दरअसल
आज कथन है महिला सशक्तिकरण की…..
गांव घरों में लगातार 24 घंटे अष्टयाम का चलन बहुत पुराना है जो आज भी सतत निरंतर चलता रहता है। कहीं-कहीं तो लगातार 9 दिनों तक अष्टयाम चलता है जिसे नवाह अष्टयाम यज्ञ कहा जाता है।
आप जानिए की यह एक कलयुग यज्ञ संस्कार है। भगवान के मंत्र जाप का।
बड़े बुजुर्गों की माने तो यह यज्ञ संस्कार करने से आस-पास (जहाँ तक आवाज पहुंचती है) के वातावरण में शुद्धि का स्रोत जागृत होती है। हर जगह एक नया सुद्ध वातावरण जागृत होता है। यहाँ तक कि पशुओं को भी फायदेमंद है।
आमतौर पर अष्टयाम में पुरूषों की टोली-मंडली को गाते-बजाते देखा गया है। 7-10 पुरूषों की टोली-मंडली शुद्ध मन से अपने वाद्ययंत्रों के साथ हारमोनियम, ढ़ोलक, तबला, मंजीरा, बांसुरी बजाते हुए भगवान नाम का मंत्र जपते हैं|
“हरे राम हरे राम राम राम हरे-हरे,
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे”।।
वे उसका सतत निरंतर उच्चारण करते रहते हैं। और यह टोली 1 घण्टे या कुछ घण्टों में बदल जाती है।
लेकिन आज बात निराली है, कुछ दिनों पहले एक गांव से गुजरते हुये पहली बार मैंने महिला सशक्तिकरण को उन्मुख होते देखा। कुछ महिलाओं के टोली-मंडली को अष्टयाम करते सुना और मंत्रमुग्ध हो गया। बहुत सारे लोगों के लिए यह एक नई बात थी, खासकर उस गांव के लिए भी। वैसे तो महिलाएं अपनी मंडली बना कर कीर्तन भजन करती ही है, आमतौर पर आपको यह कहीं मंदिर पर या किसी के घर पर आपको बैठ कर कीर्तन करते मिल जाएंगी।
पर जिस तरह से अष्टयाम संकीर्तन में खड़ी हो कर महिलाएं हारमोनियम, ढ़ोलक, बजाते हुए गा रही थीं यह मेरे लिए तो बिल्कुल ही आश्चर्यजनक था।
देर रात हो गए होने के कारण फोटो फ्रेम नहीं कर पाया। पर अन्तोगत्वा बात महिलाओं की शसक्तीकरण की ही है। जहाँ गाँवों में महिलाएं अपने सारी के पल्लू से मुँह ढकी रहती थीं वहाँ आज अब सृजनशीलता का एक नया दौर शुरू हुआ है। आपस मे शक्ति गठित किया रहा है।
ये बात कतई नहीं कि आप कमजोर हैं, आपको कमजोर बनाने की कथित समाज की मनगढ़ंत सोच है। जिसे जड़ से उखाड़ फेंकना है।
महिला समाज सामाजिक तौर पर यहीं विचार लाती है कि…
इतनी शक्ति हमें देना दाता,
मन का विश्वास कमजोर हो ना।