आखिर कन्हैया से इतना गुस्सा, नफरत और घृणा क्यों?
कन्हैया से गुस्सा, कन्हैया से नफरत, कन्हैया से घृणा मेरे समझ से पड़े था आखिर इस छोरा में रखा क्या है। माँ आंगनवाड़ी सेविका, भाभी और बहन से मिले पहनवा और रहन सहन हमारे इलाके में काम करने वाली इससे अच्छे तरीके से रहती है।
छोटे भाई का क्या कहना है विशुद्ध गाँव का बच्चा है नाम प्रिंस है आज के युवा कि तरह टू टाइट और हाथ में बड़ा सा एनरोइड मोबाइल कि चाहत वाली संस्कृति में पला बढ़ा नहीं लगता है । सामने मिल गया पैर छू कर प्रणाम भैया ,कहाँ बैठाये ,क्या खिलाये तब तक परेशान रहता है जब तक आप एक ग्लास पानी भी पी नहीं लेते।
मतलब गाँव में भी कोई हैसियत नहीं है बेगूसराय कि तो बात ही छोड़ दिजिए । लेकिन आज इसके नामंकन में महसूस हुआ कन्हैया से नफरत ,घृणा, गुस्सा और घबराहट क्यों ह्रै, बिहार के हर गरीब युवा का आज कन्हैया आइकॉन है उत्तर बिहार के अधिकाश जिले से दर्जनों कि संख्या में युवा अपनी सवारी से बेगूसराय पहुँचा हुआ था ।
कन्हैया का काफिला जैसे ही डीएम आँफिस पहुंचने वाला था तभी आसमान से पानी के साथ ओला गिरने लगा क्या कहना है युवा नाचता रहा कन्हैया जिंदावाद का नारा लगता रहा हमलोग दुकान में घूस गये लेकिन वो लोग डटा रहा।
जब मौंसम ठिक हुआ तो फिर काफिला में आये युवा से बातचीत करना शुरू किया । इस दिवानगी कि क्या वजह है हर किसी के जुबान पर एक ही बात था कन्हैया बदलाव का प्रतीक है ,देश में जाति और धर्म से इतर एक नयी तरह की राजनीत का प्रतीक कन्हैया है जहां युवाओ को महसूस हो रहा है कि कन्हैया कि राजनीत चली तो फिर देश की फिजा बदल जायेगी|
युवा देश ,युवा सोच और युवा नेतृत्व यही मेरा नारा है इसतिए मोदी से लेकर तेजस्वी तक घबराये हुए है। देख रहे हैं युवा मुस्लमान ,युवा यादव, युवा पिछड़ा और युवा गरीब सवर्ण सब कुन्हैया के साथ है, बस मुझे बेगूसराय चाहिए मोदी को कन्हैया ही सम्भाल लेगा|
– संतोष सिंह (यह लेख उनके फेसबुक प्रोफाइल से ली गयी है| वे बिहार के एक वरिष्ठ पत्रकार हैं)