हिन्दू-मुस्लिम एकता का अद्भुत प्रतीक है जहानाबाद का काको
मैं काको, जहानाबाद हूँ। आइए आज हम जानें काको, जहानाबाद, बिहार के बारे में!
कहा जाता है कि यहाँ राजा दशरथ की पत्नी कैकयी वास ग्रहण की थीं, उन्हीं के नाम पर इस ग्राम का नाम काको पड़ा। ग्राम के उत्तर-पश्चिम में एक मन्दिर है, जिसमें सूर्य भगवान की एक बहुत पुरानी मूर्ति स्थापित है। प्रत्येक रविवार को बड़ी संख्या मे लोग पूजा करने के लिए आते हैं।
सूर्योपासना के इस विख्यात केन्द्र में प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु छठ व्रत के लिए पहुंचते हैं। बताया जाता है कि इस स्थान पर छठव्रत करने पर सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
यहां भगवान विष्णु की प्राचीन मूर्ति है। ऐसी मान्यता है कि प्राचीन काल में पनिहास के दक्षिणी पूर्वी कोने पर राजा ककोत्स का कीला था। उनकी बेटी कैकयी इसी मंदिर में प्रतिदिन पूजा अर्चना करती थी। ककोत्स की बेटी ही कालांतर में अयोध्या के राजा दशरथ की पत्नी बनीं। भगवान विष्णु की प्रतिमा आज काको सूर्य मंदिर में स्थापित है। बताया जाता है कि 88 एकड़ में फैले इस पनिहास की जब सन् 1948 में खुदाई कराई जा रही थी तो भगवान विष्णु की प्राचीन प्रतिमा मिली थी। उस प्रतिमा को प्राण प्रतिष्ठा के उपरांत पनिहास के उत्तरी कोने पर स्थापित किया गया। सन् 1950 में आपसी सहयोग के जरीए भगवान विष्णु का पंचमुखी मंदिर का निर्माण कराया गया जो आज अस्था का केन्द्र बना हुआ है। इस मंदिर के चारों कोने पर भगवान भाष्कर, बजरंग बली, शंकर-पार्वती एवं माँ दुर्गे की प्रतिमा स्थापित है। बीच में भगवान विष्णु की प्राचीनतम प्रतिमा को स्थापित किया गया है।
सूफी संतों की फेहरिस्त में बीबी कमाल का नाम भी प्रमुख लोगों में है। देश की पहली महिला सूफी संत होने का गौरव भी इन्हीं को प्राप्त है। आईने अकबरी में भी इनकी चर्चा की गयी है। इन्होंने न सिर्फ जहानाबाद बल्कि पूरे विश्व में सूफीयत की रौशनी जगमगायी है। इनका मूल नाम मकदुमा बीबी हटिया उर्फ बीबी कमाल है। दरअसल बचपन से ही उनकी करामात को देखकर उनके पिता शहाबुद्दीन पीर जराजौत रहमतूल्लाह अलैह उन्हें प्यार से बीबी कमाल के नाम से पुकारते थे यही कारण है कि वह इसी नाम से सुविख्यात हो गयीं। इनकी माता का नाम मल्लिका जहां था। बीबी कमाल के जन्म और मृत्यु के बारे में स्पष्ट पता तो नहीं चलता है लेकिन जो जानकारी सामने आयी है उसके मुताबिक 1211 ए.डी में उनका जन्म तथा लगभग 1296 एडी में इंतकाल हुआ था।
बीबी कमाल में काफी दैवीय शक्ति थी। कहा जाता है कि एक बार जब बीबी कमाल काको आयी तो यहां के शासकों ने उन्हें खाने पर आमंत्रित किया। खाने में उन्हें चूहे और बिल्ली का मांस परोसा गया। बीबी कमाल अपने दैवीय शक्ति से यह जान गयी कि प्याले में जो मांस है वह किस चीज़ का है। फिर उन्होंने उसी शक्ति से चूहे और बिल्ली को निंदा कर दी। बीबी कमाल एक महान विदुषी तथा सूफी संत थीं। नैतिक सिद्धांत, उपदेश, प्रगतिशील विचारधारा, आडम्बर एवं संकीर्णता विरोधी मत, खानकाह एवं संगीत के माध्यम से जन समुदाय तथा इंसानियत की खिदमत के लिए प्रतिबद्ध एवं समर्पित थीं। काको स्थित बीबी कमाल के मजार से 14 कोस दूर बिहारशरीफ में उनकी मौसी मखदुम शर्फुद्दीन यहिया मनेरी का मजार है। ठीक इतनी ही दूरी पर कच्ची दरगाह पटना में उनके पिता शहाबुद्दीन पीर जगजौत रहमतुल्लाह अलैह का मजार है।
क्या-क्या है बीबी कमाल के मजार के परिसर में-
1. बीबी कमाल का मजार- महान सूफी संत बीबी कमाल का मजार मुख्य दरवाजा के अंदर परिसर में अवस्थित है। रुहानी इलाज के लिए प्रसिद्ध मन्नत मानने तथा इबादत करने वाले लोग इनके मजार को चादर एवं फूलों की लरीयों से नवाजते हैं। यहां उर्स के मौके पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
2. कड़ाह- जनानखाना से दरगाह शरीफ के अंदर जाने के साथ एक काले रंग का पत्थर लगा हुआ है, जिसे कड़ाह कहा जाता है। यहां आसेब जदा और मानसिक रुप से विक्षिप्त लोग पर जूनूनी कैफियततारी होती है। इस पत्थर पर दो भाषा उत्कीर्ण हैं जिसमें एक अरबी है, जो हदीस शरीफ का टुकड़ा है और दूसरा फारसा का शेर। इसी पर महमूद बिन मो. शाह का नाम खुदा है, जो फिरोजशाह तुगलक का पोता था।
3. रोगनी पत्थर- दरगाह के अंदर वाले दरवाजे से सटा एक छोटा सा सफेद और काला पत्थर मौजूद है। लोगों का कहना है कि इस पत्थर पर उंगली से घिसकर आँख पर लगाने से आँख की रोशनी बढ़ जाती है। आम लोग इसे ‘नयन कटोरी’ के नाम से जानते हैं।
4. सेहत कुआं- दरगाह के ठीक सामने, सड़क के दूसरे तरफ कुआं है, इसके पानी के उपयोग से लोगों के स्वस्थ होने का किस्सा मशहूर है। बताया जाता है कि फिरोजशाह तुगलक, जो कुष्ट से ग्रसित था, ने इस पानी का उपयोग किया और रोग मुक्त हो गया।
5. वका नगर- दरगाह से कुछ दूरी पर अवस्थित वकानगर में हजरत सुलेमान लंगर जमीं का मकबरा है, जो हजरत बीबी कमाल के शौहर थे।
यह ऐतिहासिक धरती मगध की विरासतों में एक सांप्रदायिक सद्भावना की भी मिसाल रही है। कहा जाता है कि अफगानिस्तान के कातगर निवासी हजरत सैयद काजी शहाबुद्दीन पीर जगजोत की पुत्री तथा सुलेमान लंगर रहम तुल्लाह की पत्नी थी बीबी कमाल। सन 1174 में बीबी कमाल अपनी पुत्री दौलती बीबी के साथ काको पहुंची थी। दिव्य शक्ति और चमत्कारी करिश्मे से लोगों को हैरान कर देनेवाली बीबी कमाल की ख्याति चंद दिनों में ही दूर-दूर तक फैल गयी। बीबी कमाल बिहारशरीफ के हजरत मखदुम शर्फुद्दीन बिहारी याहिया की काकी थी।
सूफी संतों के संरक्षण में तंत्र विद्या की प्रचारक भी बीबी कमाल ताउम्र बनी रही। राजा का आश्रय मिलने के बाद वो सूफी धर्म कबूल कर प्रचार करने लगी। फिरोजशाह तुगलक जैसे बादशाह ने भी बीबी कमाल को महान साध्वी के तौर पर अलंकृत किया था। कमाल बीबी तंत्र मंत्र विद्या में भी निपुण थी। मानवता की सेवा करना ही मानव धर्म समझती थीं। 13वीं सदी में काको स्थित पनिहास के किनारे इस दिव्य आत्मा ने अपना शरीर त्याग दिया, मगर उनके प्रभाव का प्रकाश पुंज आज भी देश-दुनिया में फैला है। बीबी के मजार पर शेरशाह, जहानआरा आदि मुगल शासकों समेत कई शख्सियतों ने भी उस जमाने में चादरपोशी कर सलामती की दुआएं मांगी थीं।
आज सांप्रदायिक सद्भावना का केंद्र बन चुका यह मजार अपने आप में वाकई अनूठा है। 710 हिजरी के आसपास दिल्ली के मुगल बादशाह फिरोजाशाह तुगलक ने बिहारशरीफ जाने के क्रम में मजार में विश्राम कर चर्मरोग से छुटकारा पाया था।
काको में हिन्दुओं की आस्था का बड़ा केंद्र काको सूर्य मंदिर और हजरत बीबी कमाल साहिबा का मकबरा ऐतिहासिक हैं और हमारी गंगा-जमुनी तहज़ीब की मिसाल बनकर साथ खड़े रहे हैं। जीवन में कितनी भी कड़वाहट क्यों न हो काको वालों की जुबान पर इसका असर कभी नहीं दिखेगा।