2042 Views

“विरासत में मिली नेमतें भेदभाव के लिए नहीं हैं”- अमित यदुनाथ

‘बिहारियत’ पर चलने वाली तमाम चर्चाओं में लोग अपना पक्ष-विपक्ष रखते रहे हैं। आपनबिहार पर आज हम पेश कर रहे हैं एक वक्तव्य जिसे लिखा है भोजपुरी और क्षेत्रीय भाषाओं को सिरमौर मान आगे बढ़ रहे युवा, ‘ललका गुलाब’ फेम अमित यदुनाथ ने। अमित बिहार के बक्सर जिले के डुमरांव से हैं और ‘मैड मंकीज प्रोडक्शन’ के बैनर तले फ़िल्म निर्देशन करते हैं। यह लेख अमित यदुनाथ जी के फेसबुक पोस्ट से लिया गया है।

अमित यदुनाथ

भारत में भाषाई तौर पर अक्सर लोग बिहार और उत्तर प्रदेश के नागरिकों के साथ कुछ अजूबा व्यवहार रखते हैं, जो बिल्कुल बेसिरपैर की बात लगती है और ये पोस्ट पढ़कर आप मेरी बात से सहमत होंगे।
हर किसी को इस बात से दिक्कत रहती है कि बिहार व उत्तर प्रदेश का कोई नागरिक बात करते वक्त एक खास टोन या तरीका अपनाता है, जिससे उन्हें उनकी बात समझ नहीं आती और इसीलिये वे उन्हें शुद्ध हिन्दी में बात करने की सलाह देते हैं। इसपर दो बातें हैं; पहली ये कि प्रायोगिक शुद्ध हिन्दी क्या है और दूसरी कि जो ये सलाह देते हैं, क्या वे खुद शुद्ध हिन्दी बोलते हैं?
पहली बात ज़रा ध्यान और प्रबुद्ध तरीके से समझने की है – हम बिहार और उत्तर प्रदेश वाले लोग जिस हिन्दी का प्रयोग करते हैं उसका व्याकरण व शब्द शुद्ध हिन्दी(खड़ी बोली) के सबसे निकटतम है अब आपको टोन/लहजे से दिक्कत हो तो बात दूसरी है क्योंकि टोन/लहजा बिहार या भारत का ही नहीं दुनिया की हर भाषा का अपना अलग होता है जिसका असर गैर-भाषा के प्रयोग में महसूस किया जा सकता है। उदाहरण के लिए आप अपने किसी गैर-भाषी(पंजाबी, मराठी, गुजराती, बंगाली, कश्मीरी, दक्षिण भारतीय इत्यादि) मित्र से बात करके समझ सकते हैं कि उनकी हिन्दी और शुद्ध हिन्दी में क्या फर्क है और जब आप उनसे बात करेंगे तो मेरी दूसरी बात की सत्यता मालूम होगी।

हमारी मातृभाषा का असर सिर्फ़ हिन्दी पर ही नहीं बल्कि अंग्रेजी सहित दूसरी भाषाओं के प्रयोग पर भी पड़ता है और उसी का एक रुप है कि अंग्रेजी के ब्रिटिश, अमेरिकन, सहित इंडियन संस्करण हमारे सामने मौजूद हैं। तो कुल मिलाकर मैं कहना ये चाहता हूँ कि ऐसा ना करें, भाषा के नाम पर भेदभाव ना करें, उच्चारण के नाम पर तो कभी नहीं।
हम सब एक ही जगह पर खड़े हैं बिना किसी अंतर के, विरासत में मिली नेमतें भेदभाव के लिए नहीं हैं और बाकी सारी चीजें हम यहीं कमाते हैं और छोड़ जाते हैं। एक ही ज़िन्दगी मिली है क्यों बेवजह खट्टे अनुभव इकट्ठा करना?
और जो लोग अप्रबुद्ध लोगों की बात सुन हीन भावना से ग्रस्त हो अपनी भाषा व उच्चारण पर शर्म करते हैं वे कृपया इस पोस्ट को दो बार पूरा पढ़ें, सिर्फ़ आपके लिए ही लिखी गई है।

Search Article

Your Emotions