कौन नहीं चाहता हर क्षेत्र में अव्वल बनाना अपने बच्चे को? कौन सामाजिक चलन के खिलाफ ले जाने की हिम्मत कर पाता है? 2 बातें हैं। पहला तो हर कोई चलन के साथ चलना चाहता है । दूसरा वो अव्वल आना चाहता है । बात जब बच्चों की हो तो इच्छाशक्ति दुगुनी हो जाती है । बच्चों के सर्वांगीण विकास की बात पर एक क्षेत्र ऐसा है जहाँ आधुनिक अभिवावकों के अपने बच्चो के प्रति ईमानदारी पर शक तो उठाता है !
अपना देश जैसे किसानों का है, गाँवों का है, वैसे ही चुनाव का है ! चुनाव जंगलो में नहीं होता (ये और बात है इस दौरान माहौल कुछ जंगली जरुर हो जाता है) ! इंसानों की बस्ती में होता है चुनाव, वहीं बनते हैं मतदान केंद्र , वहीं वोट मांगने नेतागण आते हैं !
चुनावी प्रक्रिया एक लम्बी सुरंग वाला रास्ता है जहाँ से आपको सपरिवार गुजरना है। इस सुरंग में अलग-अलग तरह के वादों वाले कृत्रिम रौशनी से आप रूबरू होते रहेंगे ! चकाचौंध से दिक्कत हैं तो बड़े ही सस्ते चश्मे भी अंदर लोग बेच रहे होंगे, लपकिये और वहीं भटकिये ! साथ में धीरे-धीरे दुसरे छोर की तरफ बढ़ते रहिये ! लेकिन एक बात तो तय है, आप सफ़र बीच में छोड़ नहीं सकते न ही कोई सुराग है इस सुरंग में जहाँ से आप बच निकलें !
चुनाव में चुनाव आयोग का अहम रोल होता है। नियम होते हैं , बहुत सारे प्रत्याशी होते हैं , फिर प्रचार होता है , प्रचार का प्रसार होता है। इस दौरान तरह-तरह की चर्चाएं होती है। पिछली झूठ को आने वाले “नए सच जैसा झूठ” या “झूठ जैसा सच” का आइना दिखा कर के आगे बढ़ना होता है
चुनावी प्रक्रिया में एक अहम ज्ञान हमें अपने बच्चो को अच्छे से सिखाना चाहिए – जातिवाद! लोकतंत्र के सफल परिणाम वाले प्रक्रिया पर शक न करें। चुनाव से पहले ही पिछले चुनावी परिणामों की समीक्षा देखकर, नाप-तौल कर सभी राजनीतिक पार्टियाँ हर विधानसभा / लोकसभा को जाति में विभाजित करती है। यह पूरी तरह लोकतांत्रिक है। इसपर कोई रोक-टोक नहीं।
चुनाव के इस मौसम में दिन रात हम जात-पात की बात करेंगे, सुनेंगे, देखेंगे हर तरफ – अखबार , टीवी या चौक चौराहे पर ! अलग-अलग स्रोत से हर क्षेत्र की जातिगत जनगणना की जाती है पार्टी कार्यालयों में। उपनाम देख के कयास लगाये जाते हैं !
सिंह और सिन्हा तक अन्तर स्पष्ट करना किसी पीएचडी से कम नहीं है साहेब ! और ये कम्बख़्त जात भी अपनी जात बदल लेता है! किसी प्रदेश में शर्मा बढ़ई होते हैं तो कहीं ब्राह्मण ! सिंह कहीं भूमिहार होते हैं तो कहीं राजपुत तो कहीं कुशवाहा। वहीं कुशवाहा भी कहीं कोइरी है तो कहीं कुर्मी ! यहाँ ये सब करना पुर्णतः सुकर्म कहलाता है !
इतना ही नहीं, हर जात के अंदर कई सारे पात भी हैं | लेजर से माइक्रो लेवल की खुदाई की जाती है फिर अलग अलग गणित के वेरिएबलस ( x, Y ) में इसको रखा जाता है | फिर उस चर-अचर राशी की सहायता से समीकरण तैयार होते हैं | इसी प्रकार से बूथ लेवल तक की जातीय गणना कर समीकरण तैयार होता है | हर छोटे बड़े समीकरण का अपना मान होता है , और फिर सभी समीकरण को एक साथ जोड़ पार्टी के सबसे अनुभवी राष्ट्रीय अध्यक्ष देखते हैं | तब रूप रेखा तैयार होती है सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश के सबसे अहम् जातीय समीकरण के रिसर्च के परिणाम की।
सच तो ये है कि “जातीय समीकरण” की जटिलता दिनों दिन बढती जा रही है , तभी तो देश-विदेश से सबसे उत्तम विश्वविद्यालयों जैसे IIT, कैंब्रिज इत्यादि में अध्ययन कर चुके नवयुवक अपनी कंपनी खोल रहे हैं जो पुरे चुनाव में सक्रिय हो कर अपनी सेवा देश के बड़े बड़े राजनीतिक पार्टियों को दे रहे हैं और अच्छा पैसा भी कमा रहे हैं।
जैसे कि भारत सबसे बड़ा लोकतंत्र है और लोकतंत्र का आधार जातिवाद है | अतः भारत का आधार जाति है | अपना आधार मजबूत कीजिये तथा गर्व से अपने बच्चे को जातिवादी बनाइये। आखिर बच्चे देश का भविष्य होते हैं और जातिवाद बच्चों का भविष्य हो सकता है।
आप चाहे तो इस समाज को जंगली कह कर के बदनाम कर लीजिए | परन्तु अब उपाय यही है कि जातिवाद को आत्मसात कीजिये । ट्रेड के साथ उनको जोड़ के फक्र से रखिये । ट्रेंड इज़ फ्रेंड बोलना व् समझना सिखाइए, अपने 200 साल पुराने स्वामी (अंग्रेजो ) के आदर्शों पर चलिये | फुट – फुट कर रोइये नहीं, फुट डालो राज करो की नीति को को कूट – कूट के अपने अंदर भर के जी भर जी लीजिये । एक ही जिनगी मिली है आपको , या तो जंगल में रहिये या हमारे साथ यहाँ जाति की यमुना में स्नान कीजिये , मंगल कीजिये !
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1.) अपने बच्चे को कट्टर जातिवाद बनाने के लिए अतिशीघ्र संपर्क करें ९७१६७५७८४१ पर संपर्क करें !
2.) फीस पूरी सामान रूप से लिया जायेगा , कोई छुट नहीं !
3.) ध्यान रहे हमारी केवल २८ सामान्य ब्रांच , 7 केंद्र शासित ब्रांच तथा हेड ऑफिस बिहार की राजधानी पटना में है , इसके सिवा कोई दूसरी ब्रांच नहीं है !
4.) कोई online कोर्से की सुविधा नहीं है !
5.) कक्षा में फ़ोन प्रतिबंधित है !
नोट : यहाँ जातिगत आरक्षण नहीं है , भले ही ये आपको विडंबना लगे पर ! जातिवाद फ़ैलाने में हमसे ज्यादा कोई इमानदार नहीं , हमारा खुला चलेंज !
लेखक: केशव झा
(यह लेख जातिवाद पर एक व्यंग है| इसमें लिखे विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं|)