2005 में बिहार में सत्तासीन होने के बाद से ही नीतीश कुमार राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग प्रमुखता से उठाते रहें हैं। अपने मुख्यमंत्री के इस मांग के समर्थन में बिहार की जनता ने भी भरपूर समर्थन दिया।
केंद्र सरकार पर दबाव बढ़ा, उस समय की कांग्रेसी सरकार ने बस आश्वासन देकर छोड़ दिया। जवाब में उस समय विपक्ष में बैठी जेदयू की सहयोगी बीजेपी ने वादा किया कि केंद्र में सरकार बनने पर, वह बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देगी।
आज केंद्र सरकार में भारी बहुमत के साथ बीजेपी की सरकार है और राज्य में भी नीतीश के नेतृत्व में एनडीए सरकार। चूंकी चुनाव नजदीक है और फिर से जनता की अदालत में जाना है। तो फिर से बिहार को विशेष राज्य का दर्जे देने की मांग जोड़ पकर चुका है।
कैसे मिलता है विशेष राज्य का दर्जा?
किसी राज्य की भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक और संसाधन के लिहाज से उसकी क्या स्थिति है। इन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए विशेष राज्य का दर्जा दिया जाता है। विशेष राज्य का दर्जा कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं है। केंद्र सरकार अपने विवेक से उपरोक्त परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए विशेष राज्य का दर्जा देती है। 1969 में पांचवें वित्त आयोग के कहने पर केंद्र सरकार ने तीन राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था। नेशनल डेवलपमेंट काउंसिल ने पहाड़, दुर्गम क्षेत्र, कम जनसंख्या, आदिवासी इलाका, अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर प्रति व्यक्ति आय और कम राजस्व के आधार पर इन राज्यों की पहचान की थी। 1969 में असम, नगालैंड और जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्ज दिया गया था। बाद में अरुणाचल, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा, हिमाचल और उत्तराखंड को विशेष राज्य का दर्ज मिला।
विशेष राज्य के फायदे
अब आपको बताते है कि विशेष राज्य का दर्जा मिलने से किसी राज्य को क्या लाभ होता है। दरअसल, विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त राज्यों को केंद्र सरकार से 90 फीसदी अनुदान मिलता है। इसका मतलब केंद्र सरकार से जो फंडिंग की जाती है उसमें 90 फीसदी अनुदान के तौर पर मिलती है और बाकी 10 फीसदी रकम बिना किसी ब्याज के मिलती है। जिन राज्यों को विशेष दर्जा प्राप्त नहीं है उन्हें केवल 30 फीसदी राशि अनुदान के रूप में मिलती है और 70 फीसदी रकम उनपर केंद्र का कर्ज होता है। इसके अलावा विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों को एक्साइज, कस्टम, कॉर्पोरेट, इनकम टैक्स में भी रियायत मिलती है. केंद्र सरकार हर साल प्लान बजट बनाती है..प्लान बजट में से 30 फीसदी रकम विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों को मिलता है। अगर विशेष राज्य जारी बजट को खर्च नहीं कर पाती है तो पैसा अगले वित्त वर्ष के लिए जारी कर दिया जाता है।
क्यो मिलना चाहिए बिहार को विशेष राज्य का दर्जा?
बिहार भारत का दूसरा सबसे बड़ी आबादी वाला ग़रीब राज्य है, जहां अधिकांश आबादी समुचित सिंचाई के अभाव में मॉनसून, बाढ़ और सूखे के बीच निम्न उत्पादकता वाली खेती पर अपनी जीविका के लिए निर्भर है।
हर साल आने वाली बाढ़
करीब 96 फ़ीसदी जोत सीमांत और छोटे किसानों की है। वहीं लगभग 32 फ़ीसदी परिवारों के पास ज़मीन नहीं है।
बिहार के 38 ज़िलों में से लगभग 15 ज़िले बाढ़ क्षेत्र में आते हैं जहां हर साल कोसी, कमला, गंडक, महानंदा, पुनपुन, सोन, गंगा आदि नदियों की बाढ़ से करोड़ों की संपत्ति, जान-माल, आधारभूत संरचना और फसलों का नुक़सान होता है।
कोसी नदी के बाढ़ के पानी से बिहार के कई ज़िलों में तबाही मचती रही है।
विकास के बुनियादी ढांचे सड़क, बिजली, सिंचाई, स्कूल, अस्पताल, संचार आदि का वहां नितांत अभाव तो है ही, हर साल बाढ़ के बाद इनके पुनर्निर्माण के लिए अतिरिक्त धन राशि की चुनौतियां भी बनी रहती हैं।
पिछले सात-आठ सालों में बिहार की सालाना विकास दर अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर रही है।
निवेश की ज़रूरत
बिहार की बढ़ती विकास की दर सामान्यतः निर्माण, यातायात, संचार, होटल, रेस्तरां, रियल एस्टेट, वित्तीय सेवाओं आदि में सर्वाधिक रही है जहां रोज़गार बढ़ने की संभावना अपेक्षाकृत कम होती है।
खेती, उद्योग और जीविका के अन्य असंगठित क्षेत्रों में, जिन पर अधिक लोग निर्भर हैं, विकास की दरों में काफी उतार-चढ़ाव देखा गया है| शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में कई सकारात्मक प्रयास अवश्य हुए हैं जिससे सामाजिक विकास के ख़र्चों में महत्वपूर्ण बढ़ोत्तरी भी हुई है। लेकिन ये अब भी विकसित राज्यों की तुलना में काफ़ी कम है।
इस तरह अर्थव्यवस्था का आधार छोटा होने के कारण उनका सार्थक प्रभाव जीविका विस्तार और ग़रीबी निवारण पर दिखना अब भी बाकी है। इसके लिए सार्वजनिक क्षेत्र में पर्याप्त वित्तीय निवेश की ज़रूरत है।
राज्य को वित्तीय उपलब्धता मुख्यतः केंद्रीय वित्तीय आयोग की अनुशंसा पर केंद्रीय करों में हिस्से और योजना आयोग के अनुदान के साथ केंद्र प्रायोजित योजनाओं के अलावा राज्य सरकार द्वारा लगाए गए करों से होती है।
केंद्र प्रायोजित योजनाओं में अकसर राज्य की भागीदारी 30 से 55 फ़ीसदी होती है। चूंकि ग़रीब राज्यों की जनता की कर देने की क्षमता कम होती है, अकसर बराबर धनराशि के अभाव में ग़रीब राज्य उन योजनाओं का पूरा लाभ नहीं ले पाते हैं।
विशेष राज्य का दर्जा मिले
विशेष राज्य का दर्जा न केवल 90 फ़ीसदी अनुदान के लिए बल्कि करों में विशेष छूट के प्रावधान से विकास योजनाओं के लाभ और निवेश के लिए अनुकूल माहौल बनाने में भी मददगार होगा।
यदि राज्यों को मिलने वाले प्रति व्यक्ति योजना व्यय पर नज़र डालें तो बिहार जैसे ग़रीब राज्यों को मिलने वाली धनराशि पंजाब की तुलना में लगभग एक तिहाई से भी कम रही है जिससे विकास और ग़रीबी निवारण का कार्य प्रभावित होता है।
ग़रीब राज्यों की केंद्रीय संसाधनों में हिस्सेदारी बढ़ाने का आधार विकसित करने की ज़रूरत है, तब ही ये राज्य ग़रीबी निवारण के लिये आवश्यक विकास दर बनाए रख सकते हैं।
विशेषज्ञों की राय
बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ताजा मांग को पटना स्थित एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट (एडीआरआई) के सचिव शैबाल गुप्ता ने जायज ठहराया है। उन्होंने कहा, ‘बिहार सरकार को इस संबंध में अपनी मांग को मजबूती से रखना चाहिए।’
आर्थिक और सामाजिक मामलों के जानकार शैबाल गुप्ता ने कहा, ‘मैं नही कहूंगा कि नीतीश कुमार बीजेपी से अलग हो जाएं। यह राजनैतिक विषय है, लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि बिहार के लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग के लिए इससे बेहतर समय और नहीं हो सकता है।
शैबाल गुप्ता ने कहा, ’14वें वित आयोग के पास अधिकार ही नहीं है कि वह राज्य को विशेष राज्य का दर्जा दे सके। बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का फैसला केंद्र सरकार को करना है। विशेष राज्य के लिए जो मापदंड निर्धारित हैं, उसे बिहार पूरा करता है। राज्य बाढ़ से पीड़ित रहता है। जनसंख्या ज्यादा है,यानी बिहार जिन समस्याओं का सामना कर रहा है उसके मुताबिक उसे विशेष राज्य का दर्जा मिलना चाहिए।