काँच ही बांस के बहंगिया बहँगी लचकत जाये
पहनी ना देवर जी पियरिया बहँगी घाटे पहुचाये”!!
ई गीत सुनते ही मनवा मे एगो लहर उठेला, दिल खुश हो जाला, छठ महापर्व के आगमन हो जाला। सभे बिहारी, परदेसी चाहे विदेसी छठ में अपना देस जरुर आवेला लोग भले एकरा खातीर ट्रेन के भीड़-भडा़का मे कुचलाए के पडे़।
छठ महापर्व के लीला ऐतना अपरंपार होला की तीवईया तीन दिन के निर्जला व्रत बिना कोउनो परेसानी के सारा विधि-विधान से ई पर्व खुशी-खुशी मनावेली।
नहाए-खा से शुरु होखे वाला ई पर्व तीन दिन तक चलेला।
माई गेहूं धो के दू दिन तक धूप मे सुखावेली फेर बाबूजी जाता मे पिसवाएनी।
नहाए-खा वाला दिन के घी वाला घीया के तरकारी और रोटी, और खरना (दूसरका दिन) के चुल्हा पर के गुड़ के खीर मनवा के और जीभ के मोह लेला।
दऊरा सजावल जाला तरह-तरह के फल-फुल, ठेकुआ, खजूर और दीयरी से| माई के ओठ प्यासल रहेला लेकिन छठी मईया के गीत झूमझूम के गावेली। बाबूजी पियरी पहिन दउरा घाटे लेकर जाएनी और माई, चाची, मौसी आपन आपन सिंदूरा लेकर, अलता से सजावल आपन पैर के पैजनीया रुनझून बजावत चलेली। साथ ही भईया के कांधे लचकत ऊखीया बडा़ निमन लागेला। घाट के खुबे शोभा बढे़ला जब सभे वरती पानी बीच खडा़ होकर सुर्य देवता के अरघ देवेले। बाबा जी घाटे बारहो बाजा बजवावेनी और खूब थपरी पीट-पीट के ठुमकेनी।
छठ महापर्व के एतना गुणगान होला की हर कोई जाने के चाहेला आखिर ई पर्व ‘महापर्व’ काहे कहाला?
हमहु ई जाने खातिर अपना माई से पूछनी। ऊ बतइली की –
“ई पर्व बिहार और हर बिहारीवासी खातिर सबसे बड़ पर्व होखेला काहे से की ई धारणा बा की ई पर्व के शुरूआत सबसे पहिले अंगराज कर्ण से भइल। अंग प्रदेश वर्तमान मे भागलपुर ह, जउन बिहार में स्थित बा।
कर्ण के माता कुंती और सुर्य देवता के पुत्र मानल जाला। कर्ण सूर्य देवता के भक्त रहनी और नियम से कमर तक पानी मे खडा़ होकर सूर्य देव के पूजत रहनी और गरीबन के दान देत रहनी। कार्तिक शुक्ल षष्ठी और सप्तमी के दिने कर्ण सूर्य देव के विशेष पूजा करत रहनी। आपन राजा के सूर्य भक्ति से प्रभावित होके अंग देश के सभे निवासी सूर्य देव के पूजा करे लागल|
धीरे-धीरे सूर्य पूजा पूरा बिहार और पूर्वांचल मे फैल गइल। शुरू मे ई पर्व बिहार और उत्तर प्रदेश में ही मनावल जात रहे फेर धीरे-धीरे बिहार के लोग विश्व में जहां भी रहेला लोग ओजा ई पर्व के ओ ही श्रद्धा और भाव-भक्ति से मनावेला लोग।
ई पर्व से जुड़ल एगो और पौराणिक कथा बा कि कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी के सूर्यास्त और सप्तमी के सूर्योदय के मध्य वेदमाता गायत्री के जन्म भइल रहे. प्रकृति के षष्ठ अंश से उत्पन्न भइली षष्ठी माता बालकन सब के रक्षा करे वाली विष्णु भगवान द्वारा रचल गइल माया रहली।
….वैसे और भी कथा छठ पर्व से जुड़ल बा।”
तबही पीछा से मौसी कहली “ए बबुनी छठी मईया के महिमा अपरंपार बा, कब्बो खाली हाथ न जाए देवेली अपना तीवईया लोग के, सभे लोग के सपना पूरावेली त काहे न ई पर्व ‘महापर्व’ कहाई।”
शाम के अरघ के बाद रात मे कोसी भराला, सोहर गवाला, सभे गीत गावेला, जगमग दीयरी जरेला। माई के सिंदुरवा आज बडा़ सोहाला काहे से की आज ई नाक पर से माथा तक लागेला। ई सिंदुर बतावेला की माई छठी मईया से आपन सुहाग के लंबा उमर मांगत बारी।
छठ के सुबह वाला अरघ खातिर सुबह ३ बजे से ही चहलकदमी शुरु हो जाला, कल्पना और शारदा सिन्हा के गीत गूंजे लागेला। ठंडी मे रजाई छोड़कर उठे के पडे़ला, लेकिन घाटे जाए के खुशी के आगे नींद भी न सुहावन लागेला। सब लोग के उठे से पहिले माई तीन-चार खल के तरकारी बना देवेली।
घाटे के कमर तक के ठंडा पानी मे खडा़ होके, कप-कपाइल हाथ मे सूप लेकर, किटकिटाइल दांत और आँख मे एगो आस लिए सभे वरती सुर्य देव के राह ताकेला। ए दिन सुर्य देवता भी तनी नखरा दिखाएनी और ऊगे मे देर करेनी। पीछा से कल्पना अपना गीत मे कहेली की “ऊग हो सुरूज देव, भइल भिनुसरवा,अरघ के रे बेरवा,पुजन के रे बेरवा नू हो”
और सुर्य देवता के पहिला किरण लौकते ही सभे अरघ देकर आपन व्रत सफलतापुर्वक खत्म करेला लोग। और गरम पानी से आपन तीन दिन के व्रत पे विराम लगा देवेला लोग।
छठ महापर्व के महिमा पूरा जगजाहिर बा। यहा तक कि बिहार के मुस्लिम लोग भी ई महापर्व के मनावेला लोग और धीरे-धीरे पूरा विश्व मे धूमधाम से मनावल जाला।
जय घठी मईया
– शिल्पा कुंवर