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पेपर लीक: किसी के सपने टूटे, किसी के हिम्मत – कोई लौट रहा गाँव पिता का किराना दुकान चलाने

"इस बात से अनजान था कि ये तो बिहार है| यहां या तो नौकरी खरीदी जाती है या तो क्वेश्चन आउट कर दिया जाता है।"

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स्टेशन पर हूं आंखे नम है।कल शाम को दोस्तों से मिला और मिलकर आंखे नम हो गई शायद ये आखिरी मुलाकात थी।5 साल का सफर इन लोगों के साथ कैसे बीत गया पता ही नहीं चला।रोज शाम को चाय के टफरी पर मिलना दुनिया भर की बातें, पढ़ाई, नौकरी, कैरियर! ऐसा नहीं है कि मैं कहीं दूर जा रहा हूं लेकिन जब स्टूडेंट लाइफ निकल जाने के बाद कौन कहां रहेंगे किसे पता।

मुझे आज भी याद है कि 5 साल पहले मैं जब पटना आया था एक छोटे से गांव का लड़का है शहर में बहुत अजीब लगता था। इससे पहले जिला मुख्यालय जाता था वो कभी-कभी,किसे पता था गांव का वह छोटा लड़का शहर में बहुत सारे दोस्त बना लेगा।कोचिंग के दोस्त,एक साथ एक ही बिल्डिंग में रहने वाले दोस्त,लाइब्रेरी के दोस्त, ऑनलाइन क्लास के दोस्त। आज जब समान पैक कर था तो किचन में पड़े 5–6 पीस आलू और थोड़े से बचे चावल पड़ोस में रहने वाले मित्र को दे दिया।

बैचलर भात, दाल, चोखा के अलावा और बना ही क्या पाता है।करंट अफेयर्स, प्रतियोगिता दर्पण न जाने ऐसे कई मैगजीन अब हमारा साथी ना रहा मैने सब में बांट दिया। मुझे आज भी याद है जब पहली बार मैं गांव से पटना के लिए चला था तो मेरी मम्मी नमकीन बना कर दी थी कह रही थी कि दिन में कभी भूख लगे तो खा लेना।

मैं भी कुछ कर लेने की चाहत मैं पटना आया था। किराए के छोटे से रूम में कुछ करने की सपने बुन रहा था। गांव के लोगों, रिश्तेदार को यह दिखाना था कि मैं भी कुछ कर सकता हूं।

गांव के चौक पर छोटा सा किराना का दुकान चलाने वाले पिता को इस बात का गर्व था मेरा बेटा पटना में पढ़ रहा है कोई ना कोई सरकारी जॉब को क्रैक कर ही लेगा| पिछले 4 सालों में मेरे मां-बाप नहीं किसी चीज की कमी महसूस नहीं होने दी।रूम रेंट से लेकर कोचिंग फीस,लाइब्रेरी फीस,ऑनलाइन फीस हर चीज टाइम पर देते रहे और कभी भी किसी चीज के लिए ना नहीं कहा।मैं भी जीत तोड़ मेहनत करता गया मैं यह भली-भांति जानता था कि मेरा परिवार किसी तरफ पेट काटकर मुझे पढ़ा रहा है।

मैंने अपना जुनून कभी खत्म नहीं होने दे दिया और 4 साल तक लगातार मेहनत करता रहा। कभी बिहार पुलिस,तो कभी क्लर्क,ऐसा कोई एग्जाम नहीं होगा जो मैने नही दिया.. लेकिन रिजल्ट..??

ऐसा भी नहीं था कि मैं पढ़ने-लिखने मे कमजोर था| नॉर्मल परिवार में रहते हुए मैंने दसवीं में 86 परसेंट और बारहवीं में 80 परसेंट मार्क्स लाया। जब भी मैं गांव जाता था तो हर बार पिताजी के आंखो को पढ़ लेता था..पिताजी की आंखें मुझसे पूछती थी की बेटा अब कब?

लगभग साढ़े 4 साल बाद पिताजी का हिम्मत पर जवाब दे गया और उन्होंने साफ तौर पर कहा कि अब मुझसे नहीं हो पाएगा जल्दी से कुछ देख लो,कुछ कर लो।

घर में जवान बहन है शादी भी करनी है।मैंने हिम्मत नहीं हारा और जी तोड़ मेहनत करके पढ़ाई की और पिताजी को आश्वासन दिया था कि 1 साल में कोई एग्जाम तो क्रैक कर ली लूंगा।क्या दिन और क्या रात.. पुराने एग्जाम पेपर का सेट बनाता। आखिर वह समय आया जब मुझे हंड्रेड परसेंट विश्वास था कि इस एग्जाम को मैं क्रेक कर लूंगा।मोतिहारी सेंटर पड़ा था 1 दिन पहले ही पहुंचा और वहां जाकर होटल मैं रूम ढूंढने लगा| लेकिन पूरे जिले में एग्जाम सेंटर के आस पास कोई होटल ना मिला.. इस कपकपाती ठंड में स्टेशन पर ही सो गया| अगले दिन सुबह एग्जाम से पहले स्टेशन स्टेशन के ही सुलभ शौचालय में फ्रेस होकर मम्मी को फोन कर आशीर्वाद लिया और परीक्षा हॉल में जाकर बैठ गया| क्वेश्चन पेपर मिला तो मैं बहुत खुश हो गया क्योंकि मुझे अधिकतर सवाल का जवाब पता था| मैने मन ही मन कहा इस बार तो नौकरी पक्की..

एग्जाम देकर निकला और दौड़कर स्टेशन गया| वहां मेरे जैसे परीक्षार्थी का हलचल देखा कोई कह रहा था पेपर लीक हो गया तो कोई कह रहा है मेरे पास क्वेश्चन 8 बजे से पहले ही आ गया| मैंने मोबाइल में न्यूज देखा और ये खबर बिलकुल पक्की थी कि क्वेश्चन पेपर आउट| मैं हताश हो गया मैंने सोचा फिर बबाल होगा और फिर कट ऑफ हाई जायेगा जिस तरह बीपीएससी के एग्जाम में हुआ| दुखी मन से पटना लौटा थका तो पहले से ही था इसलिए सो गया।

बाद में मुझे सूचना मिली कि परीक्षा को रद्द कर दिया गया है।काटो तो खून नहीं वाली स्थिति मेरी थी..इस एग्जाम के चक्कर में ट्रेन में ठूंसकर मोतिहारी गया था मैं| फॉर्म भरने के चक्कर में ना जाने कितने रुपए खर्च कर चुका था। ऐसे कई एग्जाम जिसके चक्कर में बिहार के विभिन्न जिले गया। ना रहने का ठिकाना,ना खाने की व्यवस्था. हर एग्जाम के समय मन में ये रहता था कि वाला पक्का निकल जाएगा|

इस बात से अनजान था कि ये तो बिहार है| यहां या तो नौकरी खरीदी जाती है या तो क्वेश्चन आउट कर दिया जाता है। मेरे पिताजी के पास ना तो जमीन थी जिसको बेचकर हम भी सीट खरीद लेते और ना ही पैसे…खैर मैंने मन बना लिया है कि अब गांव जाकर पिताजी के साथ किराना के दुकान कर बैठकर उनका हाथ बढ़ाना है..और पिताजी से पिछले पांच साल के लिए मांफी भी मांग लूंगा|

– गुलशन कुमार

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