राजनीति उम्मीद बेचती है, सपने दिखाती है और कुछ भी संभव है, यह धारणा बना के रखती है। नीतीश कुमार राजनीति के इसी कला के जादूगर हैं। उनके पार्टी या सहयोगियों में जितने नेता नहीं है, उससे कही ज्यादा मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हैं। सबको नीतीश से उम्मीद है और सब खुद को नीतीश का राजनीतिक वारिश मानते हैं।
सबसे पहले प्रशांत किशोर आय। नीतीश कुमार को उन्होंने पितातुल्य बताया, नीतीश ने भी उन्हें अपना राजनीतिक वारिश बता दिया। प्रशांत किशोर को दिन में बिहार के मुख्यमंत्री का सपना दिखने लगा। फिर आगे क्या हुआ आप सबको पता है। फिलहाल प्रशांत किशोर नीतीश के बेवफाई से खफा होकर पदयात्रा पर हैं।
प्रशांत किशोर के जेडीयू से जाने के बाद आरसीपी सिंह को यह सपना दिखाया गया। नीतीश के जाति और जिले से आने के कारण उनकी उम्मीदें आसमान छूने लगी। वो खुद को छोटका नीतीश कुमार मानने लगे। फिर अचानक उनको आसमान से जमीन पर उतारा गया। फिलहाल वे राजनीतिक अनाथालय में है।
आरसीपी सिंह के जाने से सबसे ज्यादा खुश हुए उपेंद्र कुशवाहा। उन्होंने तो अपनी पार्टी का विलय कर दिया जेडीयू में। खुद को नीतीश कुमार का छोटा भाई मानते हैं और नीतीश कुमार लव -कुश समीकरण में कुश (कुशवाहा) का सबसे बड़ा नेता मानते हैं। नीतीश के बाद वे खुद को इस वोटबैंक का मालिक मानते हैं। महागठबंधन सरकार में मंत्री बनते -बनते रह गए। फिलहाल पार्टी नेतृत्व से दुखी बताए जा रहे हैं।
जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और नीतीश के पुराने मित्र ललन सिंह फिलहाल जेडीयू में नीतीश के बाद सबसे प्रभावशाली व्यक्ति हैं। उन्हें भी नीतीश से उम्मीदें होंगी! मगर नीतीश कुमार ने अचानक एक कार्यक्रम में तेजस्वी यादव को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी होने का संकेत किया है। इसके बाद ललन सिंह चुप हैं।
इधर बिहार के सबसे बड़े राजनीतिक दल के नेता तेजस्वी यादव खुद को अगले मुख्यमंत्री के रूप देखने लगे हैं। नीतीश कुमार भी उनके सपनों को उड़ान दे रहे हैं बदले में तेजस्वी यादव खुद को पुरा नीतीश को समर्पित कर दिए हैं। सरकार में सबसे ज्यादा विधायक का समर्थन रखने के बाद भी चाचा नीतीश का आज्ञाकारी भत्तीजा बने हुए हैं।
मगर सवाल है कि अगर नीतीश सबके हैं तो सिर्फ तेजस्वी का कैसे होंगे?
©Avinash Kumar (एडिटर, अपना बिहार)