कभी हाथियों के वार को आसानी से सह जाने वाली बिहार की यह हवेली की दीवारे हो रही है मलबे में तब्दील
इतिहास को खुद में समेटे एक हवेली आखिरी सांस गिन रही है
कई सारी पुरानी यादों को खुद में समाहित किये बेतिया राजघराने की हवेली आखिरी साँसे गिन रही है। कभी हाथियों के वार को आसानी से सह जाने वाली इस हवेली की दीवारें अब खुद ही दरक रही है। यह हवेली कभी भी मलबे में तब्दील हो सकती है।
जानकारों की मानें तो 17वीं शताब्दी में बेतिया के महाराजा दिलीप सिंह ने करीब चार एकड़ में हवेली का निर्माण यहां की वन संपदा की देखरेख के लिए कराया था। इसके बाद राजघराने के महाराजा बदलते रहे, लेकिन हवेली रोशन रही। जब भी महाराज शिकार के लिए आते, यह हवेली उनकी विश्रामस्थली हुआ करती थी।
राजघराने के अंतिम शासक हरेंद्र किशोर की मृत्यु के बाद अंग्रेजी हुकूमत ने बेतिया राज को तत्काल अपने प्रभाव में ले लिया। इसके बाद अंग्रेजों ने इस हवेली के आसपास दो आरा मशीनें लगवाकर इसे रेंज ऑफिस का रूप दे दिया।
आजादी के बाद वर्ष 1955 में बगहा को प्रखंड घोषित किया गया। उस वक्त इसी हवेली में प्रखंड कार्यालय खोला गया। निचले भाग में कार्यालय और ऊपरी भाग में कर्मचारियों का आवास होता था। 1970-72 तक प्रखंड कार्यालय चलता रहा। अभी इस जर्जर भवन में कुछ राजस्व कर्मी रहते हैं।
आज देखरेख के अभाव में आरा मशीन, अस्तबल और रसोईघर सहित अन्य स्थान के निशान पूरी तरह मटियामेट हो चुके हैं। यह हवेली वर्ष 2015 में आए भूकंप के झटकों के बाद ‘हिचकियां’ ले रही है। ‘प्राण’ कब निकल जाय, कहना मुश्किल है।
बेतिया राज को पत्र लिखेंगे एसडीएम
एसडीएम ने बगहा दो प्रखंड परिसर में स्थित इस एतिहासिक हवेली की मरम्मत के लिए बेतिया राज को पत्र लिखने का निर्णय लिया है। इससे इस हवेली की सुरक्षा की आस जगी है। बता दें कि हवेली के ठीक बगल में राज्य खाद्य निगम के कई गोदाम बन चुके हैं।
उनके निर्माण पर करोड़ों खर्च हुए, लेकिन हवेली की ओर किसी का ध्यान नहीं गया। एसडीएम बगहा घनश्याम मीना का कहना है कि हवेली की सुरक्षा आवश्यक है। पत्राचार किया जा रहा है। जरूरत हुई तो प्रशासन अपनी देखरेख में मरम्मत कराएगा।
साभार -जागरण