हमारा पहिला प्यार: लव लैटर लिक्खा तो जाएगा, लेकिन खून से नहीं जैटर के पेन से
नया-नया जवान हो रहे थे हम..! ई ऊ उमर है जिसमें लौंडा बाप-माई का कम, कुमार शानू को ज्यादा सुनता है..! हमारा फेवरेट हीरो भी मित्थुन चकरवर्ती से सारुक्खान हो रहा था.. राहुल राय का आशिकी इतना बार देख डाले, जितना बार ऊ खुद्दो नहीं देखा होगा.. उसी टेम्पू में बैठना शुरू कर दिए थे जिसमें “जीता था जिसके लिए” बजता था..
कापी के पहिला पन्ना पर “जय माँ सरस्वती” के बदले अब “प्यार ही पूजा है” लिखने लग गए थे!
ऊ का है कि अब हम जवान हो रहे थे.. इमें नया कोनो बात नहीं है! सब एक-ना-एक दिन जवान होता है लेकिन इस बार चूंकि हम जवान हो रहे थे, इसलिए मौका इस्पेशल था.. अब हमको शिशु मंदिर के विद्यार्थी पर हँसी आता था, वहां भईया/बहन चलता था..! बताइए ई कोनो बात हुआ भला.?
उनका छोड़िए, हमरा सुनिए..! हमको अब प्यार होने लगा था, सच्चा वाला..! माँ कसम बता रहे हैं, एकदम सच्चा वाला..! कभी मन करता था रात के एक बजे जाके उसके घर के सामने आई लव यू चिल्ला आएं या खून से लवलैटर लिख के मोहतरमा की खिदमत में पेश कर आएं! अब हम कोई अमिता बचन तो थे नहीं कि हम चिल्ला आएँगे और मोहल्ला वाला हमको कूटने से छोड़ देगा.. आ भईया, देह में खुद्दे साला 250 ग्राम खून था, उसमें कितना का लैटर लिखें आ कितना से अपना शरीर चलाएं!
फैसला हुआ कि लव लैटर लिक्खा तो जाएगा, लेकिन खून से नहीं जैटर के पेन से!
लंगोटिया यार सब में चंदा लगाके जैटर का पेन आया आ पांच रुपया में प्यार-भरी शायरी का किताब, जिसके सबसे लास्ट वाले पियरका पन्ना पर डाक्टर हाशमी का हॉस्पिटल चलता था.. रात भर डिबिया के रोशनी में बैठ के खूब आँख फोड़े ता चार ठो शायरी का सलेक्शन हुआ! लैटर में क्या-क्या लिखा जाएगा, इसके लिए कई बार पैनल डिस्कशन बैठा! अंत में न्यायमूर्ति ने फैसला सुनाया कि जो रोमियो है वही अपने अच्छर में लैटर लिखेगा..! हमरा अच्छर तो जैसे उड़ता हुआ मच्छर! हम बोले – काहे हमरा घर बसने से पहिले ही आग लगा रहे हो भलमानुषों! अंत में एगो दोस्त तैयार हुआ, इस शर्त पर कि जब अगली बार भीसीआर चलेगा तो उसके लिए स्पेशल “माँ तुझे सलाम” चलाया जाएगा आ उसको पांच पुड़िया टिंकू सुपारी भेंट किया जाएगा! चलो ईहो मंजूर..!
बेटा, हमरा लैटर भी तैयार हो गया! चार-पांच ठो और लैटर उससे लिखवाए भी लेकिन फीलिंग नहीं आ रहा था जी.. लाजो लगता था ना इसलिए सब बोल नहीं पाते थे.. फिर अपने से लैटर लिखने का कोशिश करने लग गए.. कसम मजनूँ के मुहब्बत की, का तगड़ा लैटर लिखाया बे. एकदम लग रहा था दिल का सब अरमान पन्ना पर उलट दिए हैं..
मतलब एक बार कटरीना भी पढ़ ले तो फिलिम का शूटिंग छोड़ के मगध एक्सप्रेस पकड़ के बिहार आ जाए!
लैटर भेजने के लिए अब मेघदूतम की सर्चिंग शुरू हुई.. ई काम सबसे रिस्की होता है. इसी में पकड़ाने का सबसे बड़ा झंझट होता है. अंत में एक सहेली को राजी किया गया, ऊ लैटर लेके चल दी हमरी मुहब्बत के पास..
साला, ऊ लैटर ही का जो धराए ना! हाय रे हमरा फूटल किस्मत! हेडमास्टर साहेब खुद्दे धर लिए थे.. पूरा जबार में मास्टर साहेब लव-लैटर की हैण्डराइटिंग पकड़ने के मामले में फोरेंसिक एक्सपर्ट थे!! अब हमरा का होगा रे ससुरा..? स्कूलो छूटेगा आ पिताश्री अलगे कूटेंगे! हैण्डराइटिंग मिलाया गया और हम रो-धो के बच निकले.. अपनी इस असफलता का मलाल मास्टर साहेब को आज भी है.. ससुरा, हमरा पहिला प्यार अधूरा ही रह गया.. ये तो हम अभी शुरुए हुए थे.. ई तो बस बाल-काण्ड था! अभी मोबाइल, इन्टरनेट, फेसबुक-भाट्सेप, जियो सब का आना तो बाकिए है..!
कल ही गाँव से एगो दोस का फोन आया है कि हमारे पहले प्यार के बेटे का आज छठिहार हो रहा है!! और हम, हम चैटिंग में बिजी थे फेसबुक पर किसी एंजेल प्रिया से…
– अमन आकाश, सीतामढ़ी
एम.फिल. (मीडिया स्टडीज)
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल