देश के सभी देवी शक्ति पीठों में बिहार स्थिति इस प्रसिद्ध मंदिर का अपना एक अलग ही महत्व है
शैलेश कुमार|| देश के सभी देवी शक्ति पीठों में बड़हिया स्थित सिद्ध मंगलापीठ मां बाला त्रिपुर सुंदरी जगदंबा मंदिर का अपना एक अलग ही स्थान है।
संभवत: बिहार का इकलौता 151 फीट संगमरमर युक्त इस पौराणिक मंदिर कीदिव्यता व भव्यता के बीच मिट्टी की पिंड स्वरूप मां बाला त्रिपुर सुंदरी विराजमान हैं।
मान्यता है कि जो भी भक्त श्रद्धा व भक्ति से यहां पहुंचकर आराधना करते हैं उनकी मनोकामना पूर्ण होती है। नगरक्षिका के रूप में बड़हिया वासी हर शुभ कार्य मां के दरबार से ही होकर करते हैं तथा जब भी कोई आफत या विपत्ति आती है तो मां के दर्शन मात्र से ही बिगड़ा काम बन जाता है।
मंदिर की स्थापना व इतिहाससिद्ध मंगलापीठ से जुड़ी ऐतिहासिक दंत कथाओं व ग्रन्थों के अनुसार पाल वंश शासनकाल में इस पीठ की खोज मिथिला के दो ब्राह्मण भाईयों ने की थी। बताया जाता है कि वैष्णो देवी के संस्थापक श्रीधर ओझा नामक एक महान तांत्रिक ने करीब 800 वर्ष पूर्व जम्मू कश्मीर कटरा स्थित मां वैष्णो देवी की स्थापना के बाद बड़हिया ग्राम में मां बाला त्रिपुर सुंदरी की प्राण प्रतिष्ठा मिट्टी की पिंड में की थी। यहां चार पिंडियों में क्रम से त्रिपुर सुंदरी, महा काली, महा लक्ष्मी और महा सरस्वती विराजमान हैं।
मंदिर की वास्तुकला यहां 1992 में मंदिर का नवनिर्माण हुआ। मंदिर निर्माण में स्थानीय ग्रामीणों ने कारसेवा कर सहयोग किया। 151 फीट उंचा संगमरमर युक्त इस मंदिर को देखते ही लोगों को सर नतमस्तक हो जाता है। मंदिर की उपरी तल्ले पर मां दुर्गा के नौ रूपों की स्थापित
प्रतिमा श्रद्धालुओं के लिए आस्था बन चुका है।
दाताओं व श्रद्धालुओं के सहयोग से भक्त श्रीधर
सेवाश्रम का निर्माण कार्य जोर शोर से किया जा रहा है। मंदिर की विशेषता व लोकप्रियता ग्रन्थों के अनुसार प्राचीन काल में बड़हिया
जंगल झाड़ियों से पटा था जहां विषैले सर्प रहते थे। भक्त श्रीधर ओझा ने त्रिपुर सुंदरी से यह वरदान प्राप्त किया था कि यहां के जो निवासी जगदंबा का स्मरण कर कुएं का नीर खींचकर सर्पदंश से पीड़ित प्राणी को पान कराएंगे वह सर्प विष से तत्काल मुक्त हो जाएगा। यह वरदान आज भी सफल माना जा रहा है। मंदिर के पुरोहितों के अनुसार अबतक हजारों सर्पदंश पीड़ित व्यक्ति मंदिर के पौराणिक कुएं का नीर पीकर बच गए हैं।