‘सविता’ का ही दूसरा नाम है ‘छठी मैया’ जो बच्चों को अकाल मृत्यु से बचाती है
हर देवता जनमानस में संकट की घडी में लहर लेता एक महाभाव है। हर देवी-देवता का चेहरा एक महाभाव के मूर्तन की तरह पढना चाहिए – वीरता, सोंदर्य, न्याय और करुणा की मूर्तन की तरह।
हर देवता की एक शक्ति के साथ पूजा होती है। सूर्य की शक्ति का नाम ‘सविता’ भी है ।बिहार की लोक – परम्परा में ‘सविता’ का ही एक नाम ‘छठी मइया’ भी है।
सूर्य की किरणे ‘चर्म रोग’ का निवारक मानी जाती है और हड्डियो को विटामिन – डी पहुचाने का सबसे प्रमाणिक स्त्रोत है। बिहार में चेचक एक महामारी के रुप में आता था और बडी संख्या में बच्चे काल-कवलित हो जाते थे। छठी मइया या सूर्य शक्ति उसी के निवारक के रुप में मूर्तिमान है।
आज भी गांवो में ‘चेचक’ को ‘माई’ का ही स्थान दिया जाता है।
पुरुष सतात्मक समाज मे इतने बडे स्तर पर किसी शक्ति (सविता) का पूजा होना ‘नारी’ के अस्तितव को स्थापित करती है। वर्तमान में यह पर्व न केवल बिहार बल्कि प्रत्येक राज्य तथा विदेशो में भी बडे स्तर पर मनाया जा रहा है। हमारे समाज में अधिकतर पर्व महिलाओं के द्वारा किया जाता है। परन्तु ‘छठ पर्व’ बडी संख्या में पुरुषो के द्वारा भी किया जा रहा है, यह पर्व न केवल एक त्योहार के रुप में है बल्कि यह पर्व प्रकृति के अधिक अनुकूल लगता है, क्योंकि इसमे अराध्य देवता सूर्य की उपासना की जाती है, जो प्रकृति देवता के रुप में विद्यमान है।
बिना किसी पंडित, पुरोहित आदि के मदद लिए बिना सूर्य देवता की अराधना की जाती है। जल स्त्रोतों से मानव का जुडाव और उन पर निर्भरता का भी परिचायक है यह पर्व। किसानो के लिए यह पर्व खुशियां लेकर आता है, फसलो की कटाई और मौसमी फलों का प्रसाद के रुप में वितरण आदि।
यह पर्व बिना किसी भेद-भाव के चाहे वह प्राकृतिक स्तर पर हो, समाजिक स्तर पर हो पुरुष-स्त्री का भेद भाव आदि के बिना ही यह पर्व एक साथ एक ही स्थान पर मनाया जाती है। शायद इसीलिए इस पर्व को महापर्व कहा जाता है। छठ गीतों में ‘छठी मइया’ के अतिरिक्त दीनानाथ अर्थात दीनो के नाथ को सर्वाधिक संबोधित किया जाता है।
प्रत्येक गीतों में पुत्रों के साथ पुत्रियों को समान रुप से संबोधित किया जाता है। यह पर्व प्रकृति के अनुकूल समभाव के साथ मनाया जाता है। यह महापर्व पुरुष सतात्मक समाज में ‘शक्ति रुपी देवी सविता, छठी मइया’ का पूजा होना समाज में ‘स्त्री शक्ति’ के महत्व को बताता है। तथा मानव की प्रकृति से गहरा संबंध को दर्शाता है। यह पर्व समाज में शक्ति का अस्तितव किस प्रकार विद्यमान है यह बताता है। अभी भी यह पर्व अपनी मूल भावना के साथ मनाया जाता है। आस्था का यह पर्व अपनी अनेक विशेषताओं के साथ बहुत बडे स्तर पर मनाया जा रहा है ।
– निधि तिवारी (लेखिका बीएचयू में इतिहास की छात्रा है)