विकलांग होते हुए भी बिहार के इस लाल ने आईआईटी प्रवेश परिक्षा में लहराया परचम
अक्सर दिव्यन्गता (विकलांगता) को बेबसी और लाचारी का पर्याय माना जाता है. समाज में दिव्यांग जनों को दया के भाव से देखा जाता है. लेकिन महान खगोल वैज्ञानिक स्टीफन हाकिंग को अपना आदर्श मानने वाले शंकर सिंह ने इन सारी मान्यताओ और वर्जनाओ को दरकिनार करते हुये एक ऐसा आदर्श स्थापित किया है जो न केवल अन्य दिव्यांगो को प्रेरित करती है बल्कि सामान्य लोगो के लिये भी प्रेरणा स्रोत है. पोलिओ के कारण ९० प्रतिशत शारीरिक क्षमता खो देने वाले शंकर ने अपनी बौद्धिक क्षमता से वो सभी कार्य किये है और कर रहे है जो उनकी उम्र के सामान्य लड़के सोच भी नहीं सकते.
हालाँकि उम्र के इस छोटे से पड़ाव में शंकर को कई भेद भाव और असफलताए भी देखने को मिली लेकिन इन सबसे प्रभावित हुये बिना वो निरंतर प्रयास कर रह रहे है. शंकर ने प्रतिष्ठित नवोदय विद्यालय की परीक्षा उत्तीर्ण की थी लेकिन सरकारी नियमो के कारण उन्हें विद्यालय में प्रवेश नहीं मिला. इससे बिना प्रभावित हुए शंकर ने गाँव के ही सरकारी विद्यालय में अध्ययन जारी रखा . अपनी कुशाग्र बुद्धि से इन्होने राष्ट्रीय स्तर के नेशनल साइंस टैलेंट सर्च एग्जाम- 2008 और नेशनल टैलेंट सर्च एग्जाम- 2008 उत्तीर्ण किया एवं साथ ही साथ 2010 में शंकर को अजब-दयाल सिंह शिक्षा सम्मान भी दिया गया.
सन 2013 में शंकर ने देश की सबसे कठिन परीक्षाओ में से एक आई आई टी- संयुक्त प्रवेश परीक्षा 176वी रैंक से उत्तीर्ण किया. शंकर के इस प्रयास में पटना स्थित कन्हैया सिंह के विज़न क्लासेज और साहिल स्टडी सेंटर ने खूब मदद की. इतने अच्छे रैंक लाने के बावजूद बोर्ड परीक्षा में मात्र 2 अंको की कमी के कारण शंकर का दाखिला नहीं हो पाया. लेकिन शंकर ने हार नहीं मानी. शंकर ने स्नातक पाठ्यक्रम (विज्ञान) में दाखिला लेकर अपने आदर्श स्टीफन हाकिंग की तरह अपने लक्ष्य पर अग्रसर है। अपने पढाई के इतर शंकर सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक और जन कल्याण के कार्यो में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते है. अपने और अन्य गाँव के लडको की अच्छी शिक्षा के लिये शंकर ने अपने घर में कंप्यूटर युक्त पुस्तकालय की स्थापना भी की थी. गाँव के प्रतिभाशाली और गरीब बच्चे जो शहरों में महँगी शिक्षा नहीं प्राप्त कर सकते है, उन्हें शंकर अपने देख रेख में विभीन्न प्रतियोगी परीक्षाओ के लिये तैयारी कराते है. शंकर के छात्र NTSE और Olympiads जैसी परीक्षाओ में बाजी मार चुके है.
इसके अलावा शंकर नियमित रूप से सामान्य ज्ञान और IIT-JEE की तैयारी के लिये MIG-20 परीक्षाओ का आयोजन करते है. प्रतियोगी परीक्षाओ की तयारी कैसे हो इसके लिये शंकर नियमित रूप से प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में लेख भी लिखते है .
अभी पिछले वर्ष भोजपुर जिले में आयी भयावह बाढ़ में शंकर ने अपनी संस्था पुरुषार्थ ट्रस्ट और अन्य संस्थाओ केसाथ मिलकर कई गाँव में भोजन और दवा वितरण का कार्य भी किया था. शंकर बडहरा प्रखंड के गाँव में आर्सेनिक युक्त भूमिगत जल के प्रति लोगो और प्रशासन को जागरूक करने का प्रयास भी करते रहे है. इन सामाजिक कार्यो के अतिरिक्त अप्रत्यक्ष राजनितिक गतिविधियों में भी सक्रिय है. शंकर का एक मुहिम राजनीति को समाज कल्याणकारी भावना, शुचिता और गुणवत्ता से युक्त बनाने को लेकर भी है. शंकर का मानना है कि देश की दश और दिशा राजनीति ही तय करती है. इसलिए अगर देश की दशा और दिशा सुधारनी है तो सबसे पहले राजनीति और जनता के प्रतिनिधियों की दशा और दिशा सुधारनी होगी.
अपने इस मुहिम के अंतर्गत शंकर ने बिहार विधानसभा -2015 के चुनाव के दौरान एक सराहनीय प्रयास किया. बडहरा विधानसभा के उम्मीदवारों को इन्होने एक मंच पर लाकर जनता के सामने उनसे क्षेत्र के विकास सम्बन्धी विषय पर चर्चा करायी और जनता के सवालों से रूबरू कराया. बिहार पंचायत चुनाव के संपन्न होने के बाद विजयी मुखिया और प्रखंड प्रमुख को शंकर ने सम्मानित करके इनसे बिना भेद भाव और राम राज्य को आदर्श मानते हुये कार्य करने की शपथ दिलवाई. शंकर एक RTI एक्टिविस्ट के रूप में भी सक्रिय है. इन्होने RTI के माध्यम से अपने गाँव के मध्य विद्यालय में चल रहे मध्याह्न भोजन योजना में भ्रष्टाचार को उजागर किया था. प्रभु श्री राम को अपना आदर्श मानने वाले शंकर राम नवमी शोभा यात्रा का आयोजन भी करते है जिसमे क्षेत्र के लोग बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते है. शंकर की प्रतिभा से प्रभावित होकर बिहार पुलिस के सिंघम कहे जाने वाले पटना के निवर्तमान SP शिवदास लांडे ने शंकर को स्वयम सम्मानित किया था. शंकर अपनी संघर्ष के प्रेरणा के रूप में स्टीफन हाकिंग के साथ साथ देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारतीय टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को भी आदर्श मानते है. शंकर के अनुसार नरेन्द्र मोदी और महेंद्र सिंह धोनी सामान्य पृष्ठभूमि से होते हुये जिस तरह की सफ़लता अर्जित की है वो उन्हें हमेशा उर्जा देती है कि वो आगे चलकर कुछ ऐसा ही काम करे ।जिससे देश का नाम रौशन कर सके.
२२ वर्ष की उम्र में शंकर ने शारीरिक अक्षमता को दरकिनार करते हुये एक शिक्षाविद, सामजिक कार्यकर्ता, प्रशासनिक और राजनैतिक सुधारक के रूप में जो यात्रा शुरू की है उम्मीद है कि वो वास्तव में काबिल-ए-तारीफ़ है और आशा की जाती है कि समाज और देश के लिये उपयोगी साबित होगी. शंकर के इस प्रयास में जिन 2 लोगो का अमूल्य योगदान है उनका परिचय देना भी नितांत आवश्यक है. शंकर के,मार्गदर्शक एवं भाई -डॉ.गिरीश कुमार सिंह, बड़े भाई रंजीत सिंह और उनके भांजा- सौरभ सिंह ने सेवा का जो आदर्श प्रस्तुत किया है वो आज बहुत कम ही दिखता है. इन तीनो लोगो ने शंकर के संघर्ष में कई त्याग किये है जिनके कारण शंकर को सफलता मिली है।