माह-ए-मुहब्बत 11: हाजीपुर से पटना तक ऐसे पहुँची टीनएजर की प्रेम कहानी- पार्ट 3

माह-ए-मुहब्बत में हिमांशु द्वारा भेजी गई कहानी का आज तीसरा और आखिरी भाग आपके सामने प्रस्तुत किया जा रहा है। अब तक आपने पढ़ा है कि शुभम और कृति, जो एक ही स्कूल में पढ़ते थे, ने अपने-अपने प्यार का इज़हार कर दिया है। आगे क्या हुआ इस प्रेम कहानी में, आइये पढ़ते हैं-


एग्जाम्स खत्म हो गए थे और नया सेशन शुरू हो चुका था। शुभम और कृति दोनों अब 10th में आ चुके थे और रिलेशनशिप में भी। दोनों का ही पहला-पहला प्यार था और पहली-पहली ही बार था।
नए नए जोड़ों की जो ख़ुशी होती है वो दोनों के ही चेहरे से साफ़-साफ़ देखी जा सकती थी। कृति के गाल अब बात-बात पर ग़ुलाबी हो जाते थे और शुभम अब बिना बात भी हँसता था। शुभम अब पूरे हक़ से दिन भर कृति की आँखों में देखता रहता और कृति भी अब जान-बूझ कर बालों को कान के पीछे ले जाती रहती। शुभम के दोस्त अब खुलेआम कृति को भाभी कहने लगे थे और कृति की सहेलियाँ भी उसे शुभम के नाम से छेड़ने लगी थीं।

दोनों प्यार में इस कदर डूबे हुए थे कि अब स्कूल में एक दूसरे को देख कर बिताया पूरा दिन भी कम लगने लगा था। दोनों ने तीन-तीन कोचिंग भी एक ही साथ पकड़ लिया था ताक़ि ज़्यादा से ज़्यादा समय एक दूसरे के साथ बिताएँ। बाक़ी समय में दोनों कभी SMS से चैट करते तो कभी फोन पर लगे रहते। 24 घंटे में एक सेकंड भी ऐसा ना बीतता जिसमें दोनों ने एक दूसरे की ख़बर ना ली हो।

इसी तरह एक दूसरे में डूबे-डूबे कब 3-4 महीने निकल गये दोनों में किसी को भी पता नहीं चला। अब दोनों एक दूसरे के इतने करीब थे जितने पहले कभी किसी के नहीं थे। दोनों की हरेक बात एक दूसरे को पता थी। दुनिया भर के सारे जोड़ों की तरह इन दोनों ने भी फ्यूचर प्लानिंग करने में कोई क़सर नहीं छोड़ी थी। शादी कहाँ करेंगे से लेकर हनीमून पर कहाँ जाएंगे, सब कुछ तय हो चुका था। यहाँ तक कि होने वाले बच्चों के नाम भी आपसी सहमति से सोचे जा चुके थे। कुछ अगर बाक़ी था तो वो था दोनों का एक दूसरे को किस करना, जिसकी चर्चा भी रोज़ ही होती पर मौके के अभाव में दोनों बस चर्चा तक सीमित थे। फ़िर एक रोज़ शुभम ने कृति को कोचिंग थोड़ा जल्दी आने कहा और कृति भी शुभम के कहे अनुसार समय से पहले कोचिंग पहुँच गयी। शुभम वहाँ पहले से ही मौजूद था। उस वक़्त वहाँ शुभम और कृति के सिवा और कोई न था। दोनों लव-बर्ड्स इस बार अकेले थे। पूरी तरह अकेले। मौका भी था और दस्तूर भी। दोनों कोचिंग के अंदर बैठ बात करने लगे। बातों-बातों में शुभम ने कृति के हाथों को हल्के से छुआ। कृति के हाथों ने जब कोई हरक़त नहीं की तब शुभम ने पूरे हक़ से उसका हाथ पकड़ा। धड़कने दोनों की ही तेज़ हो गयी थीं पर शुभम के चेहरे पर जहाँ उसके दिल की घबराहट साफ़ ज़ाहिर हो रही थी वहीं कृति पूरी तरह शांत थी। पर धीरे-धीरे कृति शुभम का हाथ पकड़ के उसकी बाहों में सिमटते जा रही थी। शुभम के लिए इस से ख़ुशनुमा एहसाह और कुछ नहीं था। दोनों ने ऐसे ही थोड़ा समय बिताया फ़िर कोचिंग शुरू होने का समय हो गया और बाक़ी बच्चे भी आने लग गए। कोचिंग खत्म हुई, दोनों घर गए। दोनों प्रेमियों को आज अकेले में बिताए लम्हें गुदगुदा रहे थे। बातें हुई और अगले दिन फिर समय से पहले आ जाने का प्लान बना।
दोनों अपने समय के हिसाब से पहुँच गए और उनकी खुशकिस्मती से आज भी बस वो दोनों ही थे। पर आज एक चीज़ अलग थी। शुभम आज बिलकुल भी घबराया हुआ नहीं था पर कृति आज शुरू से ही गुलाबी हुए जा रही थी। जब-जब कृति ब्लश करती और उसके गाल गुलाबी हो जाते तब-तब शुभम को उस पर कुछ ज्यादा ही प्यार आता। आज कृति के आते ही शुभम उसे हाथ पकड़ कर अंदर ले गया। दोनों ने खूब बातें कीं। बातों के बीच में ही शुभम ने ऊँगली से किसी चीज की ओर इशारा किया।
“अरे वो देखो.. वो देखो.. क्या है!”
“कहाँ? क्या है? मुझे तो कुछ भी नहीं दिख रहा!”
“अरे वहाँ देखो ना ऊपर”
कृति हैरान नजरों से ऊपर देखने लगी। शुभम के लिए सब कुछ फिर स्लो-मोशन में हो गया था। उसने थोड़ी देर कृति को ऊपर की ओर देखते देखा और फ़िर हल्के से उसके गालों को चूम लिया।
कृति को अचानक हुए इस हमले की बिलकुल भी भनक नहीं लगी थी और शुभम ने विजय का पताका लहरा दिया था। कृति अब शर्म से गुलाबी की जगह पूरी लाल हो चुकी थी। उसे कुछ सूझ नहीं रहा था कि अब क्या बोले। उसने शुभम की ओर मुड़ कर हल्के से नजरें उठा कर उसे देखा। शुभम ने उसे अपने और पास खींच लिया और उसे गले से लगा लिया। ये उन दोनों का पहला हग था। कृति की गर्म साँसें शुभम को अपने सीने पर महसूस हो रही थीं। उसके बालों से आती मेहंदी की ठंडी-ठंडी खुशबू उसके साँसों में समा रही थी। कृति आँखें बंद कर के बस शुभम से लिपटी थी। उसे अब कुछ नहीं कहना था। थोड़ी देर बाद कृति ने अपना चेहरा उठाया तो शुभम ने उसके माथे को चूम लिया। कृति की आँखें स्वीकृति में बंद हो चलीं। शुभम कुछ देर उसके मासूम चेहरे को कुछ देर अपलक निहारता रहा। फिर उसने उसके दोनों आँखों को चूम कर खुद से उसको अलग किया। फ़िर दोनों चुप रहे, जो बातें होनी थी आँखों से ही हुईं। फिर सबके आने का समय हो गया और दोनों कोचिंग पढ़ के अपने-अपने घर चले गए। दोनों के सीने में आज की ये मुलाक़ात हमेशा-हमेशा के लिये एक बेहद हसीन याद छोड़ गयी थी।

इसी तरह स्कूल और कोचिंग की बदौलत उनका प्यार हर रोज़ बढ़ता रहा। पर समय पंख फैलाये उड़ रहा था और देखते ही देखते 10th क्लास भी खत्म होने को आ गया। भविष्य को लेकर चिंताएँ अब बढ़ने लगी थी। एक तो 10th का इतना महत्वपूर्ण एग्जाम सर पे था और तैयारी दोनों की ही कुछ खास नहीं थी ऊपर से 10th के बाद कैरियर की टेंशन। कृति को उसके पापा इंजीनियरिंग की तैयारी करने कोटा भेजना चाहते थे, वहीं शुभम पटना के किसी स्कूल में एडमिशन लेकर 12th करना चाहता था। दोनों रोज़ एक दूसरे से इसी बारे में बात करते। शुभम कृति से कोटा ना जाने कहता तो कृति शुभम से हर महीने कोटा मिलने आने की बात मनवाती। धीरे-धीरे 10th के बोर्ड्स खत्म हो गए और एडमिशन लेने का समय आ गया था। कृति ने तब तक अपने पापा से उसे कोटा ना भेजने को मना लिया था और शुभम भी इस कोशिश में लगा था कि दोनों का एडमिशन एक ही स्कूल में हो जाए। कृति के पापा उसके एडमिशन के लिए पटना, रांची, बोकारो हर जगह फॉर्म भरने में लगे थे वहीं शुभम भी हर उस जग़ह जा कर फॉर्म डाल आता जहाँ कृति का फॉर्म भरा जाता। शुभम घर से ज्यादा दूर जाना नहीं चाहता था इसीलिए उसकी इच्छा थी कि उन दोनों का एडमिशन पटना के ही किसी स्कूल में हो जाए। ऊपरवाले ने एक बार फ़िर शुभम की दुआ क़ुबूल कर ली थी पर इस बार आधी ही दुआ क़ुबूल हुई। शुभम और कृति दोनों का एडमिशन पटना में हुआ पर स्कूल अलग-अलग थे।

कुछ दिनों में छुट्टियां बीत गईं और नए स्कूल का नया सेशन शुरू हो गया। दोनों नए क्लास में नए लोगों के बीच थे।

अब दोनों एक ही शहर में थे पर पहले जैसी बात नहीं रह गयी थी। कृति साइंस स्ट्रीम में थी और शुभम आर्ट्स में इसीलिये अब कोचिंग भी साथ-साथ संभव नहीं थे। कृति के ऊपर सिलेबस का पहाड़ टूट पड़ा था। स्कूल और इंजीनियरिंग की कोचिंग के कारण शुभम से मिलने का समय भी नहीं मिल पाता था। रात को पढ़ाई के एक्स्ट्रा-बोझ के कारण फ़ोन पर भी बात ना के बराबर ही हो पाती थी।

शुभम फिर से उदास रहने लगा। शुभम के लिए पटना बिलकुल ही मातम सा हो गया था। ना घरवाले थे, ना ही पुराने स्कूल के बचपन के वो सारे दोस्त और ना ही कृति। शुभम के लिए नया स्कूल कुछ ख़ास अच्छा नहीं बीत रहा था। वही दूसरी ओर कृति को पटना शहर भा गया था। नया स्कूल भी उसे जम गया था और उसके खूब नए दोस्त भी बन गए थे। कृति को नयी आज़ादी मिल गयी थी और आज़ादी से बढ़ कर कोई सुख नहीं होता ये बात भी कृति को अब समझ आने लगी थी। जहाँ शुभम भूत काल में फंसा था वहीं कृति अपने भूत-भविष्य को किनारे रख अपने वर्तमान में खुल के जी रही थी।

दोनों के बीच इस बढ़ती दूरी ने दोनों में गलतफहमियाँ भी बढ़ा दी थी। अब कृति जब भी फ़ोन करती बस अपने नए दोस्तों की ही बातें करती। किसने उसे क्या बोला, कौन कैसा दिखता है, नए स्कूल में कितने लड़कों ने उसे प्रोपोज़ किया, इन सब बातों में ही समय बीत जाता। शुभम के पास वैसे भी कुछ नया कहने को नहीं था, इसीलिये वो चुपचाप बस सुनता रहता। धीरे-धीरे शुभम का मन अस्थिर रहने लगा। उसके मन में इस डर ने घर कर लिया कि अब उन दोनों का रिलेशनशिप ज्यादा दिन नहीं चलेगा और शायद कृति उसको छोड़ देगी। धीरे-धीरे ये डर शक़ का रूप लेने लगा। दोनों की बातों में भी अब पहले वाली गर्माहट बाक़ी नहीं रह गयी थी। शुभम को ऐसा लगता जैसे कृति बस उस पर तरस खा कर उससे बात कर लेती है, वहीं कृति को इन सब की कोई ख़बर ही नहीं थी। वो बस नए लोगों में ही मशगुल होती जा रही थी। कई दिन कई बातों पर दोनों की नोकझोंक भी हो गयी थी। फ़ोन काट कर दोनों ही रोये भी थे। फ़िर बाद में दोनों एक दूसरे को सॉरी बोल के मना भी लेते थे। पर वो कहते हैं ना “रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय/टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय,” उसी तरह उन दोनों के रिश्ते में भी दरार आ चुकी थी। कृति की उसके क्लास के एक लड़के के साथ नज़दीकी बढ़ती जा रही थी, जिसके कारण शुभम अक्सर उससे झगड़ लेता था। दोनों फ़िर रोते, फिर मनाते पर ये रोज की बात हो गई थी। शुभम के रोज झगड़ने के कारण कृति उस लड़के के और ज्यादा क़रीब होने लगी।

एकदिन शाम को कोचिंग से आते समय शुभम ने कृति को बोरिंग रोड में उस लड़के के साथ घूमते देख लिया था। उस दिन दोनों की खूब भयंकर लड़ाई हुई। शुभम ने कृति पर तमाम तरह के आरोप लगाए। खूब भला-बुरा कहा। कृति शुरू में तो खूब रोई पर, शुभम को समझाने की कोशिश की कि वो दोनों बस दोस्त हैं पर शुभम मानने को तैयार नहीं था। उसका कहना था कि कृति शुभम के हिस्से का समय उस लड़के को दे रही है। लड़ते-लड़ते बात ज्यादा आगे बढ़ गयी। कृति भी खुद्दार लड़की थी, कब तक शुभम की डांट सहन करती। उसने भी शुभम से उसकी हद में रहने को कह दिया। बात यहाँ से इतनी बिगड़ी कि ब्रेकअप तक पहुँच गयी। कृति के मुँह से ब्रेकअप की बात सुनते ही शुभम का सारा गुस्सा गायब हो गया। उसे अब अपने किये पर अफ़सोस हो रहा था। अब रोकर बात समझाने की बारी उसकी थी पर अब कृति सुनने के मूड में नहीं थी। कृति ने गुस्से में फ़ोन काट दिया। उस रात जैसी काली रात शुभम के ज़िन्दगी में आज तक नहीं आयी थी। कृति ने भी रात भर रो-रो कर आँखें सूजा लीं। अगले दिन सुबह होते ही शुभम ने कृति से मिल कर माफ़ी मांगने की सोची। उसने कृति को शाम में S.K. Puri Park में मिलने के लिए SMS किया। कृति ने भी कुछ घंटों बाद हाँ का रिप्लाई भेज दिया।

शाम होते ही शुभम S.K. Puri Park पहुँच गया। घास पर बैठकर उसने इंतेज़ार करना शुरू ही किया था कि कृति आती दिखाई दी उसे। कृति का चेहरा पूरा बुझा-बुझा सा था। कृति शुभम के पास आ कर बैठ गयी और उस से पूछा, “बोलो, क्या बात है.. क्यूँ बुलाया है मिलने?”
शुभम से कुछ बोला न गया। थोड़ी देर खुद पर काबू रखने के बाद वो कृति को पकड़ कर रोने लग पड़ा। कृति ने शुभम को चुप कराया। थोड़ी देर बाद जब शुभम शांत हुआ तो उसने कृति को सॉरी बोला। कृति ने बस इतना कहा, “अब बहुत देर हो चुकी है शुभम। अब कोई फायदा नहीं है सॉरी बोलने का। हमारा ब्रेकअप हो चुका है और अब कोई फायदा नहीं है रोने का।”
शुभम के पास बोलने को कुछ नहीं था। इतना कह कर कृति भी वहाँ से उठ कर चली गयी।
उस दिन के बाद से कृति ने शुभम के किसी मैसेज का ज़वाब नहीं दिया, उसका एक भी कॉल नहीं उठाया। और कुछ दिनों बाद कृति ने अपना नंबर बदल लिया।
कुछ महीनों बाद शुभम को फेसबुक पर कृति के नए रिलेशनशिप स्टेटस का अपडेट दिखा। नई क्लास का वो नया लड़का अब कृति का नया बॉयफ्रेंड था। उस दिन के बाद से शुभम ने सारी उम्मीदें छोड़ दी बस कृति से प्यार नहीं छोड़ पाया।

“वापस वर्तमान समय में..”

शुभम आज फिर S.K. Puri Park में उसी जगह बैठा है जहाँ उस शाम बैठा था। आज भी वो रो रहा है बस अब उसके आँसुओं ने बहना छोड़ दिया था। कृति जिंदगी में आगे बढ़ चुकी है, शुभम वही अटका पड़ा है। कृति की पसंदीदा जगह है बोरिंग रोड। सारे पटना को बोरिंग रोड से प्यार है पर शुभम को बोरिंग रोड और पटना, दोनों से ही नफ़रत है। कृति अपनी आज़ादी खुल के जी रही है। शुभम आज भी कृति की यादों की जंजीरों में कैद है।

थोड़ी देर बाद उसी दिन की तरह आज भी शुभम उठ कर उस पार्क से अपने रास्ते की ओर चला जाता है, अकेला, सिगरेट का कश लगाते हुए, कृति के तरह ही मूव ऑन कर जाने की उम्मीद में।

नोट- यह कहानी हिमांशु के दोस्त की है। आप भी अपनी या अपनों की कहानी हमें भेज सकते हैं 13 फरवरी तक। हमारा पता है- contact@aapnabihar.com।

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