फिलिम का नशा: चंदा के पइसा में से सौ रूपया इसीलिए बचाया जाता कि रात को टीभी चलेगा
“एगो फिलिम खतम हुआ त हम थोड़ा-सा लघुशंका से निपटने के लिए चापाकल के तरफ बढ़े.. वहां देखे ता चद्दर ओढ़ के “महेन चा” खड़े थे..
हम बोले, चचा चिंटुआ ता फिलिम देखने नहीं आया है.. साँचो कह रहे हैं.. एक बेर आप फेर से गोसाईं वाला घर में देखिएगा, ऊंहे सोया होगा चुक्की मार के..”
ई बात उस टाइम का है जब हम तीसरा-चउथा में पढ़ते थे.. नया-नया जवान हो रहे थे ता फिलिम देखने का नया नशा चढ़ा था.. आ ऊ टाइम अइसा था कि गाँव में पोल आ तार बिछाएल तो था लेकिन बिजलिए नहीं था.. आज के तरह घरे-घर टीभी आ हाथे-हाथ मोबाइल का जमाना नहीं था.. मेन मुद्दा ई है कि हमलोग किए जन्माष्टमी का पूजा.. चंदा के पइसा में से सौ रूपया खाली इसीलिए बचाया गया कि रात को टीभी चलाया जाएगा.. रात भर.. दिन भर पूजा-पाठ आ मेला देखे के चक्कर में बिजी रहे लेकिन दिमाग में ई चलता रहा कि रात का सारा जोगाड़ करना है.. भाड़ा पर टीवी, भाड़ा पर बैटरिक, भाड़ा पर सीडी आ मित्थुन चकरबरती, अजय देबगन आ सन्नी देबल के तीन ठो फिलिम का चक्की.. बैटरिक वाले को पहिले ही हड़का देते थे कि अगर भोर होने से पहिले बैटरिक कटा तो फिर सोच लीजिए, इसका सारा तेजाब से चापाकल के कदई धो देंगे..
हमलोग सांझे से बैटरिक, टीभी आ सीडी के जोगाड़ में लग जाते थे.. कोई साइकिल पर पीछे बान्ह के बैटरिक ला रहा है ता कोई माथा पर रखके टीभी.. “महेन चा” के लिस्ट में हम सब मोहल्ला के एक नम्मर बिगड़ैल में आते थे.. हमलोग इधर अपना सिस्टम फिट करते रहते आ उधर “महेन चा” का लईका चिंटुआ चुपचाप अपने दलान पर लालटेन जलाकर पढ़ता रहता था.. ऊ पढ़ेगा क्या, पूरा ध्यान ता उसका इधरे रहता था.. चचा का सख्त हिदायत रहता था कि अगर फिलिम देखे गया ता एक-एक गो किताब-कापी में आग लेश देंगे.. बेचारा चिंटुआ आ उसका फेबरेट हीरो मित्थुन.. कल जब कहानी बताएंगे ता मुंह बा के सुनेगा..
पूरा टोला में हल्ला हो जाता कि आज रात में टीभी चलेगा.. सब अपना-अपना फरमाइश रखते.. मम्मी-दीदी-फुआ के लिए जीतेन्दर का “घर-संसार” चाहे राजेश खन्ना का “स्वर्ग” इस्पेशल आता था.. तभिए रात का खाना जल्दी बनेगा.. पहला शो फैमिली शो चलता.. जइसे ही राजेश खन्ना साहब स्वर्ग सिधारते, महिलामण्डली नोर पोंछते हुए चटैया-बोरा लेकर बिदा हो जाती.. अब पहीले मित्थुन का फिलिम चलेगा.. जेतना लौंडा पीछे बइठा था सब अपना चटाई-बोरा लेके आगे खिसक जाता.. शेरा से लेकर बंगाल टाइगर तक आ ज्वालामुखी से लेकर कमांडो तक.. मित्थुन के एक्को गो अइसा फिलिम नहीं था जो हमसे छूटा हुआ हो.. जइसे ही फिलिम खतम हुआ, हम हल्का होने के लिए चापाकल के तरफ बढ़े.. उहाँ मिल गए महेन चा.. हम बोले कि चचा चिंटुआ ईहाँ नहीं है… चचा हमको बुलाए आ फुसफुसा के पूछे..
“अरे उचक्का सब, सन्नी देबल का कोनो फिलिम लाया है कि नहीं?”
हम उहाँ से भागते हुए आए आ अपना दोस्त सबको बोले “अरे अंगना से एगो कुरसी ले आओ, महेन चा फिलिम देखने आए हैं!!”
– अमन आकाश
(चोरौत, सीतामढ़ी)