लोकसभा चुनाव: मिनी चित्तौड़गढ़ के नाम से प्रसिद्ध बिहार के औरंगाबाद सीट के नाम दर्ज है यह रिकॉर्ड
मिनी चित्तौड़गढ़ के नाम से प्रसिद्ध औरंगाबाद जिला दक्षिणी बिहार में जीटी रोड पर स्थित है| देव सूर्य मंदिर के लिए प्रसिद्ध यह जिला मगध संस्कृति का केंद्र माना जाता है और यहां की प्रमुख बोली मगही है|
लोकसभा चुनाव 2019 के पहले चरण में बिहार के चार जिले में मतदान होने जा रहा है, उसमें से एक जिला औरंगाबाद है| इस बार के चुनाव में मुख्य मुकाबला भाजपा गठबंधन और महागठबंधन के उम्मीदवारों में है| भाजपा के तरफ से वर्तमान सांसद सुशील कुमार सिंह एक बार फिर मैदान में है तो महागठबंधन ने हम के उपेन्द्र वर्मा को उतारा है| गौर करने वाला बात यह है कि कांग्रेस का गढ़ समझे जाने वाले इस सीट पर कांग्रेस अपना उम्मीदवार नहीं उतार रही है|
2014 में यहां से बीजेपी ने ही जीत का परचम लहराया था, लेकिन उससे पहले के इतिहास पर नजर डालें तो बीजेपी यहां कभी नहीं जीती। इसलिए 2014 में जीती अपनी इस सीट को 2019 में भी बचाए रखना बीजेपी के लिए कड़ी चुनौती होगी।
राजपूत बहुल औरंगाबाद में 1952 के पहले चुनाव से अबतक यहां से सिर्फ राजपूत उम्मीदवार ही चुनाव जीते हैं| बिहार विभूति और राज्य के पहले उप मुख्यमंत्री डॉ. अनुग्रह नारायण सिन्हा और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिंह औरंगाबाद से आते हैं| उनके परिवार का औरंगाबाद लोकसभा सीट पर दबदबा माना जाता है| निखिल कुमार और उनकी पत्नी श्यामा सिंह भी कांग्रेस की ओर से यहां से सांसद चुने गए|
औरंगाबाद सीट कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। सत्येंद्र नारायण सिन्हा सबसे अधिक सात बार इस क्षेत्र से सांसद रहे। लेकिन 1989 के चुनाव में वीपी सिंह की लहर में जनता दल ने यहां सेंध लगाई। इस चुनाव में जनता दल के रामनरेश सिंह उर्फ लूटन सिंह ने कांग्रेस की श्यामा सिंह को मात दी थी। अभी वर्तमान में लूटन सिंह के पुत्र सुशील सिंह यहाँ भाजपा के टिकेट पर सांसद हैं|
औरंगाबाद की खास बातें
औरंगाबाद बिहार का महत्वपूर्ण लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र है। इस लोकसभा के अंतर्गत 6 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। प्राचीन काल में औरंगाबाद, मगध राज्य का हिस्स था। इस क्षेत्र के उमगा में एक वैष्णव मंदिर है। इसे उमगा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहां सूर्य देव मंदिर धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है। औरंगबाद में विद्युत उत्पादन के लिए एनटीपीसी का बड़ा प्लांट भी है। यहां सीमेंट उत्पादन, कालीन और कंबल बनाने के कारखाने भी हैं। यह क्षेत्र प्रदेश की राजधानी पटना से करीब 148 किलोमीटर दूर है, जबकि राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली से इस क्षेत्र की दूरी 993 किलोमीटर है।
औरंगाबाद महान मगध साम्राज्य का केंद्र रहा है| बिम्बिसार, अजातशत्रु, चंद्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक जैसे शासकों ने यहां राज किया| मध्यकाल में शेरशाह सूरी के काल में रोहतास सरकार के नाम से इस इलाके का सामरिक महत्व फिर से स्थापित हुआ| मुगल शासन में यहां अफगान शासक टोडरमल के कारण अफगान संस्कृति का भी प्रभाव देखा जाता है|
दो परिवार रहे आमने-सामने
लोकसभा चुनाव में सत्येंद्र नारायण सिन्हा और रामनरेश सिंह उर्फ लूटन बाबू का परिवार आमने-सामने रहा है। वर्ष 1952 से कांग्रेस के सत्येन्द्र नारायण सिन्हा ने औरंगाबाद की सीट पर कब्जा जमाए रखा। इस दौरान उनके विधानसभा में जाने के बाद रमेश बाबू सांसद बने। 1962 में रामगढ़ के राजा कामाख्या नारायण सिंह के परिवार की एक सदस्या महारानी ललिता राजलक्ष्मी सांसद बनीं। इसके बाद 1967 में मुंद्रिका सिंह सांसद बने। पुन: वर्ष 1971 से 1984 तक चार बार लगातार सत्येंद्र बाबू इस सीट पर जीत दर्ज करते रहे। वर्ष 1989 में रामनरेश सिंह उर्फ लूटन बाबू जनता पार्टी के टिकट पर यहां से चुनाव में उतरे और उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी श्यामा सिंह को पराजित किया। दूसरी बार 1991 में लूटन सिंह ने फिर से लोकसभा का चुनाव लड़ा और इस बार उन्होंने सत्येंद्र नारायण सिन्हा को पराजित कर दिया। वर्ष 1996 में यहां चुनाव हुए, जिसमें वीरेंद्र कुमार सिंह ने सत्येंद्र नारायण सिन्हा को हरा दिया।
क्या कहता है राजनीति का गणित ?
औरंगाबाद लोकसभा सीट पर मतदाताओं की कुल संख्या 1,376,323 है जिनमें से पुरुष मतदाता 738,617 और महिला मतदाता 637,706 हैं| औरगाबाद सीट के लिए होनेवाले चुनाव में राजपूत वोटरों की संख्या सबसे अधिक है। दूसरे स्थान पर यादव वोटरों की संख्या 10 प्रतिशत है। मुस्लिम वोटर 8.5 प्रतिशत, कुशवाहा 8.5 प्रतिशत और भूमिहार वोटरों की संख्या 6.8 प्रतिशत है। एससी और महादलित वोटरों की संख्या इस लोकसभा क्षेत्र में 19 प्रतिशत है। इस क्षेत्र में जो प्रत्याशी वोटरों को अपने पाले में लाने में सफल होते हैं, उन्हीं के सिर पर ताज सुशोभित होता है।
बना रहेगा चित्तौड़गढ़ का रिकॉर्ड?
औरंगाबाद लोकसभा सीट के साथ एक रिकॉर्ड जुड़ा हुआ है जो 1952 से लेकर अब तक बरकरार है। 1952 से अबतक यहां सिर्फ राजपूत जाति के उम्मीदवार ही विजयी हो सके हैं। इसलिए इस लोकसभा क्षेत्र को मिनी चितौड़गढ़ के नाम से भी जाना जाता है। यहां के पहले सांसद सत्येंद्र सिन्हा राजपूत जाति से थे, जो बाद में बिहार के मुख्यमंत्री भी बने थे। इसका एक कारण यह भी था कि यहाँ दोनों प्रमुख उम्मीदवार राजपूत ही होते थे मगर इसबार बात वोह बात नहीं है| हम ने महागठबंधन समर्थन में एक कुशवाहा उम्मीदवार उतारा है| देखना दिलचस्प होगा कि इतिहास फिर दोहराया जायेगा या बदलेगा|