आज से दस-बारह साल पहीले बिसकरमा पूजा के भोरे-भोरे उठ के सबसे पहीले अपना साइकिल दूरा पर निकालते थे. एक घंटा तक उसके रीम को सरेस पेपर से रगड़-रगड़ कर जंग छोड़ाते थे. साइकिल के इसपोक से लेकर घंटी तक को चमका देते थे. अपने पसीने-पसीने होअल रहते थे लेकिन घर के सब लोहा-लक्कड़ को पोछ-पाछ के ललका चंदन लगा देते थे. आटा आ चीनी वाला परसादियो बाँट देते थे. हमारे लिए बिसकरमा पूजा का ईहे मतलब था.
बिसकरमा पूजा का माने कि आज मशीन सब को आराम देना है. भोरे साइकिल में ताला मार देते थे, आज कोई साइकिल नहीं छूएगा चाहे केतनो एमरजेंसी हो जाए. तहिया आदमी मशीन सब को चलाता था..
आज भोर में 8 बजे नींद खुला है. एक घंटा तक बिछौना पर मोबाइल लेकर पड़े हुए थे. पिताजी के दस रेड़ी पर नौ बजे उठे हैं, मोटरसाइकिल उठाएं हैं आ चल दिए हैं गरेज में धोआने. गरेज वाला भी किलनिक प्लस शेम्पू लगाकर पाइप के छुरछुरी से गाड़ी धो दिया है. हम दूरे से उसको डायरेक्शन दे रहे थे
“ए भईया, सफाई हाथ मत मारिए”, “तनी मोडगार्ड के नीचो में पानी का प्रेशर दीजिए”, “भक्क मरदे, रीम को तो पोछबे नहीं किए”..
पांच मिनट में गाड़ी धोआ गया, इस्टाट किए आ दू मिनट में घरे आकर फेर मोबाइल लेकर पड़ गए. इंतजारी में हैं कि लाइट आएगा ता मोटर चालू करके नहा लेंगे आ वाशिंग मशीन में कपड़ा धोआइए जाएगा..
आज मशीन आदमी को चला रहा है.. मशीन धड़ाधड़ चल रहा है, आदमी सुस्ता रहा है.. आदमी के शरीर में आ बुद्धि में जंग लग रहा है.. हम इंतज़ार में हैं कि कहिया ऊ बिसकरमा पूजा आएगा जहिया भोरे उठ कर सरेस पेपर से अपना जंग छोड़ाएंगे.. मशीन को आराम देंगे आ अप्पन हाथ-गोर आ दिमाग का इस्तेमाल करेंगे..
जय बाबा विश्वकर्मा..
– अमन आकाश