15 मई तक बिहार में लगा लॉकडाउन: क्या लॉकडाउन कोरोना ईलाज है?
हाई कोर्ट में सरकार ने जो जवाब दाखिल किया है, उससे पता चलता है कि सरकार ने अभी तक कोई एक्शन प्लान तक नहीं बनाया है
सरकार के नाकामी का खामियाजा आखिरकार जनता को ही भगुतना पड़ता है। आखिरकार नीतीश कुमार ने बिहार में 15 मई तक राज्य में लॉकडाउन की घोषणा कर दी।
बिहार में कोरोना संक्रमितों की संख्या 5 लाख के पार चली गई। हालात दिन पर दिन खराब हो रहे थे। अन्य राज्यों के अपेक्षा बिहार में संक्रमण को रोकने के लिए ज्यादा समय भी मिला मगर सरकार के निकम्मापन के कारण राज्य को उसका फायदा नहीं मिला।
पहले से लचर स्वास्थ व्यवस्था के साथ बिहार को एक दिशाहीन सरकार का भी प्रकोप झेलना पड़ रहा है। आखिरकार हाई कोर्ट के डांट के बाद सरकार को लॉकडाउन लगना ही पड़ा।
मगर सवाल है कि यह लॉकडाउन किस लिए लगाई गई है? लॉकडाउन के पक्ष में सरकार हमेशा दो प्रमुख तर्क देती है; पहला – इस से कोरोना का चैन टूटेगा और दूसरा – सरकार को हालात से निपटने के लिए समय मिलेगा और इस बीच वो व्यवस्था को दुरुस्त करेगी और स्वास्थ सेवा के लिए जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाएगी।
लॉकडाउन से संक्रमण का चैन टूटता है, इसका अभी तक कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला है। दिल्ली सरकार ने भी इसी तर्क के साथ 6 दिन का लॉकडाउन लगाया था मगर बार -बार लॉकडाउन की अवधि बढ़ाने के बाद भी वहां संक्रमण का दर कम नहीं पड़ रहा।
दूसरा तर्क कि इस से सरकार को हालात संभालने के लिए समय मिलता है। अगर इस तर्क को माना जाए तो बिहार सरकार को जनता के सामने आकर बताना चाहिए कि इस लॉकडाउन में उसने अपने लिए क्या लक्ष्य रखे हैं? बिहार सरकार लॉकडाउन का उपयोग संक्रमण से लड़ने के लिए कैसे करेगी? और इस दौरान लोगों को होने वाली कठिनाइयों के लिए क्या करेगी?
अगर लॉकडाउन लोगों के भलाई के लिए है तो यह सिर्फ पाबंदियां लगाने का बहाना नहीं होना चाहिए। इसके होने वाले फ़ायदे का हिसाब भी जनता को देना चाहिए। जनता अगर लॉकडाउन की परेशानी सहेगी तो सरकार की भी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए।
हाई कोर्ट में सरकार ने जो जवाब दाखिल किया है, उससे पता चलता है कि सरकार ने अभी तक कोई एक्शन प्लान तक नहीं बनाया है।
कोर्ट ने कहा कि सरकार ने अबतक जो एक्शन प्लान दिए हैं वे आधे अधूरे हैं। उसके पास डॉक्टर, वैज्ञानिक, नौकरशाह की कोई एडवाइजरी कमेटी तक नहीं है जो इस महामारी से निपटे। अबतक कोई वार रूम तक नहीं है। ऑक्सीजन सपाई को लेकर भी कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। साथ ही केंद्रीय कोटा से मिले रोजाना 194 मेगा टन ऑक्सीजन के जगह मात्र 160 मेगा टन ऑक्सीजन का ही उठाव हो रहा है।
अब सवाल है कि अगर सरकार ने अभी तक कोई तैयारी नहीं की तो क्या भरोसा है कि वो लॉकडाउन का सही उपयोग कर पाएगी?
अविनाश कुमार (संपादक, अपना बिहार)