भग्नावशेष कहता है अंग्रेजों के अत्याचार की कहानी,परबत्ता में दफन है नील किसानों के दर्द की दास्ताँ
खगडिया: मुकेश कुमार मिश्र| प्रदेश में चम्पारण सत्याग्रह के सौ साल पूरे होने के अवसर पर कार्यक्रमों का दौर चल रहा है।इस संदर्भ में परबत्ता का इतिहास भी प्रासंगिक है।स्वतंत्रता के आन्दोलन में परबत्ता के सेनानियों की अहम् भूमिका रही है।पुराना मुंगेर जिला के सभी प्रखंडों में परबत्ता के सेनानियों की सर्वाधिक भागीदारी रही थी।महात्मा गांधी ने 1917 में चम्पारण के नील किसानों की समस्याओं को समझने के लिये राज कुमार शुक्ल के आग्रह पर बिहार का दौरा किया था। लेकिन नील किसानों की यह समस्या केवल चम्पारण के किसानों तक ही सीमित नहीं था।
परबत्ता में भी है नील खेती के भग्नावशेष
परबत्ता प्रखंड में भी अंग्रेजी हुकूमत के समय व्यापक पैमाने पर नील की खेती होती थी।प्रखंड में आज भी इसके भग्नावशेष मौजूद हैं।देवरी पंचायत के अररिया गांव में आज भी नील कोठी के नाम से नील बनाने की फैक्ट्री के अवशेष मौजूद है।गोगरी – नारायणपुर बाँध के बगल में सुर्खी चूना से बने इस फैक्ट्री की मोटी दीवारें , उन दिनों के अत्याचारों की कहानियाँ अपने दामन में लिये हुए आज भी खड़ी है कि इस इलाके के लोग भी नील की खेती के संदर्भ में अंग्रेजों के अत्याचारों से पीड़ित रहे थे।
क्या है स्थिति
अररिया गांव में अवस्थित नील कोठी के नाम से मशहूर यह ढाँचा अब देख रेख के अभाव में विलुप्त होने की कगार पर है।नील कोठी के आस पास की भुमि का अतिक्रमण कर लिया गया है।नील कोठी में पिछले कई दशकों से लोहा का एक बड़ा सा कड़ाही पड़ा था।जिसे तीन वर्ष पूर्व चोरों ने चुरा लिया था।उस कड़ाही की खासियत यह थी कि साठ सालों से खुले में रखे रहने के बावजूद उसमें जंग नहीं लगा था।बाद में ग्रामीणों ने उस कबाड़ी को भी ढूँढ निकाला, जिसने चोरों से वह कड़ाही खरीदा था।लेकिन वह बरामद नहीं हो सका।
कहते हैं ग्रामीण
अररिया में नील कोठी के अतीत और वर्तमान के बारे में बताते हुए गांव के सेवानिवृत शिक्षक सियाशरण यादव ने कहा कि यह नील कोठी आज भी अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचारों की दास्तान बयाँ करती है। वहीं चन्द्रकांत यादव कहते हैं कि इसे प्रशासन के द्वारा संरक्षित किये जाने की आवश्यकता थी। लेकिन अब तक किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया है। ग्रामीण सह आयकर विभाग के सेवानिवृत पदाधिकारी परमानंद यादव का कहना है कि आधुनिक सूचना तकनीक के इस युग में लोगों को अपने घर में पूरे विश्व की सूचना उपलब्ध है। लेकिन इसके बावजूद लोगों को अपने आस पास की चीजों के बारे में जानकारी नहीं है।ग्रामीण विभीषण यादव कहते हैं कि आजादी के आन्दोलन के इन ऐतिहासिक चिन्हों को संरक्षित किया जाना चाहिये।ताकि आने वाली पीढियाँ इस इलाके में स्थित इस जीवंत इतिहास को साक्षात पढ़ें।