आदरणीय रवि किशन भिया
परनाम!
का हाल बा? रउआ से सम्पर्क कइल हमनी ख़ातिर त ओतना सुविधाजनक नइखे, पर आपन बात अगर कउनो जरिया से अभिव्यक्त ना कइल जाओ त जियल मुश्किल हो जा ला। हम रउआ के सबसे पहिले देखनी ‘हेलो इंस्पेक्टर’ में। हमार उमिर आ समझ अइसन रहे कि हम रउआ के ‘इंस्पेक्टरे’ बुझत रहीं। बाकी फिर फिलिम में देखनी त एहसास भइल कि रउआ त अभिनेता हईं।
बाद में अखबार से मालूम भइल रउआ स्टारडम के चरम प बानी भोजपुरिया इंडस्ट्री में। ‘सुर-संग्राम’ शो में जज बनत भी देखनी आ फिर एक नेता बनत भी। हमरा समझ से रउआ अभिनेता से स्टार अभिनेता आ फिर नेता से स्टार नेता के सीढ़ी चढ़े ख़ातिर जेतना मेहनत कइले होखम, ओतने मेहनत अब भोजपुरी माई ख़ातिर करे के जरूरत बा।
हम आपन पहिला भोजपुरी खुला चिट्टी रउआ नामे लिखत बहुत गर्व अनुभव करत बानी। राउर वीडियो बारंबार देखत हम समझ पयिनी कतना मुश्किल बा अबहियों संसद में भोजपुरी जइसन भाषा ख़ातिर आवाज़ उठावल। राउर प्रयास न सिर्फ सराहनीय बा बल्कि अनुकरणीय भी बा।
लोग आपन भाषण के एगो सम्बोधन लाइन भोजपुरी में बोल के भोजपुरिया के दिल-जिगर-गुर्दा के साथे भोट भी लूट लेवे ला त इहे समझ जायीं रउआ त निजी विधेयक लावे के बात कइले बानी, भोजपुरिया आपन जानो लुटावल कमे समझिहन।
हमरा ना बुझाए आखिर 25 करोड़ जनता के बोली, समृद्ध साहित्य से धनी एगो मौलिक भाषा में कवन खोंट बा जे हर बार ई आठवीं अनुसूची के दुआर प से खाली हाथ लउटा दिहल जा ला?
आखिर काहे एकर बदहाली प सरकार के निःशब्दता झेले के मिलेला? दुनिया में आगे रहला के बावजूद आखिर काहे भारत के जन-मानस भोजपुरी के नाम प नाक-भौं सिकोड़े लागल बा? लोग काहे बाध्य बाड़न आपन बच्चन के आपने मातृभाषा के विधिवत शिक्षा ना दिवा पावे ख़ातिर? काहे वंचित भइल जा तानि जा हमनी के एह सब के सही कारण आ निवारण जाने से?
कुलमिला के एगो वीर कुंवर सिंह यूनिवर्सिटी में भोजपुरी के पढ़ाई चलत रहे, ओकरो बन्द कर दिहल गइल। जब कवनो भाषा से अर्थ ना जुड़ी, त ओकर प्रचार-प्रसार प असर त पड़बे करी। अंग्रेजी भाषा काहे हमनी के सीखी ला? काहे हर गली-चौराहा प “तीस दिनों में अंग्रेजी सीखें” के बोर्ड लउक जा ला? काहे कि एह भाषा से अर्थ जुड़ल बा, सम्मान जुड़ल बा। एकरा में सभके फायदा लउकेला। लोग अपन लइकन के भविष्य एकरे में जोहे के मजबूर बाड़न।
आज ले बस बतकुच्चन भइल बा भोजपुरी के नाम प। केतना लोग त अपना के भोजपुरी के ठेकेदारो घोसित क देले बाड़न। बाकी अब समय फिरल बा। भोजपुरिया के मय आंदोलन के उम्मीद राउर एक मिनट के उहे संसदिया भाषण से जुड़ गइल बा। देखब रउआ भिखारी के बोली, मिसिर के गीत, विवेक दीप पाठक के त्याग व्यर्थ न जाये। सभके सपोर्ट बा। सभके उम्मीद बा। राउर एक कदम भोजपुरी के दामन से सब दाग धो सकेला।
ज़िन्दगी झंड रहे त रहे, भाषा के झंड होखे से बचा लिहिं त घमंड होखी।
नेहा नूपुर
संयोजक
हमार भोजपुरी हमार सम्मान