कोरोना की दूसरी लहर में देश कहा विफल रहा?
कमी कहा रह गयी यह जानने का सभी नागरिकों को उतना ही अधिकार है जितना कि उसे जीवित रहने का.
वर्तमान में कोरोना संकट काल मे जब भी कोई फ़ोन आता है या हालचाल जानने हेतु अपने किसी को फोन करता हूँ, तो किसी न किसी के मृत्यु के समाचार से आहत हो जाता हूँ। सोशल मीडिया के मित्रों के अपडेट में उनके किसी न किसी के फ़ोटो के साथ श्रधांजली वाला पोस्ट देख कर मन विचलित हो जाता है। इन तमाम विचलित कर देने वाले घटनाओं के बीच अगर कोई सकारात्मक बनने की बात कहे तो आप क्या करोगे?
अगर आप संवेदनशील इंसान हो तो ऊमीद है आप इन तमाम घटनाओं के घटित होने के पीछे के कारणों को जानने हेतु प्रयास करेंगे अपने स्तर से। हां, आपके अपने सब लोग ठीक -ठाक हो तो आप चुपचाप बैठकर सकारात्मक बन सकते है। लेकिन जो अपने लोगो के लाशों को देख रहे है उस संवेदनशील नागरिक के बस की बात नही हो सकता है सकारात्मक बनना। वह भी तब जब उसे पता हो कि उसके अपने बच सकते थे लेकिन व्यवस्था ने उन्हें बचने नही दिया।
कमी कहा रह गयी यह जानने व इसके खोजने का सभी नागरिकों को उतना ही अधिकार है जितना कि उसे जीवित रहने का।
फिर वह कमी खुद की ओर से की गई हो या फिर किसी ओर के द्वारा की गयी हो। देश कब एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते यह आंकलन करना जरूरी है कि हम कहाँ पर विफल रहे इस कोरोना संकट से लड़ने में.? क्या हम इस संकट को कम कर सकते थे.?
पिछले वर्ष देश के प्रधानसेवक ने कोरोना से निपटने व जीतने का एक मंत्र दिया था “टेस्टिंग, ट्रेकिंग व ट्रीटमेंट” पिछले साल यह मंत्र कुछ महीनों तक चला और उसका असर भी देखने को मिला संक्रामण की संख्या में गिरावट भी हुई। लेकिन बाद के महीनों में केंद्र व राज्यों के स्वास्थ्य व्यवस्थाओं में यह मंत्र कब और कहाँ गायब हुआ किसी को आज तक पता नहीं चला।
जब देश में पहली संक्रामण लहर की ग्राफ गिरने लगी तब देश की राज्य सरकारों में अपने -अपने यहाँ के आइसोलेशन, कोविड केयर सेंटर आदि जैसे स्वास्थ्य सुविधाओं को स्थाई रूप से बंद करके कोरोना की लड़ाई जीतने का दम भरने लगे। यहाँ तक की केंद्र की स्वास्थ्य मंत्री सार्वजनिक मंचों पर कोरोना के समाप्त होने की बात कहने लगे, जबकि विशेषज्ञों ने दूसरी लहर की चेतावनी दे रहे थे। मार्च से जब कोरोना की दूसरी लहर आई तब प्रधानमंत्री का दिया हुआ “टेस्टिंग, ट्रेकिंग व ट्रीटमेंट” वाला मंत्र मानों लपेट कर के कही दफन कर दिया देश व राज्यों के स्वास्थ्य विभागों ने।
वर्तमान में न ही कही टेस्टिंग हो रही है और न ही संक्रामण की ट्रेकिंग ही की जा रही है और ट्रीटमेंट की क्या स्थिति है वह तो देश देख ही रहा है।
देश में यह विकराल स्थिति क्यू उत्पन्न हुई इसके अनेक कारण है जैसे बाद के महीनों में सरकारों की दृढ़ इच्छशक्ति मे कमी होना या कहे लापरवाही, जनता में कोरोना संक्रामण के प्रति लापरवाही, स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की लचर व्यवस्था पर ध्यान न देना, राज्यों में होने वाला चुनाव, कुम्भ का आयोजन एवं केंद्र व राज्यों के बीच योजनाओं व नीतियों पर समंजस्य की कमी।
उपरोक्क्त सभी कारकों के पीछे अगर एक मूल कारक बताना हो तो वह प्रमुख मूल कारक होगा “सरकारी विफलता” फिर वये किसी भी स्तर की हो। हालांकि कुछ लोगो सरकारी विफलता के बजाए देश की जनता व आबादी को ज्यादा दोष देते हुए मिल जाएंगे जोकि मेरे अनुसार सही नहीं है। जनता व आबादी को दोष देने वाले यह कहते मिलेंगे की कोई भी सरकार इतने आबादी को स्वस्थ सुविधाए उपलब्ध नहीं करवा सकती। ऐसे तर्क देने वालों से मै पुछना चाहता हूँ की क्या देश की जनता ने पिछले साल सरकार के आवाहन पर लॉकडाउन मे खुद को बंद नहीं किया था ? पिछले साल सरकारी कोरोना प्रोटोकाल का पालन देश की जनता ने किया।
आप यह नही कह सकते की जनता सरकार की आदेश का पालन नहीं करती। लेकिन जब सरकार ही यह माहौल बनाने लगे की अब सब कुछ ठीक है तो जनता क्या करें?
जो लोग संकर्मण हेतु पूरी तरह जनता व देश की आबादी पर दोषारोपण कर रहे है उनसे मै पुछना चाहता हूँ की क्या देश की सरकार से कुल 130 लोग स्वास्थ्य सुविधाए मांग रहे है? क्या पूरी आबादी ऑक्सिजन जैसे सुविधा अस्पतालों में मांग रही है? वर्तमान में अगर प्रभावित होने वाले आकड़ों को देखे तो मात्र एक प्रतिशत से भी कम प्रभावित आबादी को बीमारी से लड़ने व जीतने के लिए ऑक्सिजन मांग रही है और वह भी सरकार नहीं दिला पा रही है। मै वैसे लोगों से आग्रह करता हूँ की सरकारी विफलताओं के लिए जनता पर दोष मढ़ना बंद करे।
सरकार के पास विशेषज्ञों का समूह है, पर्याप्त संसाधन है यह सब किस लिए है? सरकार ने अपने द्वारा गठित वैज्ञानिकों के समूह के सुझाव भी नहीं माना जिन्होने कुम्भ व चुनाव जैसे सुपर स्प्रेडर इवैंट न करने की सलाह दिया, क्या सरकार ने उसे कितना माना, जबाब देश के सामने मौजूद है। सरकार व उनके समर्थकों का यह तर्क की जहाँ चुनाव व कुम्भ जैसे इवैंट नहीं हो रहे, उन प्रदेशों में मामला कैसे ज्यादा आ रहा है? मुझे यह तर्क रद्दी की टोकरी मे फेकने जैसे लगता है। वह इसलिए की जब पिछले वर्ष सम्पूर्ण लॉकडाउन लगा हुआ था, आने – जाने की सम्पूर्ण व्यवस्था नाममात्र की थी, तब एक खास समुदाय के छोटे आयोजन से पूरे देश में कोरोना फैलाने का माहौल बनाया गया, जिसे देश के साथ पूरा विश्व ने देखा।
अब जब देश में आने – जाने के संसाधन रेल, बस हवाई जहाज सब संचालित है, उस कंडीशन में देश में होने वाले चुनावों व कुम्भ् जैसे सुपर स्प्रेडर आयोजन से क्या पूरे देश में संक्रामण नहीं फैलेगा? जिस प्रकार राज्यों के चुनावों में अन्य राज्यों से समर्थकों व प्रचारकों का आन-जाना लगा रहा क्या यह स्थिति संक्रामण फैलाने जैसे नहीं हुआ होगा। ठीक इसी प्रकार कुम्भ स्नान कर वापस लौटे न जाने कितने ही नेता, मंत्री, अधिकारी सहित आम लोग संक्रमित हुए। कुम्भ आयोजन में कितने ही मठ प्रमुख व साधुओं के मरने की खबर रोज आ रही है, क्या इसकी भरपाई समाज को हो पाएगा?
पिछले साल 2010 मे कुम्भ का आयोजन हुआ था 12 सालों में आयोजित होने वाला यह धार्मिक आयोजन की वास्तविक तिथि 2022 मे थी, फिर यह आयोजन 2021 यानि 11 सालों में क्यू आयोजित हुए वह भी तब जब देश में कोरोना की दूसरी लहर की आशंका बनी हुई थी, इसका जबाब कौन देगा ?
द वायर की एक छपी रिपोर्ट के अनुसार कुम्भ का आयोजन 2022 के बदले 2021 के करने के पीछे ज्योतिषशास्त्र को खुश करना था।
रिपोर्ट के अनुसार “कुम्भ की तारीख को पूरे एक साल पहले इसलिए खिसकाया गया क्योंकि रवि के मेष राशि (Aries) में प्रवेश और बृहस्पति के कुम्भ राशि (Aquarious) मे प्रवेश करने का ज्योतिषीय योग इस बार 2021 मे था। ऐसा संयोग 83 वर्षों में एक बार होता है और यह ज्योतिषीय पंचग को कलेंडर के सालों के साथ समायोजित की जरूरत के कारण के कारण होता है।“
कुल मिला कर यह कहा जा सकता है की केंद्र व राज्य सरकारों नें ज्योतिषीय संयोग को मानव जीवन से ज्यदा महत्व दिया गया और आयोजन जारी रखा। क्या इसमे भी जनता की कमी है?
आज जिस प्रकार देश कोरोना महामारी के दूसरे लहर जैसे एक विकट संकट से गुजर रहा है, देश मे कोई भी परिवार ऐसा नहीं है जिनके अपने व जान –पहचान वाले की बिछड्ने की खबर मिल न रही हो उन्हे। अगर देश मे कोरोना संक्रामण की दूसरे
लहर शुरुवाती स्थिति पर नजर डाले तो, इससे प्रभावित होने वाले अधिकांश आबादी मे मध्यम वर्ग खास कर मिडिल व अपर माध्यम वर्गों की तदात सबसे ज्यादा है। वही मध्यम वर्ग जो शहरों में रहा करते है। देश मे तो कोरोना को शहर की बीमारी भी कहा जाने लगा है। हालांकि वर्तमान मे जो स्वतंत्र रिपोर्ट आ रहे है उसे देखने से लगता है अब इस बीमारी ने ग्रामीण क्षेत्रों में भी अपना प्रभाव पसारने लगी है।
इसका अंदाजा हम बिहार व उत्तरप्रदेश के नदियों में बहती लाशों से लगा सकते है।
मीडिया रिपोर्टों की बात करे तो लोगों के पास मृतक के अंतिम संस्कार करने के लिए संसाधन का अभाव होना प्रमुख कारण है इन लाशों के नदियों में प्रवाहित करने पीछे। अगर यह तनिक भी सही है तो अंतिम संस्कार न करने वाला वर्ग ग्रामीण क्षेत्र के गरीब श्रेणी से ही आते होंगे जिन्हे संसाधन के अभाव में लाशों को नदियों मे प्रवाहित करना ही सही लगा।
इस संकट से उबरने के लिए यह जरूरी है की सरकारें अधिक से अधिक जनसंख्या को जितनी जल्दी हो सके कोरोना से बचाव हेतु टीकाकरण करें। टीकाकरण ही एक मात्र उपाय है कोरोना से बचने का। इसके साथ ही सरकारें अपनी स्वास्थ्य संरचना को व्यवस्थित व अपडेट करें, जिसमें स्वास्थ्य उपकरणों से संबन्धित अपने स्वास्थ्य कर्मियों को प्रशिक्षित करना, शहरी क्षेत्रों के साथ – साथ ग्रामीण क्षेत्रों मे “टेस्टिंग, ट्रेकिंग व ट्रीटमेंट” जैसे नीति को चलना जिसमें स्थानीय जन प्रतिनिधियों एवं सामाजिक व धार्मिक प्रतिष्ठित व्यक्तियों की सहायता लिया जा सकता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में यह संक्रामण न फैले इसके लिए पंचायत स्तर पर छोटे – छोटे कमिटी बना कर अपने आसपास लोगों के स्वास्थ्य पर नजर रखा जा सकता है। स्वास्थ्य सुविधायों जैसे क्षेत्र में ऑक्सिजन सप्लायरों की सूची, प्रतिदिन जिले के सरकारी व निजी अस्पतालों में इलाज हेतु खाली बिस्तरों की जानकारी, चौबीस घंटा स्वास्थ्य समस्याओं हेतू परामर्श केंद्र आदि स्वास्थ्य व्यवस्था से जुड़े संबन्धित सभी संपर्क सूत्रों को सार्वजनिक रूप से लोगों के समक्ष प्रचारित किया जाना चाहिए ताकी जरूरत पड़ने पर लोग खुद सहायता के लिए
पहुँच सके।
इसके साथ ही प्रशासन को चाहिए कि भीड़भाड़ वाले आयोजनों खास कर ग्रामीण क्षेत्रों पर सख्त कार्यवाही कर क्योंकि यह देख जा रहा है कि स्थानीय थाना को मैनेज कर के लोग भीड़ भाड़ वाले आयोजन आयोजित कर रहे है जो कि कोरोना के रोकथाम में सरकारी प्रयासों में समस्या बन सकते है। प्रशासन को कोरोना से सम्बंधित उपकरणों व दवाइयों की कालाबाजारी पर रोकथाम लगाने हेतू युद्धस्तर पर कार्यवाही करें।
– जोखन शर्मा (शोधार्थी, मानवविज्ञान विभाग, ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय)