Coronavirus: बिहारियों के संघर्ष के सामने कमजोर दिख रहा कोरोना, लोगों की इम्यूनिटी क्षमता मजबूत
अब तक किसी भी कोरोना मरीज को वेंटिलेटर या आईसीयू में रखने की जरूरत नहीं हुई है
पिछड़ापन और गरीबी बिहार के लिए प्रकोप माना जाता है, जिसके कारण यहाँ जन्म लेने वाले लोगों को दुसरे राज्यों के लोगों से ज्यादा जिन्दगी में संघर्ष करना होता है| मगर इस समय जब पूरी दुनिया में लोग कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण हजारों के संख्या में लोग मर रहे हैं, उस समय बिहारियों का संघर्ष फिर से उनके लिए ढाल बनकर सामने आई है|
शुक्रवार सुबह 10 बजे तक के आंकड़ों के मुताबिक बिहार (Bihar) में संक्रमण के 60 केस हो चुके हैं। इनमें से 15 लोग पूरी तरह ठीक होकर अपने-अपने घर जा चुके हैं, जबकि एक शख्स की जान गई है। बिहार (Bihar) में फैले कोरोना (Coronavirus) संक्रमण के मामलों में एक बात गौर करने वाली है।
एक तरफ जहां पूरी दुनिया में वेंटिलेटर (Ventilator) की मारामारी मची है, वहीं बिहार (Bihar) में अब तक किसी भी कोरोना (Coronavirus) मरीज को वेंटिलेटर (Ventilator) या आईसीयू में रखने की जरूरत नहीं हुई है।
बिहार में अब तक जितने भी कोरोना संक्रमित मरीज आए हैं उन सबको केवल अलग वॉर्ड में क्वारंटीन करके और मलेरिया की दवाई खिलाकर ठीक किया जा रहा है। बिहार की राजधानी पटना के नालंदा मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में कोरोना मरीजों का इलाज हो रहा है। यहां अबतक केवल दो कोरोना पॉजिटिव मरीज को इमरजेंसी वॉर्ड में शिफ्ट करने की नौबत आई है। आइए हम आपको बताते हैं कि इन पहलुओं पर विशेषज्ञों की राय क्या है?
भारत सरकार के ट्राॅपिकल डिजीज संस्थान, आरएमआइआइ के निदेशक डॉ प्रदीप दास का मानना है कि इसकी दो वजह हो सकती है| पहला भारत और खासकर बिहार के लोगों में कोरोना-19 के वायरस का जो घातक प्रभाव है, उसका असर नहीं हो पा रहा है| यह भी हो सकता है कि यहां के लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता अमेरिकी और यूरोपियन लोगों से अधिक हो| उन्होंने बताया कि इसका दूसरा कारण यह हो सकता है कि बिहार के लोगों को बचपन से ही विभिन्न तरह के वायरस से जूझना पड़ता है|
वहीं दिल्ली के धर्मशिला हॉस्पिटल के कॉर्डियो डिपार्टमेंट के निदेशक डॉ. एके पांडेय ( Dr Ak Pandey) भी कामिनी झा के विचार से सहमत हैं। लेकिन उनका कहना है कि इसे क्षेत्र विशेष के संदर्भ में नहीं देखा जा सकता हैं ऐसा इसलिए कि इंडियन क्लाइमेट सिस्टम में ही काफी विविधता है। जहां तक खान पान की बात है अर्बन एरिया को छोड़ दें तो दक्षिण भारतीय हों या उत्तर भारतीय या फिर किसी भी क्षेत्र के भी लोग आज भी नेचुरल फूडिंग पर निर्भर हैं। सीजनल फूड प्राकृतिक रूप से उनके लाइफ का अहम हिस्सा होता है। सबसे अहम बात यह है कि भारतीय मौसमी विविधता की वजह से कई तरह के इनफेक्शन के प्रभाव में आते रहते हैं। इसलिए उनके इम्यूनिटी का लेवल हमेशा अमेरिकंस और यूरोपियंस से बेहतर होता है।
मलेरिया से जूझने का भी है असर
कोविड-19 के लिए समर्पित अस्पताल एनएमसीएच के प्रभारी अधीक्षक डॉ निर्मल कुमार सिन्हा का मानना है कि बिहार पुराने समय से मलेरिया संक्रमित जोन में रहा है| कोविड-19 के इलाज में अगर कोई दवा कुछ असर कर रही है, तो वह मलेरिया की है. इसी कारण अमेरिका भारत से मलेरिया की दवा मंगा रहा है| चूंकि अमेरिका और यूरोपियन देशों में मलेरिया का कभी असर ही नहीं रहा है, ऐसे में कोविड-19 वायरस का वहां पर गंभीर अटैक हो रहा है. बिहार में मलेरिया के कारण हो सकता है कि यहां के लोगों में उस वायरस के खिलाफ इम्युनिटी विकसित हो गयी है| हालांकि दोनों चिकित्सकों ने माना कि यह तो एक शोध का विषय है|