लिट्टी-चोखा मेला: माई बिसरी बाबू बिसरी, ना बिसरी बक्सर के लिट्टी चोखा
“माई बिसरी बाबू बिसरी,ना बिसरी बक्सर के लिट्टी चोखा।”
ये मात्र एक लोकोक्ति नहीं एक परंपरा है जिसका निर्वाह त्रेता युग से अब तक बद्स्तुर जारी है। जी हां मैं बात कर रही हूं। बक्सर के विश्वप्रसिद्ध लिट्टी चोखा के मेला की। जिसके बिना बिहार की अस्मिता अधूरी है। बिहार का इतिहास हीं नहीं रामयण की गाथा का अपमान है।
विश्वामित्र के यज्ञ को सफल कराने के दौरान जिस पंचकोसी यात्रा को मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने पूरा किया, उसकी जिवंतता आज भी पंचकोसी मेले में साक्षात् हो जाती है। लोगों की आस्था विश्वास हीं नहीं एक आत्मियता सी है इस परंपरा से जो आज भी लोगों को इसे भूलने नहीं देती। तभी तो आधुनिकता और तकनीक वाले इस फास्ट जीवन में लोग गोइठे पर लिट्टी चोखा पका के अकेले हिं नहीं अपने बंधु, बांधव, हित मित्र और पड़ोसियों के साथ इसका आनंद लेते हैं।
मात्र बक्सर हीं नहीं समस्त बिहार से लोग इस परपंरा को निबाहने आते हैं। निबाहना शब्द इसके लिए तो तुच्छ लग रहा है,लोग इसे इंज्वाय करते हैं। अगर यकीन ना हो तो २१ तारिख को बक्सर आकर देखिए।
हर तरफ धुआं हीं धुआं, लोगों का हुजूम,हर जगह बैंगन और आलू के सजे दुकान और और यदि उपले की जरूरत हो तो उसके लिए भी आज के दिन यहां मसक्कत करने की जरूरत नहीं।
वैसे तो बिहार का लिट्टी चोखा वर्ल्ड फेमस है। और बात जब हम इस महीने की लिट्टी चोखा की कर रहें तो इसकी महिमा तो खैर भगवान श्रीराम से हीं जुड़ी हुई है। इस पंचकोसी यात्रा की गाथा भगवान श्रीराम से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि महर्षि विश्वामित्र ने जब यज्ञ की विघ्न बाधा को दूर करने के लिए राम को यहां बुलाया था उसी समय उन्होंने पंचकोसी की यात्रा की। और तब से अब तक यह परंपरा वैसे हीं इस भूमि पर काबिज है।
अगहन मास की पंचमी तिथि से पांच दिन तक चलने वाले इस मेले की शुरुआत होती है बक्सर महज़ कुछ किलोमीटर की दूरी अहिरौली से। अहिरौली का पौराणिक संबंध माता अहिल्या से है जिसे श्री राम द्वारा श्रापमुक्त कर पूर्ववत जीवन कृपा प्राप्त हुई। इसके बाद नदांव जिसकी पौराणिक कथा नारद मुनि से ,नुवांव के बाद तीसरा पड़ाव भभुवर और अंतिम पड़ाव फिर बक्सर था।
जहां भगवान श्रीराम ने लिट्टी चोखा बना कर ग्रहण किया था। वैसे ही लोग आज भी पंचकोसी यात्रा का प्रांरभ अहिरौली से कर अंत बक्सर से करते हैं। यह महज मेला परंपरा और धार्मिक आस्था हीं नहीं बल्कि क ई विशेषताओं के साथ बिहारी अस्मिता की अपनी अनूठी छाप छोड़ता है।
बिहारी व्यंजनों की खासियत: इस मेले विभिन्न जगहों पर इतिहास से जुड़े बिहारी व्यंजनों की खासियत होती है , जैसे बरी फुलौरी,चुडा दही, खिचड़ी, सत्तू मूली और बिहारी टेस्ट लिट्टी चोखा। महिलाओं की। खास भागीदारी: वैसे तो महिलाओं खास कर ग्रामीण परिवेश से जुड़ी महिलाओं को। घरकी चौहर दीवारी से निकलने की इजाजत नहीं। लेकिन बात जब बक्सर के लिट्टी चोखा की हो तो बिहारी महिलाओं ने कभी इसे नि भूलने वाली बात साबित कर बंधनों से खुद को मुक्त कर अकेले ही नहीं समूह में इस आजादी को सदियों से जीती रहीं हैं।
– लेखिका: नंदिनी मिश्र (लेखिका बिहार के एक सरकारी स्कूल में शिक्षिका हैं)