जैसे दिल्‍ली को लूटियन ने बनाया, बिहार के राजनगर को ब्रिटिश वास्तुकार कोरनी ने बनाया था

मधुबनी शहर से 15 किलोमीटर उत्तर खंडवाला राजवंश की आखिरी डयोढी राजनगर का निर्माण महाराजा महेश्वर सिंह के छोटे बेटे रामेश्वर सिंह के लिए कराया गया था। जिस प्रकार दिल्‍ली को लूटियन ने बनाया, उसी प्रकार राजनगर को ब्रिटिश वास्तुकार डॉ एम ए कोरनी ने मन से बनाया था। कहा जाता है कि कोरनी तिरहुत के कर्जदार थे और कर्ज चुकाने के बदले उन्‍होंने अपने हुनर को यहां ऐसे उकेरा कि वो वास्‍तुविदों के आदर्श बन गये।

दरभंगा राज के कर्जदार कोरनी कर्ज चुकाने के बदले एक ऐसी चीज देने का वादा किया था, जो वो तब तक किसी भी भवन में नहीं प्रयोग किये थे।

उनका दावा था कि यह दुनिया का सबसे मजबूत खंभा है और इसपर टिका महल कभी ध्वस्त नहीं होगा। सबने सुना है टाइटैनिक को बनानेवाले भी उसे कभी न डूबनेवाला जहाज कहा था। वो अपने पहले सफर में ही डूब गया और बचा रहा तो केवल उसका मलबा और इतिहास। इस सचिवालय ने भी 1934 में भूकंप का केंद्र होने का प्रकोप झेला। महल तो ध्वस्त हो गया, लेकिन यह खंभा कोरनी को याद करता हुआ आज भी खडा है।

सचिवालय के दरबाजे पर हाथी की प्रतिमा की कहानी भी कम रोचक नहीं है। दरअसल जब ब्रिटिश वास्तुदविद एमके कोरनी ने रामेश्वेर सिंह को सीमेंट की खूबी यह कहते हुए बतायी कि यह इतना मजबूत ढांचा देगा कि हाथी भी तोड नहीं पायेगा, तो उन्होंने कोरनी से पहले सीमेंट से एक हाथी बनाकर दिखाने को कहा।

कोरनी ने वहीं एक हाथी बनाया, जो भारत में सीमेंट से बना पहला ढांचा है। भारत में सबसे पहले सीमेंट का प्रयोग राजनगर के भवन निर्माण में यहीं हुआ। रामेश्वर सिंह ने इस ढांचे को देखकर कहा कि इसे तोड़ा नहीं जाये, बल्कि सचिवालय का स्वरूप ही इससे जोड़ दिखा जाये। कोरनी ने ऐसा ही किया। यह सीमेंट का हाथी उस सचिवालय का प्रवेश दरबाजा बन गया।

आज सीमेंट खरीदते वक्‍त हम जरूर जर्मन और विदेशी तकनीक पर विश्वास करते हैं और महंगा नहीं सबसे बेहतर का नारा बुलंद करते हैं, लेकिन सीमेंट की तकनीक और इसका इतिहास तो राजनगर में ही देखा जा सकता है।

इस महल के संरक्षण एवं संवर्द्धन के प्रति जहां राज्‍य सरकार उदासीन है, वहीं केद्र सरकार को तो मानो पता भी नहीं है कि इस देश में कोई ऐसी जगह भी है।

Photo Courtesy: दो घुमक्कर

 

पर्यटन के किसी मानचित्र पर राजनगर आज तक नहीं होना अपने आपमे ये बताने को काफी है कि हमारे धरोहरों को कैसे उपेक्षित किया जा रहा और रही हम सबकी बात तो कल ही राजनगर के स्थानीय लोगों से पता चला कि इस महल की दीवालों में से ईंट निकाल कितनों ने अपना घर बनाया है।

साभार: राकेश कुमार झा (लेखक craftvala.com के संस्थापक हैं) 

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