समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा के इस्तीफे के बाद, बिहार के राजनितिक गलियारों में नीतीश कैबिनेट के विस्तार का चर्चा जोरो पर है| कैबिनेट में फिलहाल आठ जगह खाली है। आधे दर्जन नए मंत्रियों के जल्द शामिल किए जाने की चर्चा है। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में सामाजिक समीकरण को साधने के लिए यह कवायद की जाएगी|
हाल के दिनों में एससी-एसटी एक्ट को लेकर दलितों ने मोदी सरकार के खिलाफ असरदार आंदोलन किया है| दो अप्रैल को दलितों का असरदार भारत बंद तो था ही, उसके साथ ही दलित नेता जीतन राम मांझी ने भी एनडीए का दामन छोड़ राजद के साथ जा चुके हैं| सूत्रों के मुताबिक, नीतीश की कोशिश दलितों में पैठ बढ़ाने और गैर यादव अन्य पिछड़ा वर्ग को ज्यादा प्रतिनिधित्व देने की है| ताकि दलितों के बीच एक अच्छा सन्देश जाए और पार्टी का आधार मजबूत हो| इसी के मद्देनजर श्याम रजक और कांग्रेस छोड़ कर जेडीयू का दामन थामने वाले अशोक चौधरी कैबिनेट के रेस में सबसे आगे नजर आ रहे हैं|
मंजू वर्मा नीतीश सरकार में एकलौती महिला मंत्री थी| उसके इस्तीफा के बाद नीतीश कैबिनेट में महिला प्रतिनिधित्व ख़त्म हो गया है| महिला को प्रतिनिधित्व देने के लिए एक महिला मंत्री बनना तय है| बीमा भारती, रंजू गीता या लेसी सिंह इसके प्रबल दावेदार हैं|
इसके साथ ही मंजू वर्मा कुशवाहा समाज से आती है| इस समाज के वोट बैंक बार अभी सभी पार्टियों का नजर है| कुशवाहा समाज का समर्थन नीतीश कुमार को मिलता रहा है| मगर अब इस वोट बैंक पर अब कई लोग दाबा कर रहे हैं| नीतीश कुमार इस समाज को साधने के लिए मंजू वर्मा के जगह किसी दुसरे कुशवाहा नेता को ही मंत्रिमंडल सामिल करेंगे| कुशवाहा जाति से कई नेता इसके दावेदार हो सकते हैं, जिनमें अभय कुशवाहा और उमेश कुशवाहा शामिल हैं|
अभय कुशवाहा को युवा जदयू की कमान दे दी गई है और वह जिस मगध प्रमंडल से आते हें वहां से कृष्णनंदन वर्मा इस समाज से पहले ही मंत्री बने हुए हैं, इसलिए उत्तर बिहार के किसी कुशवाहा नेता को यह पद मिल जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। भाजपा का कोटा लगभग पूरा हो गया है। नीतीश कैबिनेट में रालोसपा को कोई जगह नहीं मिली है। अगर एनडीए के केंद्रीय नेतृत्व का दबाव पड़ा तो रालोसपा के सुधांशु शेखर को भी मंत्री बनाया जा सकता है।