कोरोना वायरस ने बिहार के नीतीश सरकार के 15 साल के विकास वाले गुबारे को फोड़ दिया है| बेरोजगारी, पलायन, गरीबी, बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था से लेकर संसथानों की कमी तक की समस्या, जिसे नीतीश कुमार बड़े चालाकी से शराबबंदी, दहेजबंदी, मानव श्रृंखला, विषेश राज्य का दर्जा, चारा घोटाला, आदि जैसे मुद्दों की चादर से ढक के रखे हुए थे, वो चुनाव से पहले अचानक जीन के तरह सबके सामने आ गया है|
कोरोना वायरस के कारण जारी लॉकडाउन में लाखों लोग दुसरे राज्य में फसे हैं| सबसे ज्यादा तकलीफों का सामना मजदूरों और छात्रों को उठाना पड़ रहा है| कोचिंग हब के रूप में विकसित राजस्थान के कोटा शहर में बिहार के हजारों छात्र फसे हैं जो अपने घर वापस आने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं| देश भर में फसे मजदूर भी लगातार अपने राज्य वापस जाने के लिए हंगामा कर रहे हैं| स्थिति यह है कि लोग पैदल और साइकिल से ही हजारों किलोमीटर का सफ़र तय कर घर आने को मजबूर है|
ज्ञात हो कि देश में मजदूरी करने के लिए सबसे ज्यादा पलायन बिहार और यूपी राज्य से ही होती है| एनडीटीवी में छपे एक आकड़े के अनुसार देश में 1.2 करोड़ प्रवासी मजदूर सिर्फ बिहार और यूपी के हैं|
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार लॉकडाउन के दौरान ही अपने छात्रों को कोटा बसें भेजकर अपने बच्चों को वापस लेकर आ गयी| उसके बाद दर्जनों राज्यों ने अपने छात्रों को वापस बुला लिया| बिहार सरकार पर भी दवाब बढ़ा तो वो लॉकडाउन के नियम का हवाला देकर बच्चों को वापस लाने से साफ़ मना करती रही| नीतीश कुमार ने तो प्रधानमंत्री को भी लॉकडाउन के नियम पढ़कर सुना दिया और उनसे आग्रह किया कि लॉकडाउन के नियम सबके लिए सामान होने चाहिए| केंद्र सरकार लॉकडाउन के नियम में बदलाव करेगी, तभी हम अपने लोगों को वापस ला सकते हैं|
राज्यों के मांग को सुनते हुए केंद्र सरकार ने लॉकडाउन के नियम में ढील दे दी| गृह मंत्रालय ने कुछ शर्तों के साथ, फंसे हुए लोगों के लिए नई गाइडलाइन जारी कर दी| नई गाइडलाइन के तहत फंसे हुए लोग अपने राज्य वापस लाये जा सकते हैं|
इस फैसले के बाद बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी उत्साहित होते हुए इसका क्रेडिट लेने के लिए कूद पड़े| उन्होंने कहा कि बिहार के मांग पर ही केंद्र सरकार ने यह फैसला दिया है| बिहार के लोग खुश हैं कि अब वे वापस आ पायेंगें|
मगर कुछ ही समय बाद सुशील मोदी प्रेस कांफ्रेंस कर पलटी मार गयें| उन्होंने कहा कि अन्य राज्यों में फसे लोगों को वापस बिहार लाना असंभव है क्योकिं राज्य सरकार के पास बसें नहीं है| मगर सवाल है कि अन्य राज्यों के पास बसें हैं तो बिहार के पास क्यों नहीं? 15 साल के शासन में नीतीश सरकार प्रयाप्त बसें भी नहीं खरीद सकी? अगर सरकारी बसें प्रयाप्त संख्या में नहीं है तो क्या सरकार निजी बसों की सेवा नहीं ले सकते?
फिर सुशील मोदी ने ट्वीट करते हुए केंद्र सरकार से बिहार के मजदूरों को बिहार वापस लाने के लिए स्पेशल ट्रेन चलाने की मांग की है| मतलब बिहार सरकार ने फिर गेंद केंद्र सरकार के पला में फेक कर, खुद को जिम्मेदारियों से बचा रही है|
वैसे यह सचाई है कि बिहार सरकार का बहाने उनकी मज़बूरी है| 15 साल में न सरकार राज्य के लिए इतना संसाधन विकसित कर पायी कि सभी प्रवासियों को वापस ला सके, उनकी स्क्रीनिंग करके उनको क्वारनटीन कर सकें और उनका इलाज करा सके|
बिहार के स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली कई मौके पर उजागर हो ही चुकी है| 12 करोड़ आवादी वाले बिहार में मात्र 3 कोरोना हॉस्पिटल हैं और उसमे मात्र 50 वेंटीलेटर की सुविधा उपलब्ध है| सरकार अगर लोगों को राज्य में वापस लाती भी है, तब भी उनकी किरकिरी होना तय है|
दुसरे राज्यों द्वारा लगातार अपने नागरिकों को वापस लाने, बिहारी मजदूरों और छात्रों के लगातार प्रदर्शन और विपक्ष के आक्रामक विरोध के बाद सरकार पर जबरदस्त दवाब है| इसी साल बिहार में विधानसभा चुनाव है, लोगों का गुस्सा चुनाव परिणाम पर भी पड़ रहा है|
यही कारण है कि नीतीश कुमार की सहयोगी पार्टी बीजेपी के नेता बेचैन हो गये हैं| वे भी अब सरकार से लोगों को वापस लाने की मांग कर रहे हैं|
अब बिहार सरकार लोगों को वापस लाने के रास्ते निकलने के लिए 19 नोडल अधिकारियों की नियुक्ति की है| सरकार कह रही है कि ये सभी अधिकारी अपने संबंधित राज्यों में जाकर वहां के अधिकारी के संपर्क से फंसे बिहार के लोगों की जानकारी लेंगे। पूरी सूचना वह आपदा प्रबंधन को देंगे और विभाग उनके लाने की व्यवस्था करेगा।