देश के धरोहर और बिहार के गौरव थे शहनाई के जादूगर उस्ताद बिस्मिल्लाह खान
भारत रत्न और शहनाई के जादूगर बिस्मिल्लाह खान देश की धरोहर और बिहार का गौरव थे। बिस्मिल्लाह खान बिहार के लाल है और उनका जन्मदिन बिहार में राजकीय समारोह के तोड़ पर मनाया जाता है । उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ां से जुड़़े हम आपको ऐसे राज बताएंगे जिससे आप अभी तक अनजान थे.
बिस्मिल्ला खां का जन्म बिहारी मुस्लिम परिवार में पैगम्बर खाँ और मिट्ठन बाई के यहाँ बिहार के डुमराँव की भिरंग राउत की गली नामक मोहल्ले में हुआ था। उनके बचपन का नाम क़मरुद्दीन था।
सन् 2001 में उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। वह तीसरे भारतीय संगीतकार थे जिन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया है।
उनके उस्ताद चाचा ‘विलायती’ विश्वनाथ मन्दिर में स्थायी रूप से शहनाई-वादन का काम करते थे। बिस्मिल्ला को लेकर सबसे रोचक बात यह है कि मुस्लिम होने के बावजूद बिस्मिल्ला खां काशी विश्वनाथ मंदिर में जाकर शहनाई बजाया करते थे। बिस्मिल्ला खां देश के चुनिंदा कलाकारों में से एक हैं जिन्हें आजदी के मौके पर साल 1947 में लाल किले में शहनाई बजाने का मौका मिला था।
उनके दादा रसूल बख्श ने उनका नाम बिस्मिल्लाह रखा था जिसका मतलब होता है “अच्छी शुरुआत! या श्रीगणेश”।
बिस्मिल्ला खां ने फिल्मों में अपनी शहनाई का संगीत दिया है जिसमें राजकुमार, गूंज उठी शहनाई जैसी फिल्में शामिल हैं।उन्होंने कन्नड़ फ़िल्म ‘सन्नादी अपन्ना’, हिंदी फ़िल्म ‘गूंज उठी शहनाई’और सत्यजीत रे की फ़िल्म ‘जलसाघर’ के लिए शहनाई की धुनें छेड़ी। आखिरी बार उन्होंने आशुतोष गोवारिकर की हिन्दी फ़िल्म‘स्वदेश’ के गीत‘ये जो देश है तेरा’में शहनाई की मधुर तान बिखेरी।
उस्ताद ने कई जाने-माने संगीतकारों के साथ जुगलबंदी कर पूरी दुनिया को चौंका दिया। उस्ताद ने अपनी शहनाई के स्वर विलायत ख़ां के सितार और पण्डित वी. जी. जोग के वायलिन के साथ जोड़ दिए और संगीत के इतिहास में स्वरों का नया इतिहास रच दिया। ख़ां साहब की शहनाई जुगलबंदी के एल. पी. रिकॉड्स ने बिक्री के सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले। बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि उस्ताद के इन्हीं जुगलबंदी के एलबम्स के आने के बाद जुगलबंदियों का दौर चला।
उस्ताद बिस्मिल्लाह खान जब अपने मामा के घर दरभंगा आए थे तो वो न तो उस्ताद थे और न उनकी शहनाई के सुर पक्के थे। महज दस साल की उम्र मे दरभंगा आए बिस्मिल्लाह के पक्के थे तो केवल इरादे। दरभंगा की माटी ने उन्हें संवरने का मौका दिया और वो उस्ताद बन गए। अपनी पहली नैकरी भी उन्होंने दरभंगा में ही की। उस्ताद साहेब की आखरी इच्छा दरभंगा के तालाब में नहाने की पूरी तो न हो सकी, लेकिन दरभंगा उस दिन रोया था जिस दिन पता चला कि अल्लाह के प्यारे हो गए बिस्मिल्लाह।
21 अगस्त 2006 को बिस्मिल्ला खां ने दुनिया को अलविदा कह दिया, वो चार साल से कार्डियेक रोग से परेशान थे। भारत सरकार ने उनके निधन को राष्ट्रीय शोक घोषित किया था और उन्हें 21 तोपों की सलामी दी गई थी।