नीतीश, मोदी और लालू के अलावा बिहार चुनाव में जनता के पास क्या है विकल्प?
कहा जाता है बिहार के हर घर में एक नेता होता है , राज्य में पार्टियां और संगठन तो बहुत से सक्रीय है, पर क्या वो विकल्प देने में सफल हो पाएंगे ?
बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक है, वर्तमान में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार है पर सच्चाई ये है कि – भाजपा को छोड़ राजद के साथ गठबंधन और फिर राजद को छोड़ भाजपा के साथ वापस आने के कारण उनके छवि का बहुत नुकसान हुआ है| उन्हें कुर्सी कुमार भी कहा जा रहा है जिसे बिहार की समस्याओं से ज्यादा चिंता अपनी कुर्सी बचाने की है ।
पिछले 15 सालों के चुनाव परिणाम भी देखे जाए तो उनके अबतक के 10-15% वोट जिस गठबंधन को मिलते है उसको फायदा मिल जाता है| उनकी अपनी खुद की हैसियत 2014 के लोकसभा चुनावो में अकेले अपने बल पर चुनाव लड़ने से पता चल ही गई थी। वो केवल 2 सीट ही बचा पाए थे।
2015 में नीतीश के राजद से हाथ मिलाने के बाद भाजपा भी रामविलास पासवान की लोजपा व अन्य कई छोटी पार्टीयो के साथ चुनाव लड़ी थी, मोदी जी 2014 लोकसभा चुनाव में बम्पर बहुमत से जीते भी थे, मगर बिहार में उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा था। हालाँकि उनका वोट प्रतिशत बढ़ गया था|इसके बावजूद भाजपा को ये समझ आ गया कि बिना नीतीश बिहार में सरकार बना पाना उनके लिए एक सपना है। यही कारण है कि 2015 के चुनाव परिणाम के बाद से ही भाजपा नीतीश पर दवाब बनाने लगी और अंत मे सरकार बनाने में सफल भी हो गयी ।
वर्तमान मुख्य विपक्षी पार्टी – राष्ट्रीय जनता दल
लालू जी जेल में है और चारा घोटाले की सज़ा काट रहे है| वैसे तो 2010 विधानसभा चुनावो में ही राजद का खात्मा हो गया था पर 2015 में नीतीश के लालू यादव से गठबंधन करने से राजद और उनके दोनों बेटे जो राजनीति में कदम रखने को तैयार हो रहे थे, उन्हें जैसे संजीवनी मिल गयी ।
नितीश के साथ गठबंधन से तेजस्वी उप-मुख्यमंत्री और तेज प्रताप स्वास्थ्य मंत्री बन गए और राजद एक बार फिर जिन्दा हो गयी। वैसे तेजस्वी यादव ने उसके बाद से ही लालू यादव की अनुपस्थिति में काफी परिपक्वता दिखाई भी है, पर उनपर या उनकी पार्टी राजद पर उनके परंपरागत वोट बैंक के इलावा जनता विश्वास करे, इसका एक भी कारण दूर-दूर तक दिखाई नही देता।
पर क्या इन्ही तीनों पार्टियों के बीच फंस के रह जायेगा बिहार का भविष्य?
बिहार के लोगों के पास क्या इन तीन पार्टियों के इलावा कोई विकल्प है जिसपर जनता को विश्वास हो पाएगा और जनता कुछ उलटफेर कर पायेगी? कहा जाता है बिहार के हर घर में एक नेता होता है , राज्य में पार्टियां और संगठन तो बहुत से सक्रीय है, पर क्या वो विकल्प देने में सफल हो पाएंगे ?
1) पप्पू यादव – शुरुआत करते है पप्पू यादव की नई पार्टी जन अधिकार पार्टी – जाप से , पप्पू यादव का अतीत भी कुछ अच्छा तो नही रहा है, पर हां, वर्तमान में वो बिहार में रोबिन हुड की तरह काम करते नज़र आते हैं| किसानों, विद्यार्थियों व गरीबो के मुद्दे उठाते रहते हैं। पिछले कुछ सालों में वो बिहार के बाढ़ में भी वो खूब सक्रिय रहे और बिहार की किसी भी नेता से ज़्यादा वो जमीन पे घूमे हैं| हालांकि 2019 के चुनावों में वो और उनकी पत्नी दोनों लोकसभा चुनाव हार गए थे – तो यह कहना कि वो अकेले इन बड़ी पार्टीयो का विकल्प बन सकते है, ऐसा निकट भविष्य में तो संभव नहीं दिख रहा है।
2) प्रशांत किशोर – जदयू से बाहर का रास्ता दिखाने के बाद से ही प्रशांत किशोर बिहार की राजनीति में सक्रिय हो गए हैं| वो बात बिहार की मुहिम के माध्यम से बिहार का वर्तमान पिछड़ा हाल बाकी राज्यों की तुलना करके लगातार बता व दिखा रहे हैं – मगर क्या सिर्फ इतना करके वो इन बड़ी पार्टीयो का विकल्प बन पाएंगे? अभी के समय में तो ये कहना मुश्किल है।
3) प्लूरल्स – पुष्पम प्रिया चौधरी, कुछ ही दिन पहले बिहार के लोग जब सो के उठे तो उन्होंने अखबार के पूरे पेज पर उनका विज्ञापन देखा और सुर्खियाँ भी बटोरी, फिलहाल बिहार के हालात बदलने और सरकार बनाने का दावा करने वाली दरभंगा की पुष्पम; आजकल पूरे बिहार का भ्रमण कर पुराने गौरवशाली बिहार की बाते सोशल मिडिया के माध्यम से साझा कर रही है| मगर सवाल है- क्या ऐसा करके वो बिहार के लोगो को कोई उम्मीद दे पायेंगीं? अभी तक तो बिहार के इस मुख्यमंत्री उम्मीदवार से सत्ता काफी दूर दिख रही है|
इन सब के अलावा भी बहुत से छोटे दल व संगठन हैं- जैसे उपेंद्र कुशवाहा कि रालोसपा, दरभंगा , मधुबनी में सक्रीय मिथिला स्टूडेंट्स यूनियन (MSU), शरद यादव की लोकतान्त्रिक जनता दल पार्टी, आम आदमी पार्टी, पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा, सन ऑफ़ मल्लाह कहे जाने वाले मुकेश सहनी की विकासशील इंसाफ पार्टी| मगर ये सब अकेले इन बड़ी और पुरानी पार्टियों से लोहा लेने में संभव नही दिख पा रहे हैं।
अभी कुछ दिन पहले भाजपा के पूर्व दिग्गज और वाजपेयी जी की सरकार में रहे वित्त व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा जी ने बिहार में चुनावी विकल्प देने की बात कही है ।
सिन्हा साहब की उम्र तो बहुत हो गयी है पर उनमें ऊर्जा की कमी नही है| जनता में उनकी स्वच्छ छवि भी है जिसपर विश्ववास किया जा सकता है और उम्र के इस पड़ाव पर उनका बिहार के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा भी देखने लायक है।
उनके साथ कई पुराने व अनुभवी नेता भी साथ आये हैं – जैसे पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र यादव, पूर्व बिहार मंत्री नरेंद्र सिंह, रेनू कुशवाहा, पूर्व सांसद अरुण कुमार और नागमणि जैसे नेता उनके साथ शामिल हुए थे|
सिन्हा ने नए फ्रंट के ऐलान के साथ कहा कि हम उन सभी का स्वागत करेंगे, जो हमारे साथ जुड़ना चाहते हैं| अपने इस बयान के जरिए उन्होंने बिहार में महागठबंधन के साथियों से जुड़ने का दरवाजा खुला रखा है| देखना होगा कि आगे जाकर कितनी छोटी-छोटी पार्टियों और विचारधारा को साथ लाकर एक मजबूत मोर्चे बनता है| मगर सवाल है कि क्या इतने कम समय में वो सभी को साथ एक मंच पर लाकर कुछ चमत्कार कर पाएंगे?
(इस लेख में व्यक्त की कई विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं)