कोविड -19 के कारण देश की आर्थिक गतिविधियां सुस्त पड़ी हुई है मगर बिहार की राजनीतिक तापमान पूरा गर्म है। चुनाव (Bihar Election 2020) का बिगुल फूंक चुका है, पहले चरण के लिए नॉमिनेशन भी शुरू है मगर अभी तक राजनीतिक पार्टियों का गठबंधन की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है।
हालांकि महागठबंधन (Mahagathbandhan) ने अपनी सीटों का बंटवारा कर लिया है। इस बार महागठबंधन में आरजेडी (RJD) 144, कांग्रेस 70 और वामदल 29 सीटों पर चुनाव लडेगी। वहीं दूसरी तरफ एनडीए (NDA) में कोहराम मचा है, जिसके कारण अभी तक गठबंधन की स्थिति साफ नहीं हुई है।
एनडीए में चिराग पासवान (Chirag Paswan) ने नीतीश कुमार (Nitish Kumar) और उनकी पार्टी के खिलाफ अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है। इसके साथ चिराग पासवान ने घोषणा किया है कि लोजपा सिर्फ जदयू के खिलाफ अपना उम्मीदवार उतारेगी, केंद्र में बीजेपी के साथ उनका गठबंधन जारी रहेगा और बिहार में भी वह बीजेपी (BJP)के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारेगी। बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट के नारे के साथ लोजपा ने नारा दिया है कि मोदी से बैर नहीं, नीतीश तेरी खैर नहीं।
तो अब सवाल उठता है कि इस बार बिहार चुनाव में दो एनडीए चुनाव लड़ रही है। एक एनडीए बीजेपी और जदयू का तो दूसरा एनडीए बीजेपी और लोजपा का?
राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा आम है कि लोजपा के इस चाल के पीछे बीजेपी है। बीजेपी चुनाव बाद के प्रस्थितियों को अपने अनुकूल बनाने की कोशिश में है। एक तरफ वह नीतीश के साथ चुनाव में जाकर महागठबंधन को टक्कर देना चाहती है तो दूसरी तरफ लोजपा को नीतीश के खिलाफ खड़ा करके अपने ही सहयोगी और चतुर राजनेता नीतीश कुमार को ‘ औकात ‘ में रखना चाहती है!
लोजपा दोहराना चाहती है अपना 2005 का मॉडल?
बिहार में 2005 में विधानसभा का चुनाव फरवरी-मार्च में हुआ था। उन दिनों केंद्र में अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार थी और रामविलास पासवान मंत्रिमंडल के प्रमुख चेहरों में थे। लेकिन चुनाव के ठीक पहले इस्तीफा देकर उन्होंने लोक जनशक्ति पार्टी बनाई और बिहार में लालू, नीतीश के खिलाफ अकेले ताल ठोंक दी। बताते हैं कि उस वक्त नीतीश चाहते थे कि रामविलास उनके साथ रहकर लालू परिवार के खिलाफ छिड़ी मुहिम में शामिल हों लेकिन रामविलास अकेले ही मैदान में उतरे।
2005 में विधानसभा के आम चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा। 29 सीटों पर पार्टी ने जीत हासिल की। किसी को बहुमत नहीं मिली। अगर लोजपा उस समय जदयू को समर्थन देती तो सरकार बन सकती थी मगर सीएम पद को लेकर नीतीश को समर्थन न देने के चलते आखिरकार बिहार में किसी की सरकार नहीं बन पाई थी। प्रदेश में मध्यावधि चुनाव कराने पड़े थे।
कहीं दाव उलटा न पड़ जाए
दो के झगड़े और तीसरे के अरमान के बीच कहीं महागठबंधन के तेजस्वी यादव कही मुख्यमंत्री बन के निकाल जाए! एनडीए में चल रहे इस ताना तनी से सबसे ज्यादा खुश तेजस्वी यादव होंगे। लोजपा के अलग चुनाव लडने से बीजेपी को कोई नुकसान हो न हो मगर गठबंधन के जिन सीटों से जदयू चुनाव लड़ रही है वहां वह एनडीए को नुकसान पहुंचा सकती है। लोजपा भी मोदी के नाम पर चुनाव लड़ रही है, ऐसे में संभव है कि रामविलास के समर्थकों के साथ बीजेपी के नीतीश विरोधी वोट भी लोजपा को मिले। इससे एनडीए के वोटों का बटवारा होगा, और महागठबंधन के उम्मीदवारों को जीतने की संभावना बढ़ेगी।