अश्लील भोजपुरी गानों के खिलाफ आरा से दिल्ली तक पैदल मार्च
आरा (भोजपुर) के एक जाने-माने पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता व रंगकर्मी अपनी मातृभाषा भोजपुरी में बन रहे गीतों व फिल्मों के ज़रिए फैल रही अश्लीलता से क्षुब्ध हैं। एक मीठी भाषा को लोग अश्लील भाषा कहने लगे हैं। मातृभाषा सिर्फ एक भाषा नहीं होती, यह हमारे संस्कार से जुड़ी होती है। हमारी भाषा हमारी संस्कृति है। इसे अश्लील तरीके से पेश कर हमारी संस्कृति को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की जा रही है। सिर्फ भाषा ही नहीं, इससे राज्य की बदनामी भी करने की कोशिश हो रही है। इस कोशिश के विरोध में ये अपने शहर आरा से देश की राजधानी नई दिल्ली के लिए पैदल निकलने वाले हैं।
जी हाँ! आरण्य देवी माँ के नगर ‘आरा’ से दिल्ली तक की पैदल यात्रा, जो कम से कम 1100 से 1200 किलोमीटर की यात्रा होगी और वो भी अपनी भाषा की हो रही बदनामी से लड़ने के लिए। यह वाकई अद्भुत प्रयास है जिसे अंजाम दे रहे हैं विवेक दीप पाठक जी।
विवेक शिवगंज, आरा के निवासी हैं। पेशे से पत्रकार हैं। सामाजिक कार्यों में हमेशा से रुचि रही है। शहर के विभिन्न अभियानों में सक्रिय भागीदारी निभाते आ रहे हैं। रमना बचाओ अभियान के तहत रमना मैदान की साफ-सफाई, वृक्षारोपण और रमना मैदान के अतिक्रमण से मुक्ति के लिए अभियान में सक्रिय रहे हैं। इसके साथ ही ‘ऐतिहासिक धरोहर बचाओ अभियान’ के तहत भोजपुर जिले के कुछ पुराने धरोहरों के आस-पास सफाई, वृक्षारोपण के साथ कई जागरूकता अभियानों में भी भागीदार रहे हैं।
इसके अलावा इन्होंने 28 की उम्र में ही 27 बार रक्तदान कर लिया है और आगे भी यह प्रयास जारी रखने की कामना रखते हैं।
“भोजपुरी भाषा को लेके अभियान की शुरुआत कैसे हुई?” के जवाब में विवेक कहते हैं कि “चूँकि मैं जिस जिले में रहता हूँ वो भोजपुरी भाषी है। ये भाषा न केवल एक जिले की या राज्य में बोली जाने वाली भाषा है बल्कि ये भारत के अलावे कई और भी देशों में बोली जाती है। भारत के अलावा नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, फिजी, मॉरिशस, अमेरिका, त्रिनिनाद और टोबैगो तथा सुरीनाम आदि देशों में भी भोजपुरी भाषा बोली जाती है।
जिस भाषा की पहचान अंतराष्ट्रीय स्तर पर है वही हमारे क्षेत्र में इस भाषा को कोई संवैधानिक दर्जा प्राप्त नहीं है। यहाँ के लोग अब इस भाषा का इस्तेमाल करते हुए खुद को रोकते हैं। कई जगहों पर लोग इसे गवारों की भाषा समझने लगे हैं। आपसी बातचीत में लोग हिंदी का प्रयोग करते हैं। अपनी ही भाषा के प्रति इस उपेक्षा की भावना को देख मन दुखी हुआ और तभी मैंने ये फैसला किया कि इसके लिए कुछ करना होगा। समाचार पत्रों के जरिये आये दिन मुझे ये देखने और पढ़ने को मिल जाता था कि भोजपुरी भाषा के लिए कई जगह आंदोलन किये गए, कितने ही धरने-प्रदर्शन हुए। बिहार से लेकर दिल्ली तक इस भाषा के हक की लड़ाई लड़ी गई पर कोई उचित परिणाम नहीं मिल सका।
कितने ही ऐसे गायक बाजार में आये जिन्होंने हद से ज्यादा मर्यादा तोड़ते हुए भोजपुरी में ऐसे-ऐसे अश्लील गीत गाये जिससे हमारी यह मीठी बोली गंदी होती गई। इनके विरुद्ध भी कोई उचित कार्यवाई होती नहीं दिखती।
मेरी नज़र में इसका एक कारण लोगों में जागरूकता की कमी भी है। इसलिए मैंने एक दिन आरा से नई दिल्ली पैदल जाने का निर्णय लिया, जिसके साथ मैं भोजपुरी भाषी इलाकों में जागरूकता अभियान भी चला सकूँ।”
इस अभियान को एक नाम दिया गया है- “हमार भोजपुरी, हमार सम्मान”। इसके तहत कुछ मांगो को लेकर आरा से नई दिल्ली तक पैदल यात्रा विवेक करेंगे, जो लगभग 1100 से 1200 किलोमीटर की होगी। इस अभियान में लोगों को जागरूक करने का काम भी किया जाएगा।कुछ साल पहले गानों को ऑडियो कैसेट के जरिये बाजार में लाया जाता था। फिर समय परिवर्तन के साथ सीडी कैसेट,डीवीडी कैसेट आये। जमाना बदलता गया पेन ड्राइव में गाने आने लगे। पर अब पूरा अल्बम सोशल साइट पर आने लगा है और सबसे ज्यादा यूट्यूब का प्रयोग होने लगा है। यहां लोग कुछ भी गाकर डाल देते हैं, बिना सोचे कि इससे दुनिया की नज़र में आपकी भाषा किस रूप में सामने आ रही है। भोजपुरी इंडस्ट्री में कोई सेंसर बोर्ड के न होने से इसमें अश्लीलता की हद पार कर दी गई है।
ऐसे में गायक और लेखक अपना बचाव करते हुए सीधे अपने श्रोता को निशाना बनाते हैं। वो कहते हैं कि लोग सुन रहे, देख रहे तभी तो हम दिखा रहे हैं। इन्हीं बातों को लेकर लोगों को जागरूक करना है।
इस अभियान में 3 मुख्य बिंदु हैं।
1.भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्री में सेंसर बोर्ड का गठन हो।
2.स्त्री,जाति और धर्म विशेष पर अश्लील गाने या लिखने वालों पर कानूनी कार्यवाही की जाए जिसमें सज़ा के साथ जुर्माना भी हो।
3.भोजपुरी भाषा को अष्टम सूची में शामिल किया जाए ताकि इसे भी एक सम्मान मिले और इसके प्रचार-प्रसार हेतु सरकार द्वारा विशेष प्रयास किया जाए।
इन्हीं बिंदुओं के साथ 29 अक्टूबर को सुबह 8 बजे माँ आरण्यदेवी का आशीर्वाद लेके रमना मैदान, आरा से इस यात्रा की शुरुआत होगी।
अभी तक इन्हें सिर्फ परिवार का सहयोग मिला है। इसके अलावे बहुत ऐसे लोग भी मिले जिन्होंने सच से अवगत कराया जिससे अभियान को जमीनी स्तर पर पहुंचाने में निश्चित ही मदद मिलेगी।
हालाँकि कुछ लोगों ने मनोबल तोड़ने का प्रयास भी किया है। कुछ ने सिरफिरा तो कुछ ने बावला घोषित कर दिया है। पर विवेक अपने इस अभियान को लेकर दृढ़ निश्चयी हैं और अपने अटल विश्वास के साथ आगे बढ़ रहे हैं।
विवेक मानते हैं कि इस अभियान में सबसे ज्यादा जरूरत लोगों के सहयोग की है। चूंकि यह अभियान किसी संगठन के तहत नहीं है, यह एक व्यक्तिगत प्रयास है। यह पदयात्रा 40 से 50 दिनों की लम्बी यात्रा होगी। अतः दिल्ली तक पहुंचने के लिए अर्थ की भी आवश्यकता पड़ेगी। लोगों से आर्थिक सहयोग की भी उम्मीद है।
इसके अलावा लोगों का सहयोग इन्हें रास्ते में भी चाहिए ताकि मनोबल बना रहे। साथ ही अभियान की सफलता हेतु हस्ताक्षर अभियान भी चलाये जाएंगे, जिसमें निश्चित ही जनता का साथ चाहिए होगा। तन-मन-धन से इस कार्य को पूरा करने के लिए लोगों का सहयोग चाहिए। सहयोग हेतु फेसबुक पर ‘विवेक दीप पाठक’ के पर्सनल एकाउंट या ‘हमार भोजपुरी हमार सम्मान’ पेज पर कनेक्ट किया जा सकता है।