जयंती विशेष: ओबीसी आरक्षण के जनक और पिछड़ों के मसीहा थें बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बीपी मंडल
देश में वर्षों से शोषित, गरीब और दबे-कुचले दलित और पिछड़ों वर्गों के लिए आरक्षण किसी वरदान से कम नहीं है। समाज के इन पिछड़े वर्गों को सामाजिक , वित्तीय और शैक्षणिक स्तर पर प्रोत्साहित कर मुख्यधारा से जोड़ने के मकसद से इन वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई थी। चूकी देश की बहुसंख्यक आबादी पिछड़ा है इसलिए आज आरक्षण एक राजनीति मुद्दा भी है । कुछ ही दिन पहले केंद्र में वर्तमान मोदी सरकार ने संसद में पिछड़ा आयोग को संवैधानिक मान्यता दिलाने की बात कही है तो हाल ही के चुनावों में आरक्षण एक प्रमुख मुद्दा रहा है ।
आज बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और पिछड़ा वर्ग आयोग के पहले अध्यक्ष स्व. बी पी मंडल का 99वीं जयंती है। बीपी मंडल ओबीसी आरक्षण के जनक है । इसलिए अगर भीमराव अम्बेडकर को दलितों का मसीहा कहा जाता है तो बीपी मंडल को पिछड़ों का मसीहा कहा जाता है ।
बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल यानी बी. पी. मंडल को ईमानदारी ,निर्भिकता और स्वाभिमान से सुसज्जित व्यक्तित्व के रुप में जाना जाता है । सामाजिक परिवर्तन की धारा को निर्णायक मोड़ देनेवाले महापुरुषों में मंडल आयोग के जनक बी. पी. मंडल का नाम अग्रगण्य है|जिले के मुरहो निवासी व स्वतंत्रता सेनानी रास बिहारी लाल मंडल के पुत्र बीपी मंडल ने सामाजिक न्याय के लिए काम किया। 47 दिनों तक बिहार के मुख्यमंत्री रहकर जिस तरह से उन्होंने शासन और प्रशासन के सफल संचालन में अपनी भूमिका निभाई, वह इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षर में दर्ज है। स्व. बीपी मंडल का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी में 25 अगस्त 1918 को उस समय हुआ था जब उनके पिता जिन्दगी और मौत से जूझ रहे थे। उनके जन्म के बाद ही 26 अगस्त 1918 को उनके पिता का निधन हो गया। बीपी मंडल की प्राथमिक शिक्षक उनके गांव मुरहो स्थित कमलेश्वरी मध्य विद्यालय में हुई तथा उन्होंने सिरीज इंस्टीच्यूट मधेपुरा (शिवनंदन प्रसाद मंडल विद्यालय, मधेपुरा) से ग्रहण किया। इसके बाद दरभंगा, भागलपुर और पटना से उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की। इसी बीच उनकी शादी समस्तीपुर जिले के आधारपुर निवासी सीतावती देवी से हुई। उनके भाई कमलेश्वरी प्रसाद मंडल भागलपुर के एमएलसी थे। उनके निधन के बाद वह भागलपुर से जिला परिषद सदस्य बनकर राजनीतिक जीवन में प्रवेश किए और इसके बाद सांसद, विधायक तथा मुख्यमंत्री बन कर समाज की सेवा की।
मंडल आयोग की रिपोर्ट के बाद मसीहा बन गए
1977 में हुई लोक सभा चुनाव के बाद मोरारजी देसाई भारत के प्रधानमंत्री बने। उन्होंने पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन कर बीपी मंडल को उसका अध्यक्ष मनोनित किए। देश में ओबीसी की स्थिति के आंकलन के लिए बनाए गए मंडल आयोग के अध्यक्ष के रूप में मंडल ओबीसी के मसीहा के रूप में सामने आए। 1978 में आयोग के अध्यक्ष रूप में 31 दिसम्बर 1980 को इसके प्रस्तावों को राष्ट्र के समक्ष उन्होंने पेश किया। यद्यपि मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने में एक दशक का समय लग गया पर इसकी सिफारिशों ने देश के समाजिक व राजनैतिक वातावरण में काफी दूरगामी परिवर्तन किए। कहना गलत न होगा कि मंडल कमीशन ने देश की भावी राजनीति के समीकरणों की नींव रख दी। राष्ट्र के प्रति बी0पी0 मंडल के अप्रतिम योगदान पर 1 जून 2001 को उन पर डाक टिकट जारी किया गया।
” गांव में रहने वाला लल्लू नाम का लड़का अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा हासिल नहीं कर पाता है, उसके घर में अगर टीवी न हो और उसे वे सारे अवसर उपलब्ध न हों जो शहर में रहने वाले मोहन के पास हैं, तो क्या होगा? लल्लू अगर मोहन से मेधावी हुआ भी, तब भी वह अंग्रेजी में उससे तेज नहीं होगा, सामाजिक संपर्कों के मामले में भी उसका आत्मविश्वास कम होगा और मोहन के साथ वह प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएगा। लल्लू अगर ज्यादा योग्य है, तब भी आप अंत में मोहन को ही ज्यादा योग्य ठहराएंग।” – बीपी मंडल
उनकी जलाई जिंगारी आज तीव्र अग्नि बन गई है-
13 अप्रैल 1982 पटना में हृदय-गति रुकने से मृत्यु हो गई |अश्रुपुरित जनसैलाब के बीच राजकीय सम्मान के साथ इनका अंतिम संस्कार गाँव मुरहो में किया गया। आज भी यहां हर साल सरकारी तौर पर जयंती सामारोह आयोजित किया जाता है।