पीएम मोदी और नेपाली पीएम के साथ बैठकर बाढ़ के समस्या का हल निकालेंगे नीतीश

बिहार का काफी क्षेत्र हर साल नेपाल से आने वाली नदियों की बाढ़ से तबाह हो जाता है| इन नदियों की बाढ़ से हर साल हजारों लोग बेघर होते हैं| गरीबी की मार के साथ-साथ ताउम्र अपनों के खोने की त्रासदी झेलते रहते हैं| हर साल की तरह इस बार भी बिहार का बहुत बड़ा हिसा बाढ़ के पानी में डूबा हुआ है| हर साल की तरह इस बार भी हजारों-लाखों लोग बेघर हो चुकें है, भूखें तरप रहें हैं और यहाँ तक कि सैकरों लोगों की जान भी जा चुकी है|
जानकारों का कहना है कि बिहार में ऐसी बाढ़ पिछले पचास वर्षों में नहीं आई थी। बिहार के 14 जिले खासकर, अरहरिया, सुपौल, किशनजंग, कटिहार, पूर्णिया, पूर्वी तथा पश्चिमी चंपारण, दरभंगा और सीतामढ़ी जिले बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हैं। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार उत्तर और पूर्वी बिहार के एक करोड़ लोग इस विनाशकारी बाढ़ से प्रभावित हैं।

2008 में जब कोसी का ‘कुसहा’ बांध टूटा था तब लगता था कि लोगों ने भयावह बाढ़ से उत्पन्न होने वाली विपदा से सीख ले ली है। उस समय ऐसा कहा जाता था कि बिहार सरकार और केंद्र सरकार मिलकर नेपाल सरकार से आग्रह करेंगी कि उन नदियों पर बांध बनाया जाए जो नदियां नेपाल से निकलती हैं। परन्तु लाख प्रयासों के बावजूद भी ऐसा संभव नहीं हो सका।

नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा 26 अगस्त को बिहार आ रहें हैं और आपको बता दें कि अपने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी 26 अगस्त को बिहार के दौरे पर रहेंगे और बाढ़ प्रभावित इलाकों का हवाई दौरा करेंगे|
कहा जा रहा है कि 26 अगस्त को प्रधानमंत्री मोदी के साथ नेपाली प्रधानमंत्री देउबा भी बिहार के दौरे पर होंगे| उनसे बाढ़ की विभीषिका ने निपटने के स्थायी समाधान पर चर्चा होगी|
जदयू के महासचिव के सी त्यागी ने कहा कि देश के पीएम, नेपाली पीएम और सीएम नीतीश के बीच बाढ़ को लेकर परमानेंट मैकेनिजम बनाने पर जोर दिया जाएगा| बांध और तटबंध बनाकर बिहार में बाढ़ की विभीषिका को रोका जा सकता है|

नेपाल से निकलनें वालें नदियों पर बाँध बनाने का मुद्दा आज का नहीं है बल्कि यह मुद्दा दशकों पुराना है| यह सरकारों की नाकामी कहें या राजनितिक इच्छाशक्ति का न होना की अभी तक इस समस्या का हल नहीं निकल पाया है और इसका खामियाजा हर साल बिहार के गरीब जनता को झेलना परता है|

 

क्यों नहीं बन पा रहा है बांध

एक बार कुछ वर्ष पहले जब नेपाल में मित्रवत सरकार थी तब करीब-करीब इस बात पर सहमति हो गई थी कि नेपाल से निकलने वाली नदियों पर नेपाल के क्षेत्र में ही बांध और बराज बनाए जाएंगे और उससे प्राप्त होने वाली बिजली से नेपाल व बिहार दोनों को लाभ पहुंचेगा। भारत का कहना था कि उसने भूटान की नदियों को भी बांधा है, वहां बराज बनाए हैं और बड़े बड़े बिजली घर बनाए हैं। वहां बहुत अधिक बिजली का उत्पादन होता है, जिसमें से 90 प्रतिशत बिजली भारत सरकार खरीद लेती है। परन्तु उसका भुगतान भारतीय मुद्रा में किया जाता है। तत्कालीन भारत सरकार ने कहा था कि वह यही व्यवस्था नेपाल में करना चाहती है। वहां जो बिजली पैदा होगी उसका 80 प्रतिशत भाग भारत खरीद लेगा। मगर इसका भुगतान भूटान की तरह नेपाल को भारतीय मुद्रा में किया जाएगा। नेपाल की सरकार इस बात के लिए तैयार नहीं हुई। वह भुगतान ‘डॉलर’ में चाहती थी। उसका कहना था कि वह बेशुमार भारतीय मुद्रा को लेकर क्या करेगी? दोनों सरकारें अपनी जिद पर अड़ी रहीं और अंतत: इस योजना का कार्यान्वयन नहीं हो सका।

 

जिन लोगों ने उत्तर बिहार की बाढ़ की विभिषिका को आंखों से नहीं देखा है वे इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं कि बाढ़ के आने पर लाखों लोग किस तरह देखते ही देखते संपन्नता से गिरकर दरिद्र हो जाते हैं। लोग मेहनत-मजदूरी करने के लिए दिल्ली, हरियाणा और पंजाब आते हैं। सालभर की कमाई करके घर इस उम्मीद में लौटते हैं कि वे अपनी बहन-बेटियों का विवाह करेंगे। वे शादी का सामान लेकर और मेहनत की कमाई लेकर घर लौटते हैं। अचानक ही नेपाल से आने वाली नदियों में बाढ़ आ जाती है और देखते ही देखते सब कुछ बहकर समाप्त हो जाता है। दुखी और निराश होकर ये गरीब और मध्यम वर्ग के लोग फिर से मजदूर बनकर पंजाब और हरियाणा मजदूरी करने के लिए लौट जाते हैं यह सोचते हुए कि अब उनकी बेटी बहनों का विवाह कैसे होगा? जिन लोगों ने उत्तर बिहार की बाढ़ की विभिषिका को नहीं देखा है वे इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।

उम्मीद है कि इस बार नेपाली प्रधानमंत्री के साथ बैठ के देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस बार इस समस्या का हल जरुर निकालेंगें और बिहार का भला करेंगे|

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