Industry in Bihar: कोरोना काल में बदहाल हुए डुमरांव के सिंधोरा कारीगर
बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल को मिलाकर सिंधोरो का हस्त निर्मित केंद्र सिर्फ बिहार का नगर डुमरांव है
बीते कुछ दिनों से #industryinbihar चर्चा का विषय बना हुआ है। मजदूरों की घर वापसी के कारण बिहार सरकार के सामने उनके रोजगार का मुद्दा बहुत बड़ा चिंता का विषय दिख रहा है। इधर बहुत से लोग इस बात का भी सुझाव दे रहे हैं कि बिहार में बंद पड़े हुए कल- कारखानों को पुनः खुलवाया जाए ताकि राज्य के श्रमिकों को रोजगार मिल सके। ट्विटर पर #industryinbihar ट्रेंड होते ही हमें पता चलता है कि सरकार के अनदेखी के कारण बिहार के कई फैक्टरियां बंद हो गई है नतीजन कई मजदूर बेरोजगारी का शिकार हो गए हैं।
सिंधोरा से जुडी बचपन की यादें
जब बात इंडस्ट्री इन बिहार की चलती है तो हमें छोटे- बड़े सारे कारखानों का स्मरण करना होगा जो कि बन्द हो चुके हैं या बंद होने की कगार पर है। इसी सिलसिले में मुझे अपने छोटे से नगर डुमरांव के सिंधोरा उद्योग का स्मरण हो आया।
बचपन में हम जब काली मां के दर्शन करने नीमटोला जाते थे तब हम कुछ घरों में सिंधोरा बनाने के काम करने वाले को देखते थे। हमारी उत्सुक निगाहें लाल- पीले सिंधोरो पर रुक जाती थी। हमारा काली मां के दर्शन से ज्यादा ध्यान सिंधोरा कारीगर पर होता था। बाबा ( दादा जी) से जिद कर हम घंटो उन कारीगरों के यहां बैठ जाया करते थे। जब भी बाबा डुमरांव के बारे में बताते थे तो डुमरांव के राजा कमल सिंघ के साथ साथ डुमरांव को मशहूर शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खां की जन्मभूमि भी बताते थे। बाबा यह कभी भी बताना नहीं भूलते थे कि डुमरांव को सिंधोरा का शहर भी कहा जाता है। जब यह बात मै अपने दोस्तों को बताती थी कि डुमरांव को सिंधोरा का शहर कहा जाता हैं तो वह जीके (G.K) के इस तथ्य को जानने में बिल्कुल भी उत्सुक दिखाई नहीं देते थे उल्टे मुझसे ही पूछते थे कि कौन सी सामान्य ज्ञान के किताब में लिखा है? मैंने तो कहीं नहीं पढ़ा।
डुमरांव बिहार के बक्सर जिले का एक छोटा सा नगर है। डुमरांव के सिंधोरा उद्योग की बात किसी बहुत बड़े जीके के किताब का हिस्सा तो नहीं है, नाही यूपीएससी में पूछा जाने वाला महत्वपूर्ण सवाल। लेकिन उद्योग जगत के लिए हर छोटे- बड़े उद्योग महत्वपूर्ण होने चाहिए।
कोरोना दौर में बिहार के डुमरांव शहर में सिंधोरा कारीगरों की मालि हालत ठीक नहीं है। आपको बता दें कि बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल को मिलाकर सिंधोरो का हस्त निर्मित केंद्र सिर्फ बिहार का नगर डुमरांव है। यहां के हस्त निर्मित सिंधोरा बंगाल, उत्तरप्रदेश, झारखंड भी जाते हैं। सिंधोरा कारीगर मुख्यरूप से खरवार समुदाय से हैं।
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मुगलसराय में मशीन आ जाने के वजह से हस्त निर्मित सिंधोरो के व्यसाय में कमी आ गई और इस परंपरागत व्यवसाय में उचित लाभ ना मिलने के वज़ह से कई परिवार इस पेशे को छोड़ कर अन्य पेशो में लग गए।
आज भी इस पुश्तैनी पेशे से डुमरांव के कई परिवार जुड़े हुए हैं। लेकिन लाकडाउन होने के वजह से सिंधोरा कारोबार ठप पड़ गया है। इस महामारी के दौर में शादी- ब्याह टल जाने के कारण सिंधोरा के मांग में भारी गिरावट आई है या तो कहिए न के बराबर है। कारोबार ठप होने के कारण कारीगरों के बीच भूखमरी की स्थिति पैदा हो गई है।
सिंधोरा कारीगरों ने सरकार से नाराजगी जताते हुए कहा है कि बिहार सरकार इस लघु उद्योग पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देती हैं, और जब से कोरोना की मार पड़ी है उनकी सुध तक नहीं ली गई हैं।
सुहाग की निशानी बनाने वाले कारीगर आज सरकार के इस रवैए से दुःखी है। सिंधोरा मे गहरे रंग भरने वाले कारीगरों कि जिंदगी बेरंग सी प्रतीत होती हैं। वह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखने का भी सोच रहे हैं ताकि उनकी स्थिति का जायजा लिया जाए और उचित मदद पहुंचाया जाए।
सिंधोरा उद्योग की तरह बिहार के कई लघु उद्योग अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। सरकार की बेशुधगी के वजह से कई कारीगर बेहद गरीबी के शिकार हो गए हैं। आपको बता दें कि ऐसे कई लघु उद्योग है जैसे बांस से बनी हुई वस्तुएं, पत्थर से निर्मित सिलवट- लोढ़ा जिनके कारीगर समाज के पिछड़े समुदाय से हैं। लेकिन इनके शिल्प कला को नाही पहचान मिली है नाही आर्थिक सहायता नतीजन हजारों कारीगर पुश्तैनी पेशे को छोड़ शहरों को प्रवास कर रहे हैं।
नीतीश कुमार से अनुरोध है कि बिहार का एकमात्र सिंधोरा केंद्र पर ध्यान दिया जाए और इस शिल्प कला को बचाया जाए। इनके कारीगरों को आर्थिक सहायता प्रदान करवाई जाए।
सिंधोरा उद्योग जैसे अन्य कई लघु उद्योग है जो अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं और इनके कारीगर आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं, इन छोटे उद्योगों को सरकारी प्रोत्साहन एवं सहायता की आवश्यकता है। मुझे उम्मीद है कि सरकार इन समस्याओं पर जरूर ध्यान देगी और इन लघु उद्योगों को मरने नहीं देगी।
जानिए सिंधोरा का महत्व
हिन्दू समाज में सिंदूर का बहुत महत्व है। स्त्री के माथे पर सिंदूर के माध्यम से स्त्री के वैवाहिक स्थिति आसानी से पता लगाया जा सकता है। विवाह के समय पुरुष स्त्री के मांग में सिन्दूर भर कर उसे अपनी पत्नी बना लेता है। विवाह के समय सिन्दूर वर पक्ष के तरफ से वधू को दिया जाता है। बिहार, पूर्वी उत्तप्रदेश, झारखंड जैसे राज्यो में सिन्दूर सिंधोरा में रखकर वधू को दिया जाता है। सिंधोरा को सिन्दूर रखने का पात्र भी कह सकते हैं। बिहार एवम् अन्य राज्य में स्त्रियां विवाह से लेकर मरने समय तक सिंधोरा को संभाल कर रखती हैं जिसे वह सुहाग का प्रतीक मानती है।
सिंधोरा आम की लकड़ी से बनाया जाता है। इसकी सज्जा हेतु प्राकृतिक रंग व जड़ी कढ़ाई का इस्तेमाल किया जाता है। इसके मुख्य कारीगर सोनी देवी, उषा देवी, देवांती देवी एवम् अशोक खरवार, सतीश खरवार, अनिल खरवार इत्यादि है।
ऋतु – बिहार के डुमरांव नगर से है।
इतिहास विभाग, शोधार्थी, दिल्ली विश्वविद्यालय
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