समाजसेवी और शिक्षक घनश्याम शुकुल के निधन पर पूरा सिवान मना रहा है शोक
अपने ही संगीत महाविद्यालय के दरवाजे पर अक्सर उसे झाडू लगाते भी लोग देख लेते थे.
सीवान में शाहबुद्दीन जैसा खून्खार अपराधी हुआ। चन्द्रशेखर जैसा साहसी युवा नेता हुआ। पहले राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद हुए तो मशहूर ठग नटवरलाल भी वहीं की विभूति रहे। मगर मुझसे पूछा जाये कि सीवान का असली मर्द कौन था तो मैं इस साधारण से दिखने वाले बुजुर्ग घनश्याम शुकुल का नाम लूंगा।
कल इस बुजुर्ग का देहावसान हो गया। मेरा अनुमान है कि इस खबर को सुनकर सीवान के पन्जवार के आसपास के कई गांवों में शायद ही कोई लड़की, किशोरी या युवती ऐसी हो जो न रोई हो। क्योंकि यह बुजुर्ग पिछ्ले 20-30 साल से एक ही काम करता था। इस इलाके की लड़कियों की आंखों में किसी सपने को जगा देता था।
पहले इसने एक कन्या विद्यालय खुलवाया। फिर लड़कियों के लिये संगीत महाविद्यालय। फिर एक दिन किसी किशोरी ने टोक दिया कि गुरुजी हमनी के किरकेट नईखे खेली तो एक स्पोर्ट्स अकादमी खुलवा दिया। इनमें से कई काम इस व्यक्ति ने खुद के पैसों से किये और न सिर्फ शुरू किया बल्कि एक सामान्य कार्यकर्ता की तरह उसे आगे बढ़ाने में जुटा रहा। अपने ही संगीत महाविद्यालय के दरवाजे पर अक्सर उसे झाडू लगाते भी लोग देख लेते थे।
मेरी कभी मुलाकात नहीं हुई। मगर एक खबर के सिलसिले में फोन पर बात हुई। उस रोज उन्होने खुद तो थोड़ी सी बातचीत की। अपने स्पोर्ट्स एकेडमी की कम से कम 40 लड़कियों से बात करा दी। एकरो से बतिया ली, एकरो से बतिया ली। मैं थक गया था कि एक ही स्टोरी के लिये कितनी लड़कियों से बात करूं। खबर में दो चार लड़कियों की ही कहानी दे सकता था। मगर उनके लिये तो सब बराबर थे। किसी को कैसे छोड़ देते।
कल इस धरती को छोड़ गये तो फ़ेसबुक पर श्रद्धांजलियों की बाढ़ आ गयी। एक सामान्य से दिखने वाले व्यक्ति को लोगों ने इतना याद किया कि देखकर मन भर आया। निराला जी जो उनके काफी करीबी थे और उनकी वजह से ही मुझे इनके बारे में पता चला था, कई बार कहते थे इनको पटना बुलाकर इनके अनुभवों को सुनना चाहिये। कई दफा योजना बनी मगर हो न सका। खैर अब तो वे चले ही गये। मगर यह बात अब भी मन में है कि महानता का यह सरल और साधारण रूप ईश्वर कभी-कभी बनाता है।
लेख साभार : पुष्य मित्र