100 साल से महापर्व छठ की पूजा समाग्री बना रहा है छपरा का मुस्लिम परिवार

छठ पूजा वैसे तो मुख्यतः बिहार का पर्व है मगर यह पुरे देश-विदेश में मनाया जाता है| जहाँ-जहाँ बिहारी लोग काम करने गए हैं, वहां वे लोग अपने साथ छठ पूजा को भी साथ ले गयें हैं| वर्षों से बनाये जा रहे इस पर्व के प्रति लोगों की आस्था कमने के जगह और बढती जा रही है|

इस पर्व ने बिना अपना असली स्वरुप बदले एक लम्बा सफ़र तय किया है| इसने खुद को जाती-धर्म के दायरे से भी बाहर निकालने में सफल रही है| इसके कई उदाहरण आसानी से आपको मिल जायेंगें| उन्हीं उदाहरण में से एक है बिहार के छपरा जिले के एक गाँव का उदाहरण|

छठ पूजा में कई तरह के सामग्रियों का इस्तेमाल होता है| उसमें अरता का पात एक जरुरी समाग्री है| आपको जानकर हैरानी होगी कि इसका निर्माण ज्यादातर मुस्लिम (Muslim) परिवार करते हैं| छपरा के झौवां गांव के कई मुस्लिम परिवार पिछले 100 साल से छठ पूजन के लिए अरता पात बनाने में लगे हुए हैं| 

इस गाँव में अरता पात का बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है और यहां से बिहार के साथ-साथ देश के कई अन्य जिलों में भी जाता है| इस गांव के रहने वाले शमीम अहमद बताते हैं कि उनका परिवार पिछले कई पीढ़ियों से इस काम में लगा रहा है और उनकी घर के बच्चे महिलाएं सभी मिलकर अरता का पात बनाते हैं|

इस गांव में लोग 100 साल से इस काम को कर रहे हैं| अरता पात के साथ मजबून खातून| Photo Courtesy: News 18

छठ एक ऐसा पर्व है, जिसमें सभी धर्म के लोगों का सहयोग दिखता है| अब झौवां गांव के शमीम भाई को ही लीजिए| इनका परिवार पिछले 100 साल से अरता पात बनाने में लगा हुआ है| हिंदुओं के सबसे महत्वपूर्ण पर्व में इन परिवारों की भूमिका काफी अहम होती है|

छोटे से गांव झौंवा की एक बड़ी आबादी इस काम में सालों भर लगी रहती है| वैसे तो कई अन्य पूजन कार्यों में भी सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन छठ के दौरान अरता पात की खपत काफी बढ़ जाती है| जिसके कारण इस वक्त यहां इसे बड़े पैमाने उत्पादन किया जाता है और यहां से बनने वाले पात देश के साथ-साथ विदेशों में भेजे जाते हैं|

इसे बनाने वालों का जीवन काफी कठिन
छपरा जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर स्थित है झौंवा गांव, जहां छठ आते ही व्यापारियों की चहल-पहल बढ़ जाती है| व्यापारी अनिल बताते हैं कि यहां बनने वाले आरता पात को खरीदने के लिए दूसरे जिलों के लोग भी झौंवा गांव में पहुंचते हैं और यहां के लोगों को आर्थिक फायदा भी होता है| लेकिन, इस उद्योग के साथ एक काला सच भी जुड़ा हुआ है जो यहां के लोगों की जिंदगी को काफी कठिन बना देता है| अकवन के रुई से बनने वाला अरता पात यहां के लोगों में सांस संबंधित बीमारियां बढ़ा रहा है| इस गांव में टीवी के मरीज सबसे अधिक पाए जाते हैं|

बहरहाल, छठ को लेकर झौंवा गांव फिर सुर्खियों में है| यहां का बना अरता पात एक बार फिर बिहार के बाजारों में पहुंचने लगा है| आज परंपरा के साथ जुड़ा यह उद्योग कठिनाइयों के दौर से गुजरते हुए भी इस गांव का पहचान बन गया है और सांप्रदायिक सौहार्द्र का अनोखा मिसाल भी पेश कर रहा है|

रिपोर्ट: संतोष गुप्ता | श्रोत: न्यूज़ 18 हिंदी 

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