कहानी अपने बिहार से: बचपन का साइकिल और विश्वकर्मा पूजा …
आँख मलते हुए सोनुआ सुबह उठा, उसका क्लास भी था, दुनिया की नजरों में खटारा लेकिन उसके दिल की नजर में रामप्यारी साइकिल की तरफ देखा और मन ही मन मास्टरवा पर गुस्साने लगा-
“आज विश्वकर्मा पूजा है, फिर भी सरवा छुट्टी नही दिया, अब बताओ मम्मी साइकिल का पूजा करे कि कोचिंग जाए? “
“अरे पहिले धो धा लो, बताशा-वतशा चढा के पूजा कर लो फिर जाना|”
माई का आर्डर आ गया। सोनुआ अपनी रामप्यारी को उल्टा किया, पहिले तो कपड़ा से झाड़ दिया फिर बाल्टी में पानी भर के जग से उड़ेलने लगा तभी उसके कनपट्टी पर उसके बाबू जी का एक तड़ाक- “ई पानी उझीले जा रहे हो ,और बैरिंग में पानी जाएगा तो खराब होगा तो तोहार बाप बनवाएंगे? केतना बार बोले मटिया तेल से साफ कर लिया करो|” अब बताओ एक तो बरी बरी का दिन था ,ऊपर से छुट्टी नही ,ऊपर से मेहनत कर रहा था, पूजा करने का तैयारी कर रहा था और बाबू जी का झापड़ मिल गया , मतलब अंदर ही अंदर उसका सुलग गया। अब सोनुआ थोड़ा सा पानी पटाया फिर सूखा के मटिया तेल से अपने रामप्यारी को चमका लिया।
“माई दस रोपया दो, बताशा लाना है, “सोनुआ घिघिया गया।
“जाओ, बाबू जी से मांग लो, हम का बैंक खोल के बैठे है तोहार बाप एको रूपिया हमको देता है? जे मांगने चले आते हो?”, सोनुआ की माई और बमक गई।
तभी उसके बाबू जी उसको बताशा का पैकेट ला कर दे दिए, सोनुआ नहाया, अपने साइकिल में अगरबत्ती खोस दिया बताशा चढा क के- जय विश्वकर्मा बाबा बोल के कोचिंग की तरफ़ साइकील धीरे धीरे बढ़ाने लगा और निहारने लगा कि आटा के मिल में अभी पूजा हुआ की नहीं जा के थोड़ा परसादी ठूस ले ..
हैप्पी विश्वकर्मा पूजा..