बिहार में महागठबंधन टूटने का शोर हो ही रहा था और जदयू और बीजेपी एक साथ लालू प्रसाद यादव को भष्ट्राचार के मुद्दे पे घेर रही थी कि अचानक भागलपुर में सृजन घोटाला लोगो के सामने आ गया और पाशा पलट गया और नीतीश सरकार सवालों के घेरे में आ गयी|
पहले तो राज्य सरकार ने जल्दबाज़ी में घोटाले की जांच करने के लिए एसआईटी गठित कर मामले की जांच करने के लिए भागलपुर रवाना किया मगर घोटाले का आकार बढ़ने और विपक्षियों के दवाब के बाद मुख्यमंत्री ने सीबीआई जांच का आदेश दिया| अभी तक 9 एफआईआर और 12 अरेस्ट लेटर जारी हो चुका है|
क्या है सृजन घोटाला ?
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक एक एनजीओ ने पिछले 10 सालों में मिलीभगत से बिहार सरकार को तकरीबन 700 करोड़ का चूना लगाया है। एनजीओ के इस घोटाले का खुलासा पुलिस रिकॉर्ड, बैंक स्टेटमेंट और अधिकारियों से बातचीत के बाद हुआ। भागलपुर के इस एनजीओ का नाम सृजन महिला विकास सहयोग समिति लिमिटेड है जो महिलाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण देने और अचार बेचने का काम करती है।
सृजन एनजीओ पर आरोप है कि उसने तकरीबन आधा दर्जन वेलफेयर स्कीम के नाम पर भागलपुर जिला प्रसाशन के अलग-अलग अकाउंट्स से करोड़ों रुपए का गबन किया। एनजीओ के इस घोटाले में सरकारी अधिकारियों, बैंक के कर्मचारियों और सृजन के स्टाफ ने सहयोग किया।
कैसे हुआ घोटाले का खुलासा ?
अगस्त के पहले हफ़्ते में भागलपुर के ज़िलाधिकारी आदेश तितरमारे के हस्ताक्षर वाला एक चेक बैंक ने यह कहकर वापस कर दिया कि पर्याप्त पैसे नहीं हैं| यह चेक एक सरकारी ख़ाते का था| भागलपुर ज़िलाधिकारी के लिए यह हैरान करने वाली बात थी क्योंकि उनको जानकारी थी कि सरकारी ख़ाते में पर्याप्त पैसे हैं| इसके बाद उन्होंने जांच के लिए एक कमेटी बनाई|
कमेटी की जांच में यह बात सही पाई गई कि इंडियन बैंक और बैंक ऑफ़ बड़ौदा स्थित सरकारी ख़ातों में पैसे नहीं हैं| इसके बाद उन्होंने इसकी जानकारी राज्य सरकार को दी| इस तरह से जिस घोटाले की परतें खुलनी शुरु हुईं, वह आज ‘सृजन घोटाले’ के नाम से ज़बरदस्त चर्चा में है| इस घोटाले का नाम ‘सृजन घोटाला’ इस कारण पड़ा क्योंकि कई सरकारी विभागों की रकम सीधे विभागीय ख़ातों में न जाकर या वहां से निकालकर ‘सृजन महिला विकास सहयोग समिति’ नाम के एनजीओ के छह ख़ातों में ट्रांसफ़र कर दी जाती थी | और, फिर इस एनजीओ के कर्ता-धर्ता जिला प्रशासन और बैंक अधिकारियों की मिलीभगत से सरकारी पैसे की हेरा-फेरी करते थे|
जांच टीम को समझने में लग गए कि सरकारी ख़ाते का पैसा एक एनजीओ के ख़ाते में कैसे गया?
मामला सामने आने के बाद नौ अगस्त को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आदेश पर बिहार पुलिस के आर्थिक अपराध इकाई का विशेष जांच दल भागलपुर पहुंचा| इसका नेतृत्व आईजी रैंक के पुलिस अफ़सर जे.एस. गंगवार कर रहे हैं| इस टीम को तीन दिन तो यह समझने में लग गए कि सरकारी ख़ाते का पैसा एक एनजीओ के ख़ाते में कैसे गया|
अनोखा तरीका
इस घोटाले को अंजाम देने का ढंग अपने आप में अनोखा है| पुलिस मुख्यालय में अपर पुलिस महानिदेशक एस.के. सिंहल बताते हैं, ‘फर्ज़ी सॉफ़्टवेयर बनाकर पासबुक को अपडेट किया जाता था| उसी सॉफ़्टवेयर से बैंक स्टेटमेंट निकाला जाता था|
यह फ़र्ज़ी स्टेटमेंट बिल्कुल वैसा ही होता था, जैसा किसी सरकारी विभाग के इस्तेमाल और खर्च का होता है| दिलचस्प बात यह है कि घोटाले से जुड़े लोग इसी फ़र्ज़ी सॉफ़्टवेयर के ज़रिए इस राशि का ऑडिट भी करवा देते थे|’ सिंघल आगे बताते हैं कि घोटालेबाज़ों ने एक बात यह सुनिश्चित कर रखी थी कि किसी लाभार्थी को अगर कोई सरकारी चेक दिया जा रहा है तो उस चेक का भुगतान ज़रूर हो जाए|
वरिष्ठ पत्रकार रमाशंकर मिश्र इस घोटाले के सामने आने के बाद इस पर करीबी नज़र रख रहे हैं. वह बताते हैं,
“यह अपने आप में एक नई तरह का घोटाला है| सरकारी राशि का गबन करना अलग बात है| लेकिन संगठित तरीके से सरकारी रकम एक एनजीओ के ख़ाते में भेजी गई और फिर इस पैसे का इस्तेमाल व्यक्तिगत लाभ के लिए किया गया|”
नोटबंदी ने खोल दी घोटाले की पोल
बीते साल नवंबर में हुई नोटबंदी से हालात इतने बदल गए थे कि सृजन के करोड़ों रुपये जहां के तहां फंस गए| जिससे पैसा सृजन सरकारी खातों में फिर जमा हो सकें| वहीं सृजन की कर्ताधर्ता रहीं मनोरमा देवी की फरवरी में हुई मौत के बाद कई लेनदारों ने पैसा देने से ही इनकार कर दिया|
9 एफआईआर और 12 गिरफ्तारियां
इन दिनों सुर्खियों में छाए इस सृजन घोटाले में अबतक 9 एफआईआर और 12 गिरफ्तारियां हो चुकी हैं| रविवार को कहलगांव के को-ऑपरेटिव बैंक के मैनेजर सुनीता कुमार और नौगछिया के मैनेजर अशोक को एस आईटी ने गिरफ्तार किया है अभी और कई गिरफ्तारियां होनी है| एक आरोपी नाजिर महेश मंडल की मौत हो गई| जांच सीबीआई को सौंप दी गई है|