हाँ ठीक है हम बिहारी हैं.. बचपने से अइसे इस्कूल में पढ़े हैं, जहाँ बदमाशी करने पर माट साब “ठोठरी पकड़ के खिड़की दने बीग देने” का धमकी देते थे. बचपने से हम हिंदी के नाम पर मैथिलि-मगही का खिचड़ी बोले हैं.
ता का हुआ जो हम शाम को साम बोलते हैं, ता का हुआ जो हम टॉपिक को टापिक बोलते हैं, ता का हुआ जो हम सड़क को सरक बोलते हैं. समझ में आ जाता है ना..? बस हो गया.. भाषा का मतलबे ईहे है कि सामने वाला को अपना बात समझा दो..
दवाई दोकान पर जाते हैं तो का कहते हैं हम.? भईया पेट झड़ने का दवाई दीजिए.. तो ऊ पेट ठीक होने का ही दवा देता है ना जी! बात समझ गया ना कि हम का बोलना चाह रहे थे.. जब नउमा पास एगो दवाई दोकानदार इतना बात समझ जाता है ता आप पढ़ल-लिखल लोग काहे बेमतलब बतकुच्चन करते हैं!
तीन साल दिल्ली रहे. जभिए मुंह खोलते थे सामने वाला बूझ जाता कि बिहारी है. जबले बिहारी म्यूट, तबले बिहारी क्यूट. दिल्ली वाला दोस्त सब हंस देता था.
अबे झगरा नहीं होता है, झगड़ा होता है भाई. गज़ब चौपट आदमी हो महराज, इधर हमको सोंटाई पड़ने वाला है आ तुमको अइसा क्रूशियल टाइम में हमारा परननसिएशन सुधरवाना है. बहुत कोशिश किए कि साम को शाम बोले, इस चक्कर में सुंदर भी शुन्दर निकल जाता था.
बहुत कोशिश किए सरक को सड़क बोलें, इस चक्कर में आरा-बक्सर को भी आड़ा-बक्सड़ कर देते थे! बहुत हुज्जत हुआ.. लेकिन दिल्ली छोड़ते-छोड़ते भाषा ठीक हो गया.. अब हिंदी बोलते है ता सामने वाला कहता है बुझैबे नहीं करता है आप बिहारी हैं! इसलिए हम इस भाषा में लिखते हैं कि हमारा बिहारी वाला पहचान बचा रहे!
हाँ, ता शुद्ध हिंदी सीखते-बोलते जीवन का तेइस बसंत बीत गया. ता अब सोसाइटी कहता है हिंदी वाला नहीं चलेगा. वी वांट फ़्लूएंट इंग्लिश.. आ अंग्रेजी में भी साला दू अलग-अलग क्लास है. इंटरप्रेनुएर वाला मिडिल क्लास आ आंत्रप्रेन्यर वाला एलिट क्लास.
अरी दादा, सरक से सड़क पर आने में तेइस साल लग गया. अब हम कहाँ से इतना जल्दी शशि थरूर बन जाएं.
अभी तो चार साल पहले तक दोकान के बाहर टंगाए SALE-SALE-SALE को साले-साले-साले पढ़ते थे..! अब हमको ईहो डर लगने लगा है कि तीस साल तक होते-होते रो-धो के अंग्रेजी सीख भी जाएं ता कहीं सोसाइटी फिर ना कहीं बोले – “ब्रो, इंग्लिश इज आउटडेटेड.. अब जावा, c++ आ पायथन चलता है!”
– अमन आकाश
फोटो: Once Upon A Time In Bihar