जब ग्रीटिंग्स कार्ड से सज जाती थी दुकाने, एक वो आखिरी दिसंबर हुआ करता था। जब कार्ड बोर्ड के गत्ते पर ,मोम की पेंटिंग्स से वो हैप्पी न्यू ईयर लिखा हुआ करता था । हर कार्ड पर लिखते थे रंग बिरंगी कलम से वो दोस्ती वाली शायरी कमबख्त हर दोस्त ही शायर हुआ करता था।
सुबह उठते ही उन ओस की बूंदों में भी, थाम लेते थे हाथ मे बल्ला, उन ओस की बूंदों पर टेनिस की पड़ती थी जब गेंद, इन स्विंग आउट स्विंग पता नहीं कौन सा सविंगर हुआ करता था। लट्टू पे रस्सी लपेटे, मुट्ठी में कंचे समेटे, वो कब्बडी-कब्बडी का लहर हुआ करता था।
वो एंटेना घुमा-घुमा के, शक्तिमान-शक्तिमान चिल्लाना वो ब्लैक एंड वाइट टीवी, पूरे मोहल्ले का थिअटर हुआ करता था।
मिलते थे जब पिकनिक मनाने के वो पैसे घर से, चावल, अंडे और सेवइयां बटोरी जाती थी, हर दोस्त का घर भी अपना घर हुआ करता था।
उस आम-लीची के बागान में कभी पेड़ पे चढ़ते थे, कभी नदी में मछलियां पकड़ते थे|
कभी तुम झगड़ते थे कभी हम झगड़ते थे, कभी पैदल तो कभी नाप लेते थे साइकिल की पैडल पे पूरा मुहल्ला, क्या गांव क्या टोला ,पूरा अपना शहर हुआ करता था।
नई किताबो की वो खुशबू, जब नाक से सूंघा करते थे, नई किताबों पे जब वो पेपर का कवर हुआ करता था।
याद आते है वो बचपन के बीते हुए पल, एक वो भी हैप्पी न्यू ईयर हुआ करता था।