ऐश्वर्या में तेजप्रताप यादव का राधा तलाशना ‘ग़लती’ किसकी?
फ़िल्म शुरू होने से पहले एक वैधानिक चेतावनी आती है, ‘धूम्रपान सेहत के लिए हानिकारक है’. मगर कोई इस पर ग़ौर ही नहीं करता. प्रेम में भी ऐसी ही चेतावनी आती हैं. ‘प्रेमपान’ में जुटे दिल भी कुछ भी हानिकारक होने की फिक़्र नहीं करते.
दिल के पंप से खून फेंकते ये जवां लोग मिलन की हर तारीख़ को वेलेंटाइन्स डे बना देते हैं.
फ़िल्म शुरू हुई है तो ‘विलेन’ भी आएंगे. ये अपने परिवार, दोस्त, समाज के रचे विलेन होते हैं जो कोई भी काम दो ही विचारों में धँसकर कर पाते हैं.
पहला- कोई चांस हो.
दूसरा- परंपरा है जी, समाज क्या कहेगा?
ऐसी रियल लाइफ़ कहानियों में एक गोरी सी लड़की अपने बाजू में सांवले से लड़के को बैठाकर हम सबसे कहती है, ‘देखिए हम लोग एक साथ भागे हैं. ठीक है? इनका कोई ग़लती नहीं है.’
ये है अपनी राधा. फ़िल्म की हीरोइन. जो परंपरा, समाज, चांस जैसे विलेन की आँख में आँख डालना जानती है. वही राधा, जिसे तेज प्रताप यादव खोज रहे हैं. लेकिन तलाक की अर्ज़ी के बाद. या शायद पहले से?
जीवन साथी राधा चाहिए या कृष्ण?
लालू प्रसाद के बेटे तेजप्रताप यादव ने पाँच महीने पुरानी शादी ख़त्म करने का फ़ैसला किया है.
तेजप्रताप ने कहा, ”मेरा और पत्नी ऐश्वर्या राय का मेल नहीं खाता. मैं पूजा पाठ वाला धार्मिक आदमी और वो दिल्ली की हाईसोसाइटी वाली लड़की. मां-बाप को समझाया था. लेकिन मुझे मोहरा बनाया. मेरे घरवाले साथ नहीं दे रहे हैं.”
तेजप्रताप मथुरा के निधिवन और ज़िंदगी में राधा की तलाश में नज़र आते हैं और उस भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं, जिनके घरवाले उनका साथ नहीं देते. वो मोहरा बन जाते हैं जाति, धर्म, रुतबे और हाईसोसाइटी बनाम लो-सोसाइटी के.
ये वही सोसाइटी है, जो किसी के तलाक की ख़बरों को चटकारे लगाते हुए पढ़ती है. किसी जोड़े के निजी फ़ैसलों की वजहों को कुरेदकर किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहती है.
लेकिन सालों से मौजूद उस निष्कर्ष को व्यापक तौर पर अपनाने से आँख बचाती है, जिसमें राधाएं अपने कृष्ण से मिल सकें और कृष्ण अपनी ज़िंदगी राधा संग गुज़ार सकें.
ऐसी ही सोसाइटियों ने परंपराओं और ख़ुद सोसाइटी के नाम पर ख़ुद को दकियानूसी विचारों में जकड़ लिया है. मानो क्रूर मुस्कान लिए कह रहे हों, ‘हम लोग बिछड़ के रह भी नहीं पाते हैं. ठीक है?’
हम अब भी उस हवा में सांस ले रहे हैं, जिसमें लड़के और लड़कियां घर से भागने को मजबूर हैं.
भारत में चुनाव सिर्फ़ सत्ता को हासिल करने तक सीमित नहीं रहता है. जीवनसाथी चुनने की आज़ादी जैसे बुनियादी लेकिन अहम फ़ैसलों में भी एक चुनाव से गुज़रना पड़ता है.
परिवार चुनें या प्यार?
तेजप्रताप यादव, ऐश्वर्या राय जैसे न जाने कितने ही लोग चुपचाप परिवार चुन लेते हैं लेकिन कुछ आंखों में दिल की चमक लिए कहते हैं, ”हमको इन्हीं के साथ रहना है. घर परिवार किसी से लेना देना नहीं. ठीक है? अब हमें मां-बाप किसी से मतलब नहीं. बस मेरे सास ससुर अच्छे से रहें. ये अच्छे से रहें. इनके खुशी में मेरा खुशी है. ठीक है?”
ऐसे ही प्यार करने वाले होते हैं, जो हरियाणा की भी हवा को बदल देते हैं. हरियाणा, जहां की खाप पंचायतें और लिंग अनुपात दर का फासला स्कूल की उन दीवारों पर हँसती नज़र आती रही हैं, जिन पर लिखा होता है- बेटियां अनमोल हैं.
चाहें तो हरियाणा के उन 1170 जवां दिलों को शुक्रिया कहिए, जिन्होंने बीते छह महीने में जाति के बंधन को खोलकर अपने पसंद की शादी करना चुनते हैं.
ये वाला मतदान गुप्त नहीं रहता. अगर परिवार प्रेम से किए विवाह के लिए तैयार न हो तो लड़कियां कहलाती हैं भागी हुई और लड़के… कृष्ण.
लड़कों को कृष्ण रहने की आज़ादी और लड़कियों को?
कृष्ण:
- जिन्होंने राधा से प्यार किया
- गोपियों संग भी रहे
- माखन चुराते, ‘रासलीला’ करते नहाती गोपियों के कपड़े ले जाते
- चीरहरण के वक़्त द्रोपदी की रक्षा करते
- पत्नी रुकमणी संग रहते
अपनी-अपनी सुविधा से हम कृष्ण के रूपों को स्वीकार करते हैं
किसी भी रूप में कृष्ण… कृष्ण ही रहते हैं. लेकिन ऊपर अगर कृष्ण की बजाय राधा लिखा होता तो क्या लोग अपनी आस्थाओं और आसपास राधा को इन रूपों में स्वीकार करते?
एक बड़े हिस्से के सच पर नज़र दौड़ाएंगे तो जवाब है नहीं. बिलकुल नहीं.
तेज प्रताप ने दिल्ली के मिरांडा हाउस में पढ़ने वाली ऐश्वर्या राय की बात करते हुए जिस हाई-सोसाइटी का ज़िक्र किया था, वो इसी राधा और कृष्ण का फ़र्क़ बयां कर जाता है.
तलाक का मामला कोर्ट में है. अगर न भी होता, तब भी इस पर बात करने का हक़ किसी को नहीं है. लेकिन अगर इस एक मामले को एक बड़े चश्मे से देखा जाए तो तेज प्रताप ने सच ही बोला है.
हम अब भी सोसाइटी के हाई या लो होने के फ़र्क़ में उलझे हुए हैं. लड़की मिरांडा हाउस की पढ़ी हुई है तो हाईक्लास ही होगी और हाईक्लास लड़की राधा नहीं हो सकती? हां चूंकि राधा की चाहत एक लड़के को है, तो वो कृष्ण ज़रूर हो सकता है?
‘देखिए हम लोग एक साथ भागे हैं. ठीक है? इनका कोई गलती नहीं है.’
तो फिर फ़र्क़ कैसा?
लेकिन ये फ़र्क़ किया जाता रहा और किया जाता रहेगा. हमारे घरों में परिवार अपने-अपने मानकों, समाज की फिक्र में न जाने कितने ही तेज प्रतापों और ऐश्वर्या रायों को ‘मोहरा’ बनाते रहेंगे.
बेटी राधा हुई तो कृष्ण से और बेटा कृष्ण हुआ तो राधा के पीछे दौड़ते रहेंगे…
- घरों की राधाओं, कृष्णों के हार मानकर समाज, परिवार की संतुष्टियों के ‘मोहरा’ बनने तक
- परिवार और समाज को छोड़कर अपनी राधा या कृष्ण संग नए सफ़र पर चलने तक
- या फिर उन हज़ारों सैराट जैसी कहानियों के अंत तक, जहां प्यार करने वालों का ही अंत हो जाता है.
क्या हमें बड़े स्तर पर अपने आस-पास की राधाओं, कृष्णों, तेजप्रतापों और ऐश्वर्या रायों के पीछे दौड़ना बंद कर सकते हैं?
दिल में धंसे उन दो ख्यालों ‘परंपरा है जी, समाज क्या कहेगा’ और ‘कोई चांस है’ को निकालकर फेंक सकते हैं?
जवाब हां होगा, तो जल्द ही अंतरजातीय विवाह करने की सुखद ‘घटनाएं’ अख़बारों की ख़बर नहीं बनेंगी.
जवाब ना में देने जा रहे हैं, तो वायरल वीडियो की उस प्रेम में डूबी लड़की की बात को याद रखिएगा.
”अगर हमको लोग अलग कर सकता है तो हम ज़हर खाके दोनों लोग मर जाएंगे. ठीक है?”
साभार: BBC (विकास त्रिवेदी)