जिस सिद्धांत को बिहार 1954 में छोड रहा था, उसी वक्त नीदरलैंड उस सिद्धांत को अपना रहा था
” मैं जब भी नीदरलैंड के ऊपर से गुज़रता हूं, एक अजीब सा दृश्य नजर आता है। नहर ही नहर। शहरों और गाँवों के बीच बिल्कुल ‘क्रिस-क्रॉस’ रेखाएँ जल से भरी हुई। मैं स्पेन भी घूमा, इटली भी देखा, पर इतनी सुनियोजित संरचना कहीं नहीं दिखी। आखिर क्यों?
नीदरलैंड विश्व के सबसे अधिक बाढ़ के रिस्क वाले देशों में से एक है। आधा नीदरलैंड कभी भी बाढ़ में डूब सकता है, जबकि यह देश बहुत ही सघन देश है। यूरोप के सबसे भीड़-भाड़ इलाकों वाले देशों में एक। इतना ही नहीं, यह कृषि-प्रधान देश है। अमरीका के बाद सबसे अधिक कृषि निर्यात नीदरलैंड से ही होता है। अब सोचिए।अगर बाढ़ आया तो नीदरलैंड ठप्प पड़ जाएगा। सब खत्म हो जाएगा। पर बाढ़ यहाँ कभी आता ही नहीं। 1953 की विकराल बाढ़ के बाद से ही बंद है।
“हम जल से लड़ते नहीं, हम जल से प्रेम करते हैं, उसे जगह देते हैं।”
यह वाक्य बहुत ही कॉमन डच वाक्य है।
‘रूम फॉर वाटर’। यही नाम है नीदरलैंड के बाढ़ नियंत्रण स्ट्रैटेजी का। पहले तो हर नदी के किनारे पक्की ढलान बनाई जाती है तट पर। इसे ‘डाइक्स’ कहते हैं। यह बाढ़ के पानी को पर्याप्त जगह देता है। नहरों का अजीबोगरीब जाल। जितनी सड़कें, उतनी नहरें। यानी मनुष्य जितना जीएगा, उतना ही पानी भी। जल के लिए पर्याप्त ‘रूम’ होगा। नदी के तटों से दूर-दूर तक बस्तियाँ खाली करा दी गयी। वहाँ लोग नहीं रहेंगें, बाढ़ का पानी रहेगा। हर साल। नदी चौड़ी होती जाएगी, जल का स्तर घटता जाएगा।
बिहार के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों जैसे कुशेश्वर में मुझे स्मरण है कि कोसी के किनारे काफी बड़ा खाली क्षेत्र होता है, जिसे ‘बाध’ कहते हैं। वहाँ कोई बसता नहीं। वही इलाका बाढ़ के समय जलमग्न हो जाता है। कोसी में ‘डाइक्स’ भी दशकों से हैं, पर सरकार कहती रही है डाइक्स को चूहे खा जाते हैं। जमालपुर का डाइक्स चूहा सच में खा गया था। तार्किक कारण विशेषज्ञ बेहतर बताएँगें।
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रूम फॉर वाटर
जहाँ लोग जल का जगह अतिक्रमण कर लेते हैं, तट पर बसने लगते हैं, वहाँ जल और मनुष्य में युद्ध होता है। मनुष्य अक्सर हार जाता है। नीदरलैंड से कुछ सीख ले सकते हैं। आप कहेंगें, बिहार नीदरलैंड नहीं है, एक बार उन्हें कोसी घुमा दीजिए।
हमें बाढ़ से लड़ना नहीं है। बाढ़ के साथ जीना है। जल को जगह देना है। अपने लिए शहर बसा रहे हैं, तो जल के लिए भी ‘रूम’ बनाइए।
लेखक: प्रवीण झा (लेखक पेशे से डॉक्टर हैं)
लेख संपादक: कुमुद सिंह