मिट्टी का चूल्हा, धुप में सूखता हुआ गेंहू, छठ का गीत और बगल में कोलहाल करता हुआ हमारा बचपन

झुण्ड में मिट्टी को सानती हुई औरते, धुप में सूखता हुआ गेंहू, बगल में कोलहाल करता हुआ बचवन सब का झुण्ड!

“माई जी हमरा चुल्ह्वा में माटी लगा दी न”, भौजी की सुरीली धुन गूंजी| चाची भी छमक के चूल्हे में मिटटी लगा के पोत-पात करने लगी| शाम होते ही खरना के लिय केला के पत्ता पर नेवज के लिए सरियाती हुई चाची बडबडाने लगी –“रे सोनुआ रे धुप डाल के गोड लाग ले छठी मईया के और गाय माता के ईगो नेवज खिला दे”|

लेकिन सोनुआ तो खचड़ा नम्बर वन ,उसको तो सिर्फ इस बात का इंतजार था कि कब पूजा खत्म हो और एक नेवज उठा के केला, नारंगी, खीर रोटी को घेप ले|

अब अगली सुबह उठते ही नदी के किछाड़े घाट में सफाई करता हुआ झुण्ड, सोनुआ लंगटे नदी में घुसा हुआ चिल्लाया – “रे साला सब इहवा बड़का गरई मछली है”,
“रे साला सोनुआ आज छठ है तुमको बुझाता नहीं है काs रे, छोड़ मछलिया को” मोनू झिड़क दिया|

घाट का सफाई कार्यक्रम पूर्ण हो चूका था| दोपहर में चाची ठेकुआ छानती हुई चिल्लाई – “सोनू! कपड़ा खीच दिए है, धोबी से आयरन करवा लेना”
“माई हमको नया कपड़ा चाहिए ,चाहिए तो बस चाइये,बहुत सारा पटाखा भी चाहिए” सोनू जिद करने लगा| चाची अपने लाडले को गोद में रख ली – “कितना दिक्कत से छठ का सामान जुगताs पाए है, नया कपडा कहाँ से लाये तुम्हारे लिए? बाबू जी तुम्हारे जिन्दा होते तो ये दिन नहीं देखना पड़ता, छठी मईया सब ठीक कर देंगी” चाची की आँखे छलक पड़ी | सोनू मान गया|

पुराने कपडे को ही पहने घाट पर पहुंचा, सारे रंग-बिरंगे कपड़ो में बच्चो को एक टक मायूसी और मासूमियत से देखने लगा| जब सारे बच्चे पटाखा छोड़ देते तो वो उन कागज के टुकडो को उठा के खुश होता और तालिया बजाने लगता, तभी मोनू उसके पास आया और उसके हाथ में दो बिड़िया पटाखा थमा दिया।

 

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