशि में परिवर्तन अंधकार का प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है।
तो चलते हैं अंधकार से प्रकाश की ओर।
तमसो माँ ज्योतिर्गमय!
लेखक: अविनाश कुमार सिंह