नरेन्द्र मोदी को बिहार से नहीं, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से है व्यक्तिगत दुश्मनी
केंद्र सरकार ने बिहार के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए कोई विशेष मदद नहीं की
कोरोना वायरस के कारण सभी परेसान है| इसी बीच ट्वीटर से बिहार सरकार के एक मंत्री संजय झा ने एक ऐसा खुलासा किया जिसे जानकार पूरा बिहार केंद्र सरकार को कोसने लगा| बात ही कुछ ऐसी थी| केंद्र सरकार ने गरीबी और पिछड़ेपन का मार झेल रहे बिहार को विशेष मदद करने के बजाये, बिहार में अंग्रेज के ज़माने से स्थापित जमालपुर का इंडियन रेलवे इंस्टीटयूट ऑफ मैकेनिकल एंड इलेक्ट्रिकल इंजीनिर्यंरग, जहां रेलवे के अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जाता है, उसे लखनऊ शिफ्ट करने का फैसला कर लिया|
केंद्र सरकार के इस फैसले की खबर जब सबके सामने आया तो सियासी भूचाल मच गया| बीजेपी के सहयोगी जदयू ने भी इसका खुलकर विरोध जताया| तब बिहार सरकार में ही उपमुख्यमंत्री और बीजेपी नेता सुशील मोदी ने डैमेज कण्ट्रोल करने की कोशिश करते हुए शाम को एक ट्वीट किया कि यह खबर भ्रामक है, मगर यह भी माना कि इसको लेकर रेल मंत्री पियूष गोएल को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पत्र लिखा था|
उसके बाद रेल मंत्रालय से आनन-फानन में खबर आई की इस फैसले को रद्द कर दिया गया है और इरिमी को लखनऊ शिफ्ट करने के जगह अब वैसा ही एक संस्था लखनऊ में स्थापित किया जायेगा|
केंद्र सरकार ने अपने फैसले को वापस तो ले लिया मगर सवाल है कि केंद्र सरकार बिहार के साथ ऐसा करने की सोच भी कैसे सकती है?
परिवार का कोई सदस्य जब पीछे छूट जाये तो परिवार के मुखिय उसका हाथ पकड़ कर अपने साथ लाने का कोशिश करता है| मगर केंद्र सरकार बिहार जैसे अपने सबसे पिछड़े प्रदेश को विशेष मदद देने की बात तो छोड़िये, इसके अपने वाजिब हक को भी किसी दुसरे राज्य को देने का कोशिश करती है|
बिहार ने बीजेपी और उसके सहयोगी पार्टी को पिछले संसदिये चुनाव में 40 में से रिकॉर्ड 39 सीटें दिए हैं| मगर उसके बाद भी बिहार को कोई विशेष मदद नहीं की गयी|
यह पहला मौका नहीं है| इससे पहले भी केंद्र पर बिहार को नजरअंदाज़ करने का आरोप विपक्ष के साथ खुद उसके सहयोगी जदयू लगाती रही है|
बिहार को बाढ़ राहत कोष के तहत भी अन्य राज्य के तुलना में कम फण्ड दिया गया| बिहार सरकार राज्य में इन्वेस्टमेंट लाने में तो विफल रही ही है, मगर केंद्र सरकार ने भी कभी इसके लिए ध्यान नहीं दिया| चमकी से बिहार में सैकड़ों बच्चें के मौत के बाद भी स्वस्थ्य व्यवस्था को लेकर भी कोई ध्यान नहीं दिया गया| यहाँ तक कि उत्तर बिहार में प्रस्तावित एम्स अस्पताल भी वर्षों से कागजों में ही है| मुख्यमंत्री द्वारा पटना यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनाने की मांग को भी प्रधानमंत्री ने ठुकरा दिया| यहाँ तक कि यूपीए के समय दो सेंट्रल यूनिवर्सिटी को भी वर्तमान केंद्र सरकार विकसित करने में विफल रही है|
बिहार से नरेन्द्र मोदी ने कई वादे किये थे मगर सब वादे चुनावी थे| अब सब जुमला सा लगता है| राजनीति के जानकरों के अनुसार नरेन्द्र मोदी को बिहार से नहीं, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से व्यक्तिगत दुश्मनी है| भले वे साथ सरकार में है मगर पर्दे के पीछे राजनितिक लड़ाई चल रही है| नरेन्द्र मोदी को बिहार चुनाव से ज्यादा नीतीश कुमार के राजनितिक वजूद को ख़त्म करना प्राथमिकता में दीखता है| यह कई बार देखा गया है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जिसके लिए केंद्र सरकार से अपील करती है, केंद्र सरकार उससे ठीक उलटा फैसला लेते हैं| जैसे आप कोटा से छात्रों को बिहार लाने का मामला देख लीजिये| नीतीश कुमार ने केंद्र को पत्र लिखा की लॉकडाउन का पालन करते हुए सभी राज्य को निर्देश दें कि जो जहाँ है वही रहने दिया जाये| मगर मोदी सरकार ने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को कोटा बस भेजने कि इज़ाज़त दे दी| इसके बाद इस मामले में नीतीश कुमार की बहुत किरकिरी हुई थी| ऐसे कई उदहारण मिल जायेंगे आपको जिसमे आपको लगेगा कि केंद्र सरकार जान-बूझकर नीतीश कुमार को नजरअंदाज़ कर रही है|
खैर, बात जो भी हो मगर यह सच है कि डबल इंजन की सरकार होने के बाद भी बिहार को कोई विशेष लाभ नहीं मिला| उसके उपर ऐसे फैसले की जानकारी मिलने पर लगता है कि 39 सांसदों को विजयी बनाकर बिहार ने जो शक्ति इस सरकार को दी है, वही शक्ति का उपयोग बिहार के हक मारने में किया जा रहा है|