बिहार के ट्रेन खचाखच भराए लागल बा। केहु 4 महीना पहिले से टिकट बुक करा लेले बा त केहु टायलेट के लगे बैठ के जाए के तैयार बा, काहे से की पूरा देस में बेटा और बेटी लोग छठ में घरें जाए खातिर छुट्टी बचइलें बा।
एगो बिहारी एक बार खातीर दीवाली के रोशनी छोड़ सकेला, इहां तक कि होली के रंग से दूर रह सकेला, लेकिन छठ नइखे छोड़ल जा सकत। छठी मइया वरदान के एगो उदार दाता हई।
ज्यादातर लोग जे घरें ना जा सकेला, ऊ जहां रहेला ओहीजा छठ धूमधाम से मनाएला। लेकिन छठपर्व में बिहार आके लागेला कि अभी भी समय 20 साल पीछे ही रुकल बा। छठ के 3 दिन के महापर्व में बिहार आपन असली रूप में लौटे ला. पढ़े-लिखे वाला और कमाएं वाला लोग गांवे आकर सुपली और दउरा उठाए लें।
ऐसे ई सच ह की बाकी राज्य में बिहारी होखल आसान बात ना ह। – बिहारी एगो ‘गरीब, अनपढ़’ राज्य से आवेला, जेकरा के ‘अपराध के आयातक’ भी मानल जाला, ओ लोग के बोले के ढंग,उच्चारण के मज़ाक उड़ाइल जाला, ओ लोग के इरादा पर संदेह कइल जाला। लेकिन छठ के एतना शक्ति और मान सम्मान बा की हर जाति, हर धर्म के लोग छठ बरती और छठी मईया के पांव पखारेला, आशीर्वाद लेला और छठ परसाद खातिर लंबा लाइन में लागल रहेला।
हम बचपन में होश संभलला के साथे ही अपना घर और आस-पड़ोस में छठ परब होखत देखतानी। एगो समान रीति रिवाज़ के साथ ई त्यौहार के मनावल जात रहल बा। छठपरब के करे खातिर इच्छा शक्ति ज़रूरी बा काहे से की कम-से-कम संसाधन में ई परब सार्थक रूप से मनावल जा सकेला।
वास्तव में छठ पूजा के बरती(व्रती) के 36 घंटे तक उपवास रहे के पडे़ला, बिना पानी के। घर के बाकी लोग पर अलग अलग काम के जिम्मा रहेला – केहू प्रसाद पकाई, केहू घाट (नदी के किनारे) सजाई जहां पूजा होखी, और केहु फल और गन्ना के व्यवस्था करी। एह तरह से पूरा समुदाय, महापरब के सफल बनाए खातिर जुट जाला।
ऐसे त बिहार में छठपरब के बेरा ज्यादा बदलाव नइखे आईल, लेकिन छत पर घाट सजाकर बरती लोग अरघ देवे लागल बा। खैर अभी तक दउरा के जगह ‘बास्केट’ नईखे लेले और केला के घौवद ही होला, ठेकुआ के ‘स्वीट बिस्किट’ ना कहाला, अंग्रेजी त छोड़ी हम आज तक छठ पूजा पर हिंदी गाना भी नईखीं सुन ले।
आपन जड़, लोकभाषा से जुड़ल रहे के संदेश ई परब में गहराई से देखे के मिलेला। मौसम के हिसाब से उपलब्ध अइसन कौनो फल नईखें जौन ई पर्व के हिस्सा न बनें। का ई पर्व से प्यार करे खातिर ऐतना वजह काफी नईखे?
एकरा साथ ही छठ महापरब खातिर सम्मान और प्यार के एगो सबसे महत्वपूर्ण और सबसे अहम वजह एगो और बा। हमनी के समाज सदियों से पुरुष प्रधान रहल बा और मरद के ही वर्चस्व समाज के हर फैसला में काम करेला। सादी-बियाह या घर में खाए के का बनी, ई सब निर्णय घर के मरद ही करेला। ई सब आजों भी हमनी के समाज में कायम बा।
ई सबके बीच छठ परब अपना आप में एगो पवित्र परब बा। और देश के दुगों राज्य में ई परब के सबसे ज़्यादा मेहरारु लोग ही करेली। हमनी के समाज के मरद ई परब के तैयारी में बड़ा ज़ोर-शोर से साफ सफाई के साथ बाकी ज़रूरी काम करेला लोग। मतलब ई परब के बेरा पूरा समानता के भाव होला। और ई परब के वक्त मेहरारू सबन के सम्मान ए हीं समाज के मरद के नज़र में सूर्यदेवता से भी ज़्यादा पवित्र होला।
अब बात करे के हिन्दू धर्म के ‘मनुस्मृति’ के, जीन कहेलेन की, “असत्य जिस तरह अपवित्र है, उसी भांति स्त्रियां भी अपवित्र हैं”। यानि पढ़े के, पढ़ाऐ के, वेद-मंत्र बोले के या उपनयन के स्त्री सब के अधिकार नईखें। मतलब साफ बा कि स्त्री अपवित्र हयी और अपवित्र होखे के साथ शूद्र भी हयी। ओहीजा हमनी के गोस्वामी तुलसी दास भी आपन एगो श्लोक में कहेलेन की ढोर, गंवार, शूद्र और नारी, ई सब ताड़न अधिकारी बा, यानी नारी के ढोर के तरह मार सकेला लोग।
अब ई सब चीज़न के मूल्यांकन के बाद अगर हमनी के वास्तव में मानव बानीसन त हमनी के ई महसूस करे के चाही कि हमनी के छठ परब के बहाने ही सही पर महिला लोगन के जौन सम्मान देवेनी सन, ऊ सम्मान के दौरान जौन शांति और आत्मीयता महसूस होला ऊ शायद जीवन में पहली बार होला।
ऐसे देखल जाए त हमानी के समाज ई परब के दौरान पूरा शांति और विधि व्यवस्था के साथ पूरा कार्यक्रम में सब महिला के सम्मान देते हुए भाग लेला। आपन लोक आस्था के पूरा करे खातिर कौवनो कसर ना छोड़ेला लोग।
ई तीन दिन के परब के बाद वापस आपन ट्रेन पकड़कर, बहुत सारा ठेकुआ लेकर बिहारी फेर से न्यू इंडिया के हिस्सा हो जाला। ठेकुआ ई सनातन बिहार और न्यू इंडिया के बीच के एगो पुल हवे।
जय छठी मइया!
– शिल्पा कुंवर (लेखिका दिल्ली विश्वविद्यालय में पत्रकारिता की छात्रा है.)